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सुबह से तिरंगा लिए हजारों किसानों का ट्रैक्टर में निकला जनसैलाब, शाम होते-होते उग्र हुआ प्रदर्शन

सत्यमेव न्यूज के लिए अनुराग शाँति तुरे की रिपोर्ट खैरागढ़। जिले में प्रस्तावित श्री-सीमेंट प्लांट और चूना पत्थर खदान को लेकर विरोध आज निर्णायक मोड़ पर पहुँच गया। हाथों में तिरंगा और होंठों पर विरोध के नारे लिए हजारों किसान सुबह से छुईखदान एसडीएम कार्यालय पहुंचने लगे। किसानों ने सरकार से जनसुनवाई रोकने और परियोजना पर पुनर्विचार की जोरदार अपील की। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि निर्धारित क्षेत्र मैदानी, उपजाऊ और घनी आबादी वाला है। यहां प्लांट और खदान खुलने से सिंचित कृषि बुरी तरह प्रभावित होगी, भूजल और पर्यावरण को नुकसान पहुँचेगा तथा बच्चों-बुजुर्गों के स्वास्थ्य पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ेगा। किसान नेताओं ने चेताया कि यह सिर्फ जमीन की लड़ाई नहीं बल्कि अस्तित्व और भविष्य की सुरक्षा का सवाल है।

छुईखदान ब्लॉक के बुंदेली, मैन्हर, पंडरिया होते हुए निकली ट्रैक्टर रैली उदयपुर पहुँची जहाँ पूर्व सांसद स्व.देवव्रत सिंह की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया। इसके बाद 400 से अधिक ट्रैक्टरों का काफिला छुईखदान की ओर बढ़ा। लगभग 8 हजार किसानों का हुजूम, जिनमें बड़ी संख्या में युवा और महिलाएँ थीं रैली से जुड़ता गया। रातभर गांवों में हुई बैठकों में निर्णय लिया गया कि बच्चे और बुजुर्ग प्रदर्शन में शामिल नहीं होंगे। प्रशासन द्वारा रैली रोकने के प्रयासों के बीच किसानों ने शांतिपूर्ण तरीका अपनाते हुए रणनीति बदलकर काफिले को आगे बढ़ाया।

रैली शहर की सीमा तक पहुँची, इससे पहले ही पुलिस ने आमगांव तिराहे पर भारी सुरक्षा व्यवस्था के साथ बैरिकेड्स लगा दिए लेकिन देर शाम स्थिति बिगड़ गई। किसानों ने शहीद नगरी छुईखदान में अवरोध हटाने की कोशिश की तो पुलिस ने जय स्तम्भ चौक में लाठीचार्ज किया। इसके बाद भीड़ उग्र हो गई और पुलिस बल को दौड़ाया गया। कई पुलिसकर्मी और किसान घायल होने की खबरें हैं परंतु संख्या की आधिकारिक पुष्टि नहीं हो पाई है। समाचार लिखे जाने तक छुईखदान शहर में अत्यधिक तनाव व्याप्त था।

प्रस्तावित खदान क्षेत्र के 10 किमी दायरे में आने वाले 39 गांवों ने ग्रामसभा प्रस्तावों के माध्यम से स्पष्ट रूप से परियोजना को नकार दिया है। संडी, पंडरिया, विचारपुर, भरदागोड़ सहित कई पंचायतों ने कहा कि खदान से जलस्रोतों को गंभीर नुकसान पहुँचेगा, कृषि और पशुपालन ठप हो जाएगा, विस्थापन बढ़ेगा, प्रदूषण जीवन की गुणवत्ता को भी प्रभावित करेगा। ग्रामीणों का आरोप है कि आगामी 11 दिसंबर की जनसुनवाई पारदर्शी नहीं है और प्रभावित गांवों की वास्तविक राय शामिल ही नहीं की गई है।

किसानों का कहना है कि जब 39 गांव परियोजना को पहले ही अस्वीकार कर चुके हैं तो जनसुनवाई का कोई औचित्य नहीं बचता। विरोध कृषि, पर्यावरण और जल स्रोतों से आगे बढ़कर अब ग्रामीणों की आजीविका और सम्मान की लड़ाई बन चुका है। किसानों और सामाजिक संगठनों ने साफ चेतावनी दी है कि यदि समय रहते निर्णय नहीं लिया गया तो आंदोलन अगले चरण में जाएगा, जिसकी पूरी जिम्मेदारी प्रशासन की होगी। हजारों किसानों का यह शक्ति-प्रदर्शन रैली एक स्पष्ट संदेश देती है कि स्थानीय जनता अपनी जमीन, जल और भविष्य के सवाल पर किसी कीमत पर समझौता नहीं करेगी।

Satyamev News

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