खबर का असर: 64.77 लाख के कथित नीलामी घोटाले में खैरागढ़ सीएमओ ने 11 दुकानों की नीलामी निरस्त की

शिकायतकर्ता की पहल और मीडिया की पैनी निगाह से हिली प्रशासनिक व्यवस्था
अब आगे जांच पर रहेंगी सबकी निगाहें
सत्यमेव न्यूज खैरागढ़। नगर पालिका परिषद् खैरागढ़ में दुकानों की नीलामी को लेकर सामने आए 64 लाख 77 हजार रुपये के कथित वित्तीय घोटाले ने प्रशासन को त्वरित कार्रवाई के लिए मजबूर कर दिया। मामले के उजागर होने के बाद बढ़ते जनदबाव, मीडिया की प्रभावी भूमिका और शिकायतकर्ताओं की सक्रिय पहल के चलते नगरपालिका ने संपूर्ण नीलामी प्रक्रिया को तत्काल प्रभाव से निरस्त करते हुए आदेश जारी कर दिए। यह पहली बार है जब पालिका ने किसी वित्तीय अनियमितता पर इतनी शीघ्र और निर्णायक कार्रवाई की है। ज्ञात हो कि नगर पालिका परिषद खैरागढ़ द्वारा 14 नवंबर को जारी आदेश में 14 अक्टूबर 2025 को मणिकंचन केंद्र धरमपुरा एवं फतेह मैदान परिसर में की गई 11 दुकानों की नीलामी को अपरिहार्य कारणों का हवाला देते हुए रद्द कर दिया गया है। हालांकि आदेश में न तो गड़बड़ियों का उल्लेख है और न ही संबंधित अधिकारियों या नीलामीकर्ताओं की भूमिका पर कोई स्पष्ट टिप्पणी। इसके बावजूद यह कदम साफ संकेत देता है कि उजागर हुई अनियमितताओं ने प्रशासनिक तंत्र को कठघरे में खड़ा कर दिया था।
जानिए कैसे बढ़ा दबाव: खुलासे से उछले सवाल और शिकायतों ने की घेराबंदी
जानकारी अनुसार इन 11 दुकानों की नीलामी में वर्ष 2023 में 1.48 करोड़ रुपये की उच्चतम बोली लगी थी किन्तु बोलीकर्ता राशि जमा नहीं कर सके। हैरानी की बात यह कि इन्हीं बोलीकर्ताओं को 2025 में दोबारा मौका देकर दुकानों को आधे से भी कम मूल्य पर आवंटित कर दिया गया जिससे नगर पालिका को कुल 64.77 लाख रुपये का कथित नुकसान हुआ। जैसे ही यह जानकारी सार्वजनिक हुई शहर में नाराजगी और अविश्वास का माहौल गहराने लगा।
आरटीआई कार्यकर्ता आदित्य सिंह परिहार ने इस मामले की विस्तृत शिकायत जिला कलेक्टर को भेजते हुए नीलामी निरस्त करने, जांच बैठाने और दोषियों पर कठोर कार्रवाई की मांग की वहीं पूरे मामले को जनहित में संज्ञान में लेते हुए विधायक प्रतिनिधि मनराखन देवांगन ने नगरीय प्रशासन विभाग रायपुर और संयुक्त संचालक दुर्ग को तुलनात्मक आँकड़ों सहित शिकायत कर इस नीलामी को संगठित वित्तीय अनियमितता की संज्ञा दी। खुलासे के बाद सोशल मीडिया से लेकर स्थानीय राजनीतिक दायरों तक नगर पालिका प्रशासन की कार्यप्रणाली पर तीखे सवाल खड़े हुए और जन दबाव बढ़ता गया तथा अंततः पालिका को नीलामी रद्द करने का निर्णय लेना पड़ा।
प्रश्न अभी बाकी है: निरस्तीकरण तो हुआ, पर जवाब अब भी अधूरे
यद्यपि नीलामी निरस्त कर दी गई है लेकिन आदेश में अनियमितता के मूल कारणों, जिम्मेदार अधिकारियों के नाम और नीलामी प्रक्रिया में हुई कथित लापरवाही पर कोई स्पष्टता नहीं दी गई है। इससे यह सवाल और गहराने लगे हैं कि क्या अब आगे न्यायसंगत और पारदर्शी जांच होगी अथवा मामला निरस्तीकरण के फैसले तक ही सीमित रह जाएगा। फिलहाल शहर की निगाहें प्रशासन की अगली कार्रवाई पर टिकी हैं। क्या दोषियों की पहचान होगी, क्या नुकसान की भरपाई सुनिश्चित की जाएगी और क्या भविष्य में ऐसी अनियमितताओं पर अंकुश लगेगा? जनता और शिकायतकर्ताओं की अब यही अपेक्षा है कि जांच निष्पक्ष, तथ्यपरक और समयबद्ध हो।

