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बाजार अतरिया का पशु औषधालय अव्यवस्था के कारण खुद बीमार

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सत्यमेव न्यूज अतरिया बाजार. स्थानीय शासकीय पशु औषधालय भगवान भरोसे चल रहा है। अव्यवस्था का आलम यह है कि सालों से यह अस्पताल सुर्खियों में ही रहता है और यहां मवेशियों का उपचार तो दूर की बात है प्रशासनिक रूप से यहां पदस्थ कर्मचारियों का उपचार करना आवश्यक हो गया है। अस्पताल में नियुक्त कर्मचारी ना तो समय पर अस्पताल पहुंचते हैं और ना ही समय पर यहां से अपनी ड्यूटी कर जाते हैं। हालात यह है कि पशु औषधालय खुद बीमार हो चुका है और यहां प्रशासनिक उपचार की आवश्यकता है। हाल ही में गणतंत्र दिवस पर जब तिरंगा फहराने का समय था तो सम्बंधित विभाग के अधिकारी और कर्मचारी की लापरवाही के कारण रात 8 बजे तक तिरंगे को उतारा नहीं गया। यह देश की शान तिरंगे का अपमान था और पूरे जिले में चर्चा का विषय बन गया। यह घटना सिर्फ शासकीय पशु औषधालय की स्थिति को ही नहीं बल्कि सरकारी तंत्र की लापरवाही को भी उजागर करती है वहीं अस्पताल खुलने की बात करें तो साल के 365 दिन में गिनती के ही दिन अस्पताल खुलता हैं। अस्पताल खुलने की बात को लेकर हमारे प्रतिनिधि द्वारा वेटरिनरी अस्सिटेंट सर्जन डॉ.ममता रात्रे को दूरभाष के माध्यम से पूछा गया तो उनके द्वारा सिर्फ स्टाफ नहीं होने का हवाला दिया जाता है वहीं अगर एक स्टाफ है तो वह एक स्टाफ को परमानेंट अस्पताल में रखने के बजाय अपने ऑफिस बुलाकर अपनी कार्य करवाया जाता है जिससे बाजार अतरिया का पशु औषधालय खुलता ही नहीं है। इस तरह की समस्या केवल स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित नहीं है बल्कि यह पूरे सरकारी तंत्र की अक्षमता और लापरवाही को उजागर करता है। ग्रामीणों ने इस पूरे मामले में शासन और प्रशासन से कड़ा कदम उठाने की मांग की है और यहां पदस्थ लापरवाह अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने मांग की गई है। ताकि सरकारी योजनाओं का लाभ आम जनता तक पहुंच सके और पशुपालक सुरक्षित और बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठा पाये।

अस्पताल का दस्तावेज पशु परिचालक के घर में रहता है

हाल ही में अस्पताल में कितने पशु पालकों की ओपीडी पर्ची काटी गई है इसे लेकर हमारे प्रतिनिधि द्वारा अस्पताल में पदस्थ पशु परिचालक घनश्याम सिंह बघेल को ओपीडी रजिस्टर दिखाने कहा गया जिस पर उन्होंने ओपीडी रजिस्टर को घर में रखे होने की बात कही अब सवाल यह उठता है कि क्या सरकारी रजिस्टर या जरुरी दस्तावेज को घर में रखा जाता है? क्या यह किसी कर्मचारी की मनमानी का उदाहरण नहीं है और यह उच्च अधिकारियों के संरक्षण में शासन के नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं? बावजूद जिला स्तर से लेकर ब्लॉक स्तर तक के उच्च अधिकारियों का संरक्षण के चलते इनके हौसले बुलंद है इसलिए इन्हें कारवाई होने का जरा भी भय नहीं है।

पशुपालक शासन की योजनाओ से कोसों दूर

वर्तमान में पशु विभाग द्वारा कई योजनाएं चलाई जा रही हैं जिनका उद्देश्य पशुपालकों की सहायता करना है लेकिन यहां के अधिकारियों और कर्मचारियों की लापरवाही के कारण इन योजनाओं का लाभ किसी को नहीं मिल पा रहा। कई लोग जैसे बकरी पालन, मुर्गी पालन, और गौ पालन शुरू करना चाहते हैं, लेकिन उन्हें इन योजनाओं की जानकारी तक नहीं मिल पाती। इसके परिणामस्वरूप, सरकारी योजनाएं गांवों तक पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देती हैं। पशु औषधालय की स्थिति यह दर्शाती है कि यहां के पशुपालकों को बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं भी नहीं मिल पा रही हैं। अगर यह अस्पताल क्षेत्र के हिसाब से हाईटेक और व्यवस्थित होता, तो यहां न केवल इलाज की बेहतर सुविधाएं होती बल्कि पशुपालकों को सरकारी योजनाओं का समुचित लाभ मिलता लेकिन जहां लापरवाह अधिकारी और कर्मचारी हो वहां व्यवस्था का क्या हाल होगा इस बात का अंदाजा सहज लगाया जा सकता हैं।

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