सीमित संसाधनों व उदासीनता के कारण किसानों के लिये औचित्यहीन बन रही खैरागढ़ कृषि उपज मंडी

कृषकों को नहीं मिल रहा मंडी से लाभ, सफेद हाथी साबित हो रही कृषि उपज मंडी
कृषि उपज मंडी की स्थापना का उद्देश्य नहीं हो पा रहा है पूरा
बीते 18 वर्षों से जनप्रतिनिधियों की सतत उदासीनता भी बड़ी वजह
मंडी से व्यापारियों को हो रहा लाभ लेकिन किसानों को कोई फायदा नहीं
शासन के सौदा पत्रक नियम के कारण मंडी से दूर हो गये हैं किसान
सत्यमेव न्यूज़/खैरागढ़. अमलीपारा में स्थापित कृषि उपज मंडी सफेद हाथी बनकर रह गई है. कृषि उपज मंडी में शासन की उदासीनता व सौदा पत्रक अधिनियम के कारण किसानों को पाई-आने का भी मुनाफा नहीं हो पा रहा है. ज्ञात हो कि 27 वर्ष पूर्व खैरागढ़ के अमलीपारा में कृषि उपज मंडी 19.61 एकड़ के विशालकाय परिसर स्थापित की गई थी, पर समय के साथ अब यहाँ से कृषकों को कोई लाभ नहीं मिल पा रहा, दूसरी ओर आय के साधन नहीं होने व शासन की उदासीनता के कारण कृषि उपज मंडी परिसर सफेद हाथी बनकर रह गया है. गौरतलब है कि खैरागढ़ में जिन उद्देश्यों को लेकर कृषि उपज मंडी की स्थापना हुई थी वह पूरी नहीं हो पा रही है. 17 जून 1995 को अविभाजित मध्यप्रदेश में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के मुख्य आतिथ्य व सांसद स्व.शिवेन्द्र बहादुर सिंह तथा विधायक स्व.देवव्रत सिंह की उपस्थिति में कृषि उपज मंडी समिति का लोकार्पण हुआ था. उस समय क्षेत्र के कृषक सीधे मंडी से जुड़े हुये थे और उन्हें लाभ भी मिल रहा था लेकिन 18 वर्ष पूर्व रमन राज में सौदा पत्रक नियम के कारण अब मंडी बेरंग सी हो गई है और शासन द्वारा कृषकों से उपज की खरीदी-बिक्री यहां पूरी तरह बंद है जिसके कारण कृषि उपज मंडी के अस्तित्व पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं. उम्मीद थी कि किसानों की हितैषी कही जाने वाले भूपेश सरकार मंडी के अस्तित्व को बचाने कोई योजना लागू करेगी पर ऐसा हुआ नहीं. जानकार बताते हैं कि जनप्रतिनिधियों की सतत उदासीनता के कारण कृषि उपज मंडी का उद्देश्य पूरा नहीं हो पा रहा है. बहरहाल वर्तमान मंडी अध्यक्ष यहाँ अतिरिक्त आय के श्रोत के लिये प्रयासरत रही हैं लेकिन आचार संहिता के कारण यह योजना भी अभी ठंडे बस्ते में हैं, उम्मीद हैं कि 3 दिसम्बर को नई सरकार के गठन के बाद इस दिशा में कुछ बेहतर प्रयास होंगे.

सौदा पत्रक के कारण मंडी से दूर हुए किसान
सौदा पत्रक नियम से एक ओर जहां व्यापारियों व प्रशासनिक अधिकारियों को फायदा मिल रहा है वहीं किसान मंडी से मिल पाने वाले किसी भी तरह के लाभ से वंचित हैं और यही वजह है कि किसान मंडी से दूर हो गए.
धमतरी व राजनांदगांव की तर्ज पर जिले में राईस मिल खुलने से मंडी में बढ़ सकती है प्रतिस्पर्धा
कृषि उपज मंडी की बदहाल स्थिति के लिये यहां राईस मिलर्स का टोटा भी एक बड़ी वजह है. वर्तमान में केवल 4 निजी राईस मिल ही क्षेत्र में संचालित है वहीं वर्षों से संचालित हो रही पिपरिया स्थित सरकारी राईस मिल कई वर्षों से बंद पड़ी है और यहां पदस्थ रहे अधिकारियों ने सरकारी राइस मिल को खूब लूटा-खसोटा. जानकार बताते हैं कि राईस मिल की अधिक उपलब्धता से मंडी में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और इसका सीधा फायदा कृषकों को होगा. खैरागढ़ में 4 राईस मिल की तुलना अन्य स्थानों से की जाये तो राजनांदगांव में 100 से अधिक राजिम में 150 से अधिक, दुर्ग व भाठापारा में 200 से अधिक एवं धमतरी जिले में 300 से अधिक राईस मिलें है जहां प्रतिस्पर्धा के चलते मंडियों से कृषकों को सीधा लाभ मिल रहा है. बताया जा रहा है कि शासन द्वारा ट्रेडर्स से 3 फीसदी मंडी शुल्क, 2 फीसदी कृषक कल्याण शुल्क व 0.20 फीसदी निराश्रित शुल्क लिया जाता है वहीं अब मिलर्स से 1 फीसदी मंडी शुल्क, 1 फीसदी कृषक कल्याण शुल्क व 0.20 फीसदी निराश्रित शुल्क लिये जाने का नियम रहा हैं लेकिन कुछ माह से मिलर्स भी ट्रेडर्स की तरह शुल्क पटा रहे हैं. मंडी से जुड़े कुछ जानकार बताते हैं कि 18 वर्ष पहले रमन सरकार में सौदा पत्रक का मसौदा पास हुआ था जिससे व्यापारियों को तो लाभ हुआ लेकिन किसान ठगे गये. प्रदेश में 5 साल पूर्व सत्ता परिवर्तन के बाद उम्मीद थी कि सौदा पत्रक का मसौदा बदलेगा और किसान सीधे कृषि उपज मंडियों से जुड़ पायेंगे लेकिन यह अब तक संभव नहीं हो पाया है.
मंडी में नहीं है पर्याप्त प्रशासनिक अमला
मंडी में पर्याप्त प्रशासनिक अमला नहीं होने से मंडी शुल्क की लगातार हो रही चोरी
क्षेत्र में अनाज व्यापारी लगातार मंडी शुल्क की चोरी करते हैं. सौदा पत्रक नियम के कारण किसान मजबूरी में व्यापारियों के पास अपना अनाज बेचते हैं लेकिन व्यापारी कहीं अधिक कीमत पर चोरी-छुपे थोक में किसानों से खरीदे गये अनाज को खपाते हैं. दूसरी ओर कृषि उपज मंडी में पर्याप्त अमला भी नहीं है, यहां सचिव का पद रिक्त पड़ा हुआ है और प्रभारी के भरोसे यहां कामकाज चल रहा है वहीं 5 उपनिरीक्षकों में केवल 1 कार्यरत है वहीं भृत्य व डाटा एंंट्री ऑपरेटर सहित अन्य पद भी स्वीकृत पदों की तुलना में रिक्त है वहीं विगत कई वर्षों से कृषि उपज मंडी समिति में चुनाव नहीं हो पाया है. मनोनित प्रतिनिधि व भार साधक अधिकारी ही मंडी का संचालन कर रहे हैं.
मंडी में अतिरिक्त आय बढ़ाने के लिए हो रहा प्रयास
स्टेट हाईवे से लगे होने के कारण अमलीपारा खैरागढ़ की कृषि उपज मंडी मैं यहां आए के अतिरिक्त स्रोत बढ़ाने के प्रयास हो रहे हैं, कृषि उपज मंडी अध्यक्ष दशमत उत्तम जंघेल ने बताया कि सौदा पत्रक अधिनियम के कारण समस्याएं तो है लेकिन हम कृषि उपज मंडी में आए के अतिरिक्त स्रोत बढ़ाने की दिशा में ध्यान दे रहे हैं, स्टेट हाईवे के किनारे होने के कारण खैरागढ़ कृषि उपज मंडी में कांप्लेक्स निर्माण कराया जाएगा जिसके लिए 27.74 लाख का प्राक्कलन शासन को भेजा गया है और 26.94 लाख रुपए की स्वीकृति भी मिल गई है वहीं मंडी मद से खैरागढ़ विकासखंड में 9 किस कुटीर भी बनाए जाएंगे, जो खैरागढ़ विधानसभा क्षेत्र के डोकराभाठा, सोनपुरी (रगरा), भोरामपुर, मड़ौदा व जालबांधा समिति व डोंगरगढ़ विधानसभा क्षेत्र के विचारपुर, भंडारपुर पांडादाह, गहिराटोला (बैहाटोला) में क्रमशः लगभग साढ़े 13 की लागत से किसान कुटीर बनेंगे, जिसके लिए शासन स्तर पर स्वीकृति मिल गई है वहीं गोदाम मरम्मत के लिए भी लगभग 3:85 लाख रुपए की राशि स्वीकृत हुई है, साथ ही कृषि उपज मंडी परिसर को पूरी तरह सुरक्षित करने के लिए आहता निर्माण की भी योजना बनाई गई है.
उपज खरीदने मांग की गई है- मेश्राम ( फोटो लगाना है)
खैरागढ़ कृषि उपज मंडी के सचिव पवन कुमार मेश्राम ने बताया कि जिला निर्माण के बाद अन्य जिलों की तर्ज पर मंडी परिसर में कृषकों से उपज खरीदने के लिए शासन स्तर पर मांग की गई है, मंडी में आय के स्रोत बढ़े इस पर फोकस है, बहरहाल मंडी में पर्याप्त प्रशासनिक अमला नहीं है.
मंडी परिसर में खरीदी शुरू करने प्रयास – दशमत उत्तम जंघेल (फोटो)
कृषि उपज मंडी अध्यक्ष श्रीमती दशमत उत्तम जंघेल का कहना है कि मंडी परिसर में फसलों की खरीदी शुरू करने सतत प्रयास किया जा रहा है. शासन स्तर पर चर्चा के साथ ही मंडी बोर्ड के एमडी से सुचारू बातचीत हुई है वहीं कलेक्टर से भी राजनांदगांव की तर्ज पर अनाजों की खरीदी की व्यवस्था सुनिश्चित कराने प्रयत्न की गुजारिश की गई है. कोशिश हैं कि कम से कम दलहन और तिलहन की फसल खरीदी जा सके. वर्तमान में मंडी से कोई खरीदी नहीं हो पा रही है जिससे आय के साधन भी घटे हैं. जिला निर्माण के बाद उम्मीद है शीघ्र ही यहां खरीदी शुरू होगी.
