क्रेशर खदान से ग्रामीण हलाकान: 5000 हजार की आबादी धुल-धमाके से त्रस्त
खनिज विभाग मलाई खाने में मस्त, कारवाई के नाम पर खानापूर्ति
सत्यमेव न्यूज/खैरागढ़. ब्लाॅक के कलकसा, टेकापार, बल्देवपुर, साल्हेभर्री, जुरलाकला में गिट्टी खदान थोक के भाव में खुले हुये हैं. खदान की स्थिति वर्तमान स्थिति यह हैं कि 100-150 फीट गहराई हो चुकी हैं. रात में बम धमाके से क्षेत्र के लोग डरे हुये हैं लेकिन संबंधित विभाग के अधिकारी कुंभकर्णी नीद में सोए हुये हैं. विभाग कारवाई के नाम पर खानापूर्ति कर रहे है. क्रेशर संचालक शासकीय भूमि पर खनन करके पत्थर निकाल रहें हैं. लेकिन विभाग सिर्फ झुनझुना बजा रही हैं.
ग्रामीण आबादी तक पंहुच रही हैं ब्लास्टिंग की धमक
क्षेत्र में पत्थर खदान गहराई होने के कारण ब्लास्टिंग की धुल-धमाके के लोग सहमें हुये हैं. आबादी क्षेत्र तक ब्लास्टिंग की कंपन पंहुच रहीं हैं. लोग नये घर बनाने से डरते हैं क्योंकि कुछ घरों में दरार की स्थिति बनी हुई है. यहां पत्थर तोड़ने के दिन-रात किसी भी समय धमाके किये जाते हैं. इससे घरों के दीवारों पर दरारें पड़ गई हैं. जिला मुख्यालय से महज 10 किमी की दूरी पर बसे कलकसा, टेकापार, बल्देवपुर, साल्हेभर्री, जुरलाकला में क्रेशर संचालक द्वारा 24 घंटे किसी भी वक्त ब्लास्टिंग कर दी जाती हैं. जिससे लोगों में डर का महौल बना हुआ हैं.
जिला निर्माण के बाद बंधी थी उम्मीद पर चार साल से कोई देखने भी नहीं पहुंचा
जानकारी के मुताबिक अधिकांश खदानों व क्रेशर के लिए चार एकड़ जमीन आबंटित है. इलाके में रहने वाले जानकार ग्रामीण बताते हैं कि पिछले चार साल से यहां जांच भी नहीं की गई है कि सभी खदानें निर्धारित क्षेत्र में ही चल रही हैं या अवैध तरीके से खनन किया जा रहा है. ग्रामीणों के मुताबिक कभी-कभी सरकारी गाड़ियों में कुछ सफेदपोश लोग आते हैं, लेकिन कभी किसी खदान में किसी तरह की कार्रवाई या बदलाव उन्हें नहीं दिखता है.
क्रेशर संचालक कर रहे हैं नियमों की खुलेआम अनदेखी
क्रेशर संचालक ने नियमों की अनदेखी कर किस तरह पत्थर का अवैध उत्खनन किया है इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि माइनिंग विभाग ने जितनी जगह पर उत्खनन करने की अनुमति दी है, उससे चार गुना से ज्यादा जगह से पत्थर का अवैध उत्खनन किया जा रहा है. साथ शासकीय भूमि का भी उत्खनन किया जा रहा है.
इन इलाकों में हो रहा है अवैध उत्खनन
क्षेत्र के कलकसा, दपका, बलदेवपुर, जुरलाकला, घोठिया आदि इलाकों में चल रहे क्रेशर संचालकों ने अनुमति से चार गुना ज्यादा पत्थर का अवैध उत्खनन कर कर दिया लेकिन विभाग इस कोई ध्यान नहीं दे रहा है.
क्रेशर खदानों के बेरोकटोक संचालन से ग्रामीण परेशान
खदान और क्रेशर की लीज पहले 5 साल के लिए दी जाती थी. 2018 के बाद नियम बदल गए हैं और अब 30 साल के लिए लीज दी जा रही है. यानी इन चारों गांवों के लोगों को 2048 तक इसी हाल में जीना होगा.
जानिये आसपास के गांवों की ये हैं समस्याएं
- सड़कें-नालियां डैमेज
गिट्टी ढोने वाली बड़ी-बड़ी गाड़ियों के कारण गांव की सड़कों पर गड्ढे हो गए हैं. नालियां टूट रही हैं. तेज रफ्तार गाड़ियों से हादसे का डर बना रहता है.
- खेत बंजर हो रहे
क्षेत्र के आसपास के इलाके में पहले धान की खेती होती थी, लेकिन क्रेशर के डस्ट के कारण खेत बंजर होते जा रहे हैं. धूल की परत से फसल खराब हो जाती है.
- सिलिकोसिस बीमारी का डर
खदान और क्रशर के आसपास के लोगों में सिलिकोसिस बीमारी का खतरा है. ग्रामीणों के मुताबिक बड़ी संख्या में लोगों को अब सांस लेने में दिक्कत होने लगी है.
- भू-जल स्तर गिर रहा
पत्थर तोड़ने के लिए लगातार धमाकों के कारण ग्राउंड वाटर लेवल गिर रहा है. पहले 200 फीट पर पानी आता था, जो अब 500 फीट तक चला गया है. आलम यह हैं कि शासकीय जमीन का कुछ क्रेशर संचालक उत्खनन कर रहे और इन तुगलकी हालातों में जिला निर्माण के बाद भी जांच करने वाला कोई नहीं है.