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राजनांदगांव

महाविद्यालय में लोकमत का सम्मान कहानी पर हुई संगोष्ठी

पाठक मंच के तत्वाधान में कार्यक्रम आयोजित

सत्यमेव न्यूज़/खैरागढ़. रानी रश्मि देवी सिंह शासकीय महाविद्यालय में शुक्रवार 5 अगस्त को पाठक मंच खैरागढ़ व हिन्दी विभाग के तत्वाधान में प्रेमचंद जयंती के अवसर पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया. प्रेमचंद जयंती पर उनके द्वारा रचित कहानी लोकमत का सम्मान पर संगोष्ठी हुई. इस अवसर पर संस्था के प्राचार्य डॉ.डीके बैलेन्द्र ने स्वागत अभिभाषण प्रस्तुत करते हुये कहा कि इस तरह के साहित्यिक आयोजनों को भविष्य में भी आयोजित किया जाये जिससे छात्रों में साहित्य के प्रति रूचि बनी रहे. कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित डॉ.वीरेंद्र मोहन शुक्ल ने कहा कि ऐसा नहीं है कि प्रेमचंद के पहले कहानी लिखी नहीं जाती थी. पंचतंत्र, बेताल पच् चीसी की कहानियाँ थी. इन कहानियों में राजा-रानी, पशु-पक्षी पात्र रहे. प्रेमचंद ने पहली बार प्रजा, जाति-आम आदमी को कहानियों का मुख्य पात्र बनाया. लोकमत का सम्मान भी इसी का प्रतीक है. उन्होंने स्वतंत्रता पूर्व व बाद में पत्रकारिता से जुड़े साहित्यकारों के अवदान को भी रेखांकित किया. वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.जीवन यदु ने कहा कि हर साहित्यकार अपने समय को लिखता है, जैसे वाल्मीक, तुलसी, मैथिलीशरण गुप्त. ठीक ऐसे ही प्रेमचंद जी भी अपने समय को लिख रहे थे. उनकी अच्छी कहानी समय का अतिक्रमण करती है, जैसे यह कहानी. कहानी के माध्यम से सामाजिक संबंधों को समझा जा सकता है. विनयशरण सिंह ने कहा कि सामंतवादी व्यवस्था की बेगारी और अत्याचार के पृष्ठभूमि पर लिखी गई कहानी है. बदलते समाज में विसंगतियाँ आती है, उन विसंगतियों से पाठक को बाहर निकालती हुई कहानी है. पाठक मंच खैरागढ़ के संयोजक डॉ.प्रशान्त झा ने कहा कि भारतीय समाज में चिंतन की प्रवृत्ति है, वह प्रेमचंद जी के लोकमत का सम्मान जैसी साहित्यिक रचनाओं के कारण है. कहानी में पलायन और शहरीकरण का जिक्र है. वह आज भी हमारे चिंतन की मुख्यधारा में है. अनुराग तुरे ने कहा कि यह कहानी नैतिकता व ईमानदारी के ईर्द-गिर्द उत्थान से पुनरूत्थान और नैतिकता के पतन की कथा-व्यथा है वहीं ग्रामीण पृष्ठभूमि से शहरीवाद के बीच पलायन को पूरी साफगोई से रेखांकित करती है.
विप्लव साहू ने कहा कि यह कहानी भारतीय समाज के बदलते दौर को चित्रित करती है. भारतीय समाज को समझना है तो वो प्रेमचंद्र की कहानियां को पढऩा होगा. संकल्प यदु ने कहा कि प्रेमचंद जी का पूरा साहित्य मानवता और मनुष्यता के बीच रेखा को स्पष्ट करती है. कहानी की पहली पंक्ति में मनुष्य शब्द बेचू के लिए है, बजाय मानव के, कहानी आगे बढ़ती हुई मनुष्यता का पक्षधर बनकर निरंकुशता का तर्क से विरोध को रेखांकित करती है. कार्यक्रम का संचालन करते हुये यशपाल जंघेल ने कहा कि प्रेमचंद ने कहानियों को कम, अपने समय को अधिक लिखा है और जो लिखा है उसके बीच की खाली जगह अधिक महत्वपूर्ण है. प्रशांत सहारे ने कहा कि प्रेमचंद ने शराब की विसंगतियों की ओर इशारा किया है. एमए हिंदी के छात्र मूलचंद वर्मा ने कहा कि प्रेमचंद ने कथा के माध्यम से राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक विसंगितयों को उजागर किया है. लोकमत का सम्मान कहानी का पाठ एमए हिन्दी की छात्रा कु.धनेश्वरी वर्मा व कु.पूजा ठाकुर ने किया. कार्यक्रम को मूर्त रुप देने में प्रो.जीएस भाटिया, सुविमल श्रीवास्तव, डॉ.उमेंद चंदेल, जीतलाल साहू, मुकेश वाधवानी, सतीश कुमार, सीमा पंजवानी, सृष्टि वर्मा, मनीषा नायक, किशन देवांगन, बिदू शोरी की महत्वपूर्ण भूमिका रही. ग्रंथपाल जेके वैष्णव ने ज्ञान की गंगा बहाने के लिये सभी अतिथियों का आभार जताया.

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