सावन माह में रूक्खड़ स्वामी का होगा रूद्राभिषेक
प्रत्येक सोमवार रूद्राभिषेक का आमजन ले सकेंगे लाभ
सत्यमेव न्यूज़/खैरागढ़. गुरूवार 14 जुलाई से आरंभ होने जा रहे सावन माह को लेकर सिद्धपीठ श्री रुक्खड़ स्वामी मंदिर में परंपरा अनुसार पूरे माह भर रुद्राभिषेक होने जा रहा है. ज्ञात हो कि सावन माह में पार्थिव शिवलिंग के अभिषेक का विशेष महत्व बताया गया है. श्री रुक्खड़ स्वामी मंदिर में बीते कई वर्षों से सावन माह में पार्थिव शिवलिंग के अभिषेक का आयोजन किया जाता रहा है. रुद्राभिषेक की इसी कड़ी को आम जनमानस के लिये भी पूजन अवसर के रूप में खोला जा रहा है. श्रद्धालु निर्धारित पूजन राशि खर्च कर नियमित रूप से पार्थिव शिवलिंग अभिषेक में हिस्सा ले सकते हैं. इसके अतिरिक्त प्रत्येक सोमवार को आयोजित राजसी रुद्राभिषेक में आम जन हिस्सा ले सकते हैं. ट्रस्ट समिति के अध्यक्ष रामकुमार सिंह ने बताया कि मंदिर में सावन पर्व पर रुद्राभिषेक की परंपरा बीते कई वर्षों से चली आ रही है. बाबा के प्रति क्षेत्र के धर्मप्रेमियों की बढ़ती आस्था को ध्यान में रखते हुए इस बार सावन पर्व में माह भर सभी के पूजा-पाठ के लिए व्यवस्था बनाई जा रही है.
ऐसा है पार्थिव लिंग के अभिषेक का महत्व
सावन में किसी सिद्ध स्थल व शिव मंदिर में पार्थिव लिंग के अभिषेक का अपना ही महत्व है. मंदिर के आचार्य पं.धर्मेंद्र दुबे ने बताया कि कलयुग में मोक्ष प्राप्ति के लिए और व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने मिट्टी के शिवलिंग को उत्तम बताया गया है. कहा जाता है कि जो भी भक्त मिट्टी का शिवलिंग बनाकर पार्थिव शिवलिंग का पूजन और रुद्राभिषेक करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और विशेष फल की प्राप्ति होती है. इतिहासकार बताते हैं कि श्री रुक्खड़ स्वामी महाराज भगवान शिव के अनन्य भक्त थे. सन 1700 के आसपास वे अमरकंटक से निकलकर खैरागढ़ पहुंचे थे, जहां उन्होंने विभूति रूप में भगवान को तत्कालीन शासक टिकैतराय से स्थापित करवाया था. श्री रुक्खड़ स्वामी मंदिर भारत में एकमात्र सिद्धपीठ है जहां विभूति मतलब राख से बने पीठ को शिव स्वरूप मानकर पूजन किया जाता है. गर्भगृह के ठीक सामने वर्षों से श्री रुक्खड़ स्वामी महाराज से प्रज्वलित धुनि जल रही है जो सभी कष्टों के निदान का कारक माना जाता है.
बेल वृक्ष की मौजूदगी बढ़ाती है महत्व
मंदिर परिसर में अतिप्राचीन बेल का वृक्ष विराजमान है. आचार्य दुबे बताते हैं कि जिन स्थानों पर बिल्वपत्र का वृक्ष होता है, वह काशी तीर्थ के समान पूजनीय और पवित्र है, जहां अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है. इसी वृक्ष के नीचे बनाए गए सभा कक्ष में पार्थिव शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है. कार्यक्रम में प्रतिदिन शाम 4 बज़े से प्रतिष्ठित मानस मंडलियां शिव कथा व रामकथा के प्रसंगों को संगीतमय तरीके से प्रस्तुत करेंगे. प्रत्येक शनिवार सुंदरकांड का पाठ भी किया जायेगा. इस दौरान परिजनों के नाम से महामृत्युंजय का जाप करने की भी सुविधा बनाई गई है.