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राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित भारत रंग महोत्सव ने खैरागढ़ विश्वविद्यालय में बांधा समां, चौथे दिन मध्यम व्यायोग व नदपावादाई नाटक का हुआ मंचन

सत्यमेव न्यूज खैरागढ़. संगीत नगरी खैरागढ़ में राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित हो रहे भारत रंग महोत्सव ने खैरागढ़ विश्वविद्यालय में कला प्रेमियों के बीच शमाँ बांध दिया है यहां लगातार चौथे दिन अलग-अलग नाटकों की प्रस्तुति हुई और इस क्रम में मध्यम व्यायोग व नदपावादाई नाटक का सफल, मर्मस्पर्शी और नयनाभिराम मंचन हुआ। ज्ञात हो कि यूँ तो खैरागढ़ को महज संगीत नगरी की संज्ञा दी जाती है लेकिन संगीत,

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कला व ललित कला को समर्पित एशिया के सबसे प्रतिष्ठित माने जाने वाले खैरागढ़ विश्वविद्यालय में आयोजित भारत रंग महोत्सव ने इतिहास रच दिया है। दुनियां के सबसे बड़े थिएटर फेस्टिवल ‘भारत रंग महोत्सव’ (भारंगम) के 25वें संस्करण का खैरागढ़ विश्वविद्यालय साक्षी बना है। यहाँ आयोजित रंग महोत्सव में भारत सहित रूस, इटली, जर्मनी, नॉर्वे, चेक गणराज्य, नेपाल, ताइवान, स्पेन और श्रीलंका जैसे देशों के प्रसिद्ध थिएटर समूहों ने अपनी प्रस्तुतियों से कला जगत को अभिभूत किया है। भारत रंग महोत्सव के चौथे दिन संस्कृति कवि भास द्वारा रचित मध्यम व्यायोग का नाट्य मंचन किया गया वहीं पांचवे दिन पुदुचेरी के प्रसिद्ध रंग निर्माता रामसामी एस. द्वारा रचित नदपावादाई नाटक का मंचन किया गया। मध्यम व्यायोग की प्रस्तुति हिन्दी भाषा में तथा नदपावादाई की प्रस्तुति तमिल भाषा में हुई। संस्कृत कवि भास द्वारा रचित मध्यम व्यायोग महाभारत के वन पर्व के एक प्रसंग का रचनात्मक पुनर्कथन है। यह घटोत्कच और उसके पिता भीम के बीच नाटकीय मुठभेड़ का वर्णन करता है जिसमें भाईचारा, बलिदान और योद्धा के कर्तव्य जैसे विषयों की खोज की गई है। यह नाटक शास्त्रीय और लोक नाट्य परंपराओं का एक सहज संयोजन है जिसमें लोक सगीत, नृत्य और शास्त्रीय नाटक के तत्व शामिल हैं। यह अनूठा मिश्रण भारतीय रंगमंच की विविधता को प्रदर्शित करते हुए एक जीवंत लेकिन गहन भावनात्मक कथा प्रदान करता है।

पुदुचेरी के प्रसिद्ध रंग निर्माता रामासामी एस द्वारा निर्मित नदपावादाई नाटक में एक महिला के बारे में एक रंग प्रस्तुति को दर्शाया गया है जो अपने गांव के लोगों का अंतिम संस्कार करती है, जो कि पारंपरिक रूप से पुरुषों के लिये आरक्षित भूमिका है। उन सांस्कृतिक मानदंडों को चुनौती देते हुए जो आमतौर पर महिलाओं को श्मशान से रोकते हैं, उसे अपने परिवार के पुरूष सदस्य की मृत्यु के बाद, इन अनुष्ठानों का नृतृत्व करने के लिए नामित किया गया है। यह नाटक इस पुरूष प्रधान मंडल में उसकी अनूठी स्वीकृति की जांच करता है और उसके जीवन के सामाजिक आर्थिक आयामों की पड़ताल करता है। अधिकार और करिश्मे के साथ वह पूर्ण सार्वजनिक दृश्य में अनुष्ठानों का नेतृत्व करती है, दूसरों को निर्देशित करती है और समारोहों को सशक्त प्रदर्शनों में बदल देती है।

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