Advertisement
Uncategorized

संभावनाओं की चमक, संकट की परछाईं और खनन के बढ़ते कदमों से खैरागढ़ अंचल में पर्यावरण और प्रभावित गांवों की चिंता गहराई

सत्यमेव न्यूज खैरागढ़। जिले का एक बड़ा भू-भाग इन दिनों विकास की संभावनाओं और पर्यावरणीय संकट के दोराहे पर खड़ा दिखाई दे रहा है। नचनिया, भाजीडोंगरी तथा जगमड़वा, हनाईबन, मरदकठेरा जैसे बड़े खनिज ब्लॉकों में खनन गतिविधियों को लेकर गतिविधियां तेज होने के साथ ही स्थानीय स्तर पर चिंता और विरोध के स्वर भी मुखर होने लगे हैं। लौह अयस्क और चूना पत्थर के समृद्ध भंडार ने जिले के इस इलाके को औद्योगिक निवेश के लिए आकर्षक तो बना दिया है लेकिन इसके साथ ही पर्यावरणीय संतुलन, जल स्रोतों और ग्रामीण जीवन पर पड़ने वाले विपरीत प्रभावों को लेकर आशंकाएँ भी बढ़ती जा रही हैं।

नचनिया आयरन ओर ब्लॉक में 3.93 मिलियन टन और भाजीडोंगरी ब्लॉक में 2.07 मिलियन टन लौह अयस्क का भंडार दर्ज किया गया है। इन दोनों ब्लॉकों का सर्वे कार्य निजी कंपनियों को सौंपा जा चुका है। प्रशासन का दावा है कि फिलहाल केवल सर्वे की अनुमति दी गई है न कि खनन की। हालांकि ये दोनों क्षेत्र घने वन क्षेत्रों में आते हैं। पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भविष्य में यहां खनन शुरू हुआ तो जंगलों का कटाव, वन्य जीवों के प्राकृतिक आवास पर असर और भूजल स्तर में गिरावट जैसी गंभीर चुनौतियाँ सामने आ सकती हैं।

जगमड़वा, हनाईबन और मरदकठेरा क्षेत्र में स्थित चूना पत्थर ब्लॉक में करीब 52.74 मिलियन टन का विशाल भंडार है। यह ब्लॉक भले ही वनभूमि रहित बताया जा रहा हो लेकिन बड़े पैमाने पर चूना पत्थर खनन से स्थानीय जल स्रोतों, खेती और ग्रामीण पर्यावरण पर दीर्घकालीन प्रभाव पड़ने की आशंका जताई जा रही है।
विशेषज्ञों का कहना है कि सीमेंट और अन्य उद्योगों के विस्तार से क्षेत्र की जल उपलब्धता और कृषि व्यवस्था पर भारी दबाव बन सकता है और यहां का सामान्य और सुखद जनजीवन बुरी तरीके से प्रभावित हो सकता है।

खनन और उद्योगों के विस्तार से रोजगार, राजस्व और बुनियादी ढांचे के विकास की संभावनाएं जरूर बनती हैं। जिला खनिज अधिकारी भी मानते हैं कि ये खनिज ब्लॉक क्षेत्र को खनिज आधारित औद्योगिक हब के रूप में स्थापित कर सकते हैं लेकिन सवाल यह है कि क्या यह विकास पर्यावरण और ग्रामीण जीवन की कीमत पर होगा? विशेषज्ञों का स्पष्ट मत है कि यदि पर्यावरणीय संतुलन, स्थानीय संसाधनों और ग्रामसभा की सहमति को नजर अंदाज कर परियोजनाओं को आगे बढ़ाया गया तो यह विकास असंतुलित और विवादों से घिरा होगा। श्री सीमेंट प्रकरण को लेकर वर्तमान में ग्रामीणों में डर और भय का वातावरण है। खनन परियोजनाओं में तेजी ऐसे समय में देखने को मिल रही है जब छुईखदान और गंडई के आसपास के गांव पहले ही प्रस्तावित सीमेंट माइंस और फैक्ट्री के खिलाफ बड़े स्तर पर विरोध जता चुके हैं। ग्रामीणों ने तब जल स्रोतों के सूखने, धूल प्रदूषण बढ़ने, कृषि को नुकसान और संभावित विस्थापन को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की थी। ग्रामीणों का कहना है कि यदि नई खनन परियोजनाएं बिना पारदर्शिता और ग्रामसभा की सहमति के आगे बढ़ती हैं तो यहां भी श्री सीमेंट जैसे हालात बन सकते हैं।

विशेषज्ञों के अनुसार यह पूरा बेल्ट खनन क्षमता के लिहाज से बेहद समृद्ध है लेकिन इसकी कीमत पर्यावरण और सामाजिक संरचना के नुकसान के साथ नहीं चुकाई जानी चाहिए। केवल रोजगार और उद्योग के नाम पर बिना वैज्ञानिक आकलन और पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों के खनन को बढ़ावा देना आने वाले वर्षों में सुखद कृषि क्षेत्र में जल संकट और सामाजिक टकराव को जन्म दे सकता है। बहरहाल खनन क्षेत्र को लेकर प्रभावित हो रहे इलाकों में बेहतर वार्ता के साथ संतुलन जरूरी है। फिलहाल यह इलाका छत्तीसगढ़ के सबसे सक्रिय खनिज हॉटस्पॉट्स में शुमार हो चुका है। यहां रोजी-रोटी और रोजगार की संभावनाएं जरूर बढ़ी हैं लेकिन जोखिम भी उतना ही गंभीर है। खनन से विकास संभव है पर तभी जब यह विकास प्रकृति, संसाधनों और स्थानीय समुदायों के अधिकारों के साथ संतुलन बनाकर किया जाए। अन्यथा यह क्षेत्र भी लंबे समय तक संघर्ष और विरोध की आग में झुलस सकता है।

Satyamev News

आम लोगों की खास आवाज

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

You cannot copy content of this page