खैरागढ़ विश्वविद्यालय की कुलपति ममता चंद्राकर की नियुक्ति असंवैधानिक- यादव
पत्रवार्ता में खैरागढ़ कुलपति की नियुक्ति को लेकर उठे गंभीर सवाल
नियमों की अनदेखी कर की गई ममता की कुलपति पद पर नियुक्ति
यूजीसी के नियमों के विपरीत 2019 से चल रहा कुलपति का कार्यकाल
सत्यमेव न्यूज/खैरागढ़. इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ की कुलपति ममता (मोक्षदा) चंद्राकर की नियुक्ति को पूरी तरह से असंवैधानिक बताया गया है. उक्त मामले को लेकर रविवार की शाम खैरागढ़ जिला पत्रकार संघ में हुई पत्रवार्ता में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित सेवानिवृत्त शिक्षक बीआर यादव ने कुलपति श्रीमती चंद्राकर की नियुक्ति को लेकर तथ्य पेश करते हुये गंभीर आरोप लगाया है. श्री यादव ने बताया कि नियमों की अनदेखी कर खैरागढ़ विश्वविद्यालय में ममता चंद्राकर की कुलपति के पद पर नियुक्ति की गई है जो कि असंवैधानिक है तथा यूजीसी के नियमों के विपरीत है.
कुलपति चयन के लिये जानिये क्या है नियम-निर्देश
पत्रवार्ता में कुलपति की नियुक्ति को लेकर श्री यादव ने बताया कि राजभवन रायपुर द्वारा जारी विज्ञापन अनुसार कुलपति के पद पर नियुक्त होने वाला व्यक्ति अकादमिशियन तथा उसके पास प्राध्यापक के पद पर 10 वर्षों का कार्यानुभव होना चाहिये. कुलपति की नियुक्ति से संबंधित विश्वविद्यालय के अध्यादेश 171 की धारा 7 में भी कुलपति के पद पर नियुक्त होने वाले व्यक्ति को उपरोक्त आर्हता आवश्यक है. यूजीसी द्वारा जारी विनियम 2018 तथा विवि के अध्यादेश 171 के अनुसार कुलपति चयन के लिये विशेषतौर पर गठित चयन समिति से अनुशंसित नामों के पैनल से ही नियमानुसार कुलपति नामित किया जाता है. श्री यादव ने बताया कि राजभवन से आरटीआई के माध्यम से प्राप्त जानकारी अनुसार श्रीमती चंद्राकर की नियुक्ति के दौरान उक्त नियमों का पालन नहीं किया गया है. श्रीमती चंद्राकर अकादमिशियन नहीं है और उन्होंने किसी भी महाविद्यालय अथवा विश्वविद्यालय में कभी भी नियमित प्राध्यापक पद पर 10 वर्ष की आर्हता प्राप्त नहीं की है. उनके पास कुलपति पद पर नामित होने अनिवार्य 10 वर्ष की प्रोफेसरशिप की योग्यता नहीं है. यह भी ज्ञात हो कि पद्मश्री और संगीत नाटक अकादमी के अवार्ड को प्रोफेसर के समरूप नहीं माना जाता है. पत्रवार्ता में श्री यादव ने यह भी बताया कि भारतीय संविधान के आर्टिकल 254 के अनुसार राजकीय नियम और केन्द्रीय नियमों के मध्य विरोधाभास की स्थिति में केन्द्रीय नियम सर्वोपरी एवं मान्य होंगे. कुलपति की नियुक्ति के विषय में यूजीसी द्वारा विनिमय 2018 के अनुसार 10 वर्ष प्राध्यापक सेवा का कार्यानुभव होना अनिवार्य है जो कि लोकसभा तथा राज्यसभा देश के दोनों उच्च सदनों द्वारा पारित केन्द्रीय नियम है. गौरतलब हो कि श्रीमती चंद्राकर की नियुक्ति राजभवन द्वारा जारी आदेश क्र.एफ 1-6/2019/रास/यू-4 दिनांक 21.07.2020 के माध्यम से विश्वविद्यालय अधिनियम 2019 के निहित कुलाधिपति के स्वेच्छा अधिकार के अंतर्गत किया गया था. श्री यादव ने बताया कि सर्वोच्च न्यायालय के रीट पिटिशन सिविल क्र.1525 ऑफ 2019 के निर्णय अनुसार केन्द्रीय विनियमों का विरोधाभासी होने के कारण राजकीय नियमों का उक्त प्रावधान लागू नहीं होगा.
हटाये जा चुके हैं बिलासपुर विश्वविद्यालय के कुलपति
पत्रवार्ता में श्री यादव ने बताया कि ऐसे ही एक मामले में अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय में एक प्रकरण में बनारस के विधि छात्र द्वारा राजभवन में की गई शिकायत के आधार पर जिसके अनुसार प्रो.सदानंद साही को प्रोफेसरशिप के 10 वर्षों के कार्यानुभव में केवल 23 दिन शेष होने पर भी राजभवन रायपुर द्वारा प्रोफेसरशाही को कुलपति के पद से मुक्त कर दिया गया था लेकिन यहां दोहरे मापदंड में श्रीमती चंद्राकर अनवरत खैरागढ़ विवि की कुलपति बनी हुई है.
बीते 2 दिसंबर को 65 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुकी हैं कुलपति चंद्राकर
पत्रवार्ता में श्री यादव ने बताया कि श्रीमती चंद्राकर की असंवैधानिक नियुक्ति यूजीसी के विनिमयों के विरूद्ध उनके आदेश में स्पष्ट रूप से उल्लेखित विवि अधिनियम 2019 के अंतर्गत निहित प्रावधानों के अनुसार 65 वर्ष की आयु पूर्ण अथवा 5 साल जो भी पहले तक हुई थी. कुलपति के कार्यकाल की अवधि से संबंधित यह बात स्पष्ट रूप से राजभवन के विज्ञापन में भी उल्लेखित है. ज्ञात हो कि श्रीमती चंद्राकर 2 दिसंबर 2024 को 65 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुकी हैं बावजूद इसके अब तक कुलपति के पद पर नियम विरूद्ध काबिज हैं. इस संबंध में आरटीआई से प्राप्त दस्तावेज एवं नोटशीट के अवलोकन से स्पष्ट है कि श्रीमती चंद्राकर के कार्यकाल को अधिनियम 2021 के अंतर्गत 70 साल अथवा 5 वर्ष जो भी पहले हो तक बढ़ाने वाले राजभवन के प्रस्ताव पर राज्यपाल द्वारा सक्षम अनुमोदन अंकित नहीं किया गया है तथा प्रस्ताव पर महामहिम के सचिव द्वारा लंबित रखा गया है. तय है कि नियमों के अनुरूप कुलपति के 65 साल बाद सेवा जारी रखने के लिये कोई भी आदेश राजभवन द्वारा जारी नहीं किया गया है. इससे यह स्पष्ट होता है कि श्रीमती चंद्राकर का कुलपति के पद पर एक दिन भी अतिरिक्त काबिज रहना अवैधानिक है वहीं यह भी यक्ष प्रश्र है कि विवि के कुलसचिव द्वारा कुलपति के नवीन नियुक्ति के लिये प्रस्ताव पत्र राजभवन को अब तक क्यों नहीं भेजा गया है. इन तथ्यों का आधार बताकर श्री यादव ने श्रीमती चंद्राकर की नियुक्ति को समाप्त करने की मांग की है और कहा है कि श्रीमती चंद्राकर द्वारा नियम विरूद्ध की गई उल्लेखित कार्यवाहियां विवि अधिनियम की धारा 10-6 के अंतर्गत अपास्त करने योग्य है. विडंबना है कि सच सामने आने के बाद भी नैतिकता के आधार पर श्रीमती चंद्राकर स्वयं कुलपति के पद से क्यों त्यागपत्र नहीं दे रही हैं. ऐसे में राजभवन से आदेश जारी कर विवि के वरिष्ठ प्राध्यापक को नियमानुसार प्रभारी कुलपति नियुक्त कर विवि को नवीन कुलपति की नियुक्ति की प्रक्रिया प्रारंभ करनी चाहिये.
आरटीआई में जानकारी देने किया गया भ्रमित, अपील बाद राजभवन से मिली जानकारी
श्री यादव ने वार्ता में बताया कि कुलपति की नियुक्ति से संबंधित दस्तावेजों की मांग उन्होंने विश्वविद्यालय प्रशासन से की थी लेकिन सूचना के अधिकार के तहत जानकारी देने उन्हें लगातार परेशान व भ्रमित किया गया. राजभवन में अपील के बाद उन्हें नियुक्ति से संबंधित चाही गई जानकारी मिली. श्री यादव ने बताया कि साक्ष्य प्राप्ति के बाद ही उन्होंने पत्रवार्ता के माध्यम से जनहित में कुलपति मोक्षदा (ममता) चंद्राकर की गलत तरह से की गई नियुक्ति के संबंध में आज खुलासा किया है.
कुलपति चंद्राकर को हटाने चलेगा चरणबद्ध आंदोलन
वार्ता में श्री यादव ने बताया कि शीघ्र ही राजभवन को समक्ष साक्ष्यों के साथ मामले की विधिवत शिकायत की जायेगी. प्रथम स्तर पर केसीजी कलेक्टर के माध्यम से राजभवन को ज्ञापन भेजा जायेगा. उचित कार्यवाही नहीं होने पर चरणबद्ध जनआंदोलन किया जायेगा और शीघ्र ही हाईकोर्ट में भी कुलपति श्रीमती चंद्राकर के विरूद्ध जनहित याचिका लगाई जायेगी.