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माँ बम्लेश्वरी मंदिर विवाद और गहराया, ट्रस्ट और गोंड समाज आमने-सामने

सत्यमेव न्यूज के लिए मनोहर सेन डोंगरगढ़। नवरात्र की पंचमी पर माँ बम्लेश्वरी मंदिर में गोंड आदिवासी समाज द्वारा पारंपरिक “भेंट यात्रा” आयोजित की गई थी जिसमें समाज के आंगा देव, बैगा समुदाय और राजपरिवार से राजकुमार भवानी बहादुर सिंह शामिल हुए। परंपरागत प्रक्रिया के तहत देवस्थानों में पूजा-अर्चना कर समाज के लोग गर्भगृह के निकट पहुंचे। इसी दौरान सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो को आधार बनाकर कुछ वर्गों ने आरोप लगाया कि समाज के लोगों ने जबरन गर्भगृह में प्रवेश करते हुए दान पेटी लांघी। इस आरोप ने विवाद को हवा दे दी। आदिवासी गोंड समाज ने आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि यह देव मिलन की पारंपरिक परंपरा है जिसे गलत तरीके से प्रस्तुत कर समाज की छवि धूमिल की जा रही है। उनका कहना है कि आंगा देव साधारण व्यक्ति नहीं बल्कि देवत्व का प्रतीक होते हैं और उनकी पूजा-पद्धति को मर्यादाविहीन बताना आस्था का अपमान है।

नवरात्रि के दौरान मंदिर परिसर में कार्यरत कर्मचारी शीतल मांडवी की उपचार में देरी के कारण मृत्यु हो गई। इस घटना पर भी गोंड समाज ने कड़ी प्रतिक्रिया जताई और परिजनों को मुआवजा तथा ट्रस्ट की जवाबदेही तय करने की मांग को लेकर ज्ञापन सौंपा। समाज का कहना है कि मंदिर प्रबंधन को अपने कर्मचारियों की सुरक्षा और स्वास्थ्य को लेकर अधिक संवेदनशील होना चाहिए।

गोंड आदिवासी महासभा के अध्यक्ष रमेश उइके ने कहा कि
हमारी मांगें स्पष्ट हैं मृतक कर्मचारी के परिजनों को मुआवजा दिया जाए और पारंपरिक पूजा-पद्धति का अपमान बंद हो। यदि प्रशासन ने संवेदनशीलता नहीं दिखाई तो हम शांतिपूर्ण आंदोलन करेंगे। गोंड समाज को हिंदू विरोधी बताने की साजिश निंदनीय है।

राजपरिवार के सदस्य राजकुमार भवानी बहादुर सिंह ने कहा
मेरे पूर्वजों ने ही ट्रस्ट को मंदिर संचालन का अधिकार दिया था। फिर मूलनिवासी समाज की पूजा-पद्धति से आपत्ति क्यों? बम्लेश्वरी मंदिर सबका है और सभी को समान सम्मान मिलना चाहिए।

एसडीएम एम.भार्गव ने बताया कि समाज द्वारा ज्ञापन सौंपा गया है और प्रशासन लगातार संवाद की प्रक्रिया में है। उन्होंने कहा दोनों पक्षों ने समस्या के समाधान के लिए सकारात्मक रुख दिखाया है। हमारा प्रयास है कि विवाद संवेदनशीलता और सम्मानजनक तरीके से निपटाया जाए।

माँ बम्लेश्वरी मंदिर छत्तीसगढ़ आस्था का केंद्र है जहाँ हर वर्ग के श्रद्धालु माथा टेकते हैं। लेकिन परंपरा और प्रबंधन के बीच उपजा तनाव अब आस्था और पहचान की बहस में बदल रहा है। प्रशासन के सामने चुनौती केवल विवाद शांत करना नहीं बल्कि विश्वास बहाली की भी है ताकि डोंगरगढ़ फिर से श्रद्धा, मर्यादा और एकता की मिसाल बन सके।

Satyamev News

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