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पुराने व गंभीर रोगों का होम्योपैथिक पद्धति से उपचार कर रहे डॉ.घनश्याम ढेकवारे

सत्यमेव न्यूज खैरागढ़़. आधुनिकता के परिवेश में ऐलोपैथिक चिकित्सा विज्ञान की चकाचौंध कितनी ही बड़ी क्यों न हो जाये लेकिन आज भी कई ऐसी बीमारियां है जिसका बेहतर उपचार व जड़ से खात्मा करने होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति का कोई सानी नहीं है। यह कहना है खैरागढ़ अंचल में होम्योपैथिक चिकित्सा के क्षेत्र में महारथ हासिल करने वाले डॉ.घनश्याम ढेकवारे का। होम्योपैथिक चिकित्सा को समाजसेवा के रूप में अपनी आजीविका का माध्यम बनाने वाले डॉ.ढेकवारे खैरागढ़ में बीते 18 वर्षों से गायत्री होम्यो क्लीनिक के माध्यम से सतत कई क्लीष्ट रोगों का सफल उपचार कर रहे हैं। मूलतः बालाघाट जिले के ग्राम परसोड़ी (लांजी) के रहने वाले डॉ.घनश्याम ढेकवारे साढ़े पांच वर्षों तक बी.एच.एम.एस. (बैचलर ऑफ होम्योपैथिक मेडिसीन एंड सर्जरी) की पढ़ाई कर सन् 2006 में खैरागढ़ एक वैवाहिक समारोह में सम्मिलित होने आये थे और खैरागढ़ में होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति की संभावनाओं को तलाशकर यहां एक छोटे स्वरूप में चिकित्सालय की शुरूआत की। डॉ.घनश्याम ढेकवारे का जीवन व आजीविका के क्षेत्र में सफलता को लेकर उनका प्रारंभिक दौर वैसे तो संघर्षपूर्ण रहा लेकिन उनके जीजा जी के तबादले ने उन्हें होम्योपैथिक चिकित्सा सेवा की ओर प्रेरित किया। डॉ. ढेकवारे बताते हैं कि 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वह पहले इंजीनियर बनना चाहते थे जिसके लिये उन्होंने भोपाल में दाखिला भी लिया, बात नहीं बनी तो गोंदिया में बीएससी की पढ़ाई जारी रखी और फिर पर्यावरण विज्ञान विषय में अध्ययन शुरू किया। उनके दादा स्व.डॉ.गणेश ढेकवारे व पिता डॉ.हेमराज ढेकवारे अपने क्षेत्र में पारंपरिक रूप से ही चिकित्सा का कार्य करते थे। पारिवारिक पृष्ठभूमि वैसे तो एक कृषक परिवार की रही लेकिन दादा व पिता की प्रेरणा से ही वे होम्योपैथिक चिकित्सा की ओर प्रेरित हुये।

खैरागढ़ के ईतवारी बाजार में डॉ.घनश्याम ढेकवारे ने अप्रैल 2006 में क्लीनिक की स्थापना की और चिकित्सा सेवा प्रारंभ की। इसके ठीक 5 महीने बाद ही 14 सितंबर 2006 को खैरागढ़ में फिर से भयानक बाढ़ आयी और बाढ़ में उनका पूरा क्लीनिक बर्बाद हो गया लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। कुछ दिन बाद दाऊचौरा में शिफ्ट हुये फिर अस्पताल चौक खैरागढ़ में होम्योपैथिक की चिकित्सा सेवा देना उन्होंने शुरू किया। डॉ. ढेकवारे बताते हैं कि उनके शुरूआती दौर में होम्योपैथिक को लेकर लोगों की सोच साबूदाने की गोली वाली मानसिकता तक ही सीमित थी। लोग इसलिये भी होम्योपैथिक में उपचार करवाना पसंद नहीं करते थे क्योंकि एलोपैथिक चिकित्सा की अपेक्षा होम्योपैथिक में उपचार का असर बहुत धीरे होता था। तब तक यहां लोगों को होम्योपैथिक की पेटेंट मेडिसीन की जानकारी नहीं थी। डॉ.ढेकवारे ने होम्योपैथिक में इसकी शुरूआत की। वे बताते हैं कि पेटेंट मेडिसीन होम्योपैथिक में वैसा ही काम करता है जैसे एलोपैथिक दवाईयां किसी भी बीमारी में तुरंत अपना असर दिखाती है। लागत अधिक होने और लोगों तक इसकी पहुंच नहीं होने के कारण घनश्याम जरूरत पड़ने पर घर पहुंच सेवा भी देते रहे। 10 साल के संघर्ष के बाद उनकी होम्योपैथिक उपचार पद्धति ने लोगों के बीच असर दिखाना शुरू किया और अब हर छोटी बीमारी से लेकर गंभीर बीमारियों तक उपचार के लिये मरीज दूर-दूर से उनके पास पहुंचते हैं।

होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति अपने शोध व आधुनिक परिवेश में अब एक अलग मुकाम बनाये हुये हैं। डॉ.घनश्याम ढेकवारे बताते हैं कि अब जीर्ण व पुरानी से पुरानी बीमारियों का होम्योपैथिक में बेहतर से बेहतर उपचार उपलब्ध है। अपने अनुभव को साझा करते हुये उन्होंने बताया कि जब उन्होंने इस क्षेत्र में चिकित्सा सेवा शुरू की थी तो उनके 65 वर्षीय फूफा को पैरालीसीस अटैक आया और वे पहले तो लकवाग्रस्त हुये और एक माह बाद कोमा में चले गये। एलोपैथिक में लाखों रूपये खर्च करने और लंबे इंतजार के बाद भी उन्हें कोई आराम नहीं मिला लेकिन इस बीच घनश्याम को होम्योपैथिक दवाईयों पर पूरा भरोसा था, वे अपने बीमार व कोमा में संघर्ष कर रहे फूफा जी से मिलने गये और परिजनों को आश्वस्त करते हुये दवाईयां शुरू की। 10 दिन में असर दिखने लगा और सालभर में वे पूरी तरह स्वस्थ हो गये। डॉ.ढेकवारे बताते हैं कि न केवल गठिया, वात व साइटिका बल्कि पैरालीसीस के साथ ही त्वचा, फेफड़ा, आंख सहित अन्य क्रॉनिक एलर्जी सहित ट्यूमर, फाईब्राईट, मसा, गर्भाशय की जटिल बीमारियां तथा आधुनिक प्रवेश में होने वाली पीसीओडी की समस्याओं का भी समाधान बहुत बेहतर तरीके से होम्योपैथिक में संभव है। आज सैकड़ों मरीज होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति से अपनी जटिल बीमारियों का सहज उपचार प्राप्त कर रहे हैं।

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