छुईखदान जनपद पंचायत में लाखों का घोटाला उजागर फिर कोई कार्रवाई नहीं

विधानसभा में मामला उठाने के बाद भी नहीं हो रही कार्रवाई
जनप्रतिनिधि अब हाईकोर्ट का करेंगे रुख
सत्य मेव न्यूज: छुईखदान. जनपद पंचायत छुईखदान में बीते तीन वर्षों की विकास योजनाओं में भारी वित्तीय अनियमितताओं का मामला सामने आया है। वर्ष 2020-21, 2021-22 और 2022-23 की योजनाओं की समीक्षा में लाखों रुपये का गबन उजागर होने के बावजूद प्रशासनिक स्तर पर अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो सकी है। जनप्रतिनिधियों का आरोप है कि अफसरशाही और राजनीतिक दबाव के चलते मामले को जानबूझकर दबाया जा रहा है।
जांच के आदेश तो मिले, लेकिन कार्रवाई सिर्फ कागजों तक सीमित
प्रशासन द्वारा घोटाले की पुष्टि के बाद जांच के आदेश दिए गए थे, लेकिन तीन वर्षों में कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया। जनपद अध्यक्ष सहित अन्य सदस्यों ने इसे गंभीर लापरवाही बताते हुए कहा कि जिम्मेदार अधिकारियों की चुप्पी घोटाले को संरक्षण देने का प्रमाण है।
हाईकोर्ट जाएंगे जनप्रतिनिधि, स्वतंत्र जांच की मांग
जनपद अध्यक्ष और सदस्यों ने अब उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाने का निर्णय लिया है। उनका कहना है कि जब स्थानीय प्रशासन और जिला अधिकारी जवाबदेही से बचते रहें तब न्याय की उम्मीद सिर्फ अदालत से ही की जा सकती है। वे इस पूरे घोटाले की सीबीआई या किसी स्वतंत्र उच्चस्तरीय एजेंसी से जांच कराने की मांग कर रहे हैं।
विधानसभा में भी उठा था मामला
क्षेत्रीय विधायक श्रीमती यशोदा नीलांबर वर्मा ने भी विधानसभा में इस भ्रष्टाचार का मुद्दा जोर-शोर से उठाया था। उन्होंने योजनाओं में घोटाले की बात रखते हुए दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की थी लेकिन इसके बावजूद राज्य सरकार या संबंधित विभाग की ओर से कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया गया, जिससे जनाक्रोश बढ़ता जा रहा है। मामले में जनपद सदस्यों ने तीखा रुख अपनाते हुए कहा कि “जनता का पैसा, विकास के लिए है- भ्रष्टाचार के लिए नहीं” जनता के टैक्स का पैसा विकास कार्यों में लगे, न कि भ्रष्टाचारियों की जेब में जाए। यदि शीघ्र ही न्याय नहीं मिला तो वे व्यापक जनआंदोलन छेड़ने से भी पीछे नहीं हटेंगे। बहरहाल छुईखदान जनपद पंचायत में सामने आया यह घोटाला न केवल स्थानीय प्रशासन की जवाबदेही पर सवाल उठाता है बल्कि सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में पारदर्शिता और ईमानदारी की गंभीर कमी को भी उजागर करता है। अब देखना यह है कि उच्च न्यायालय में जाने के बाद न्याय की दिशा में कोई ठोस पहल होती है या नहीं।