संतति की दीर्घायु कामना के साथ अंचल में श्रद्धा पूर्वक मनाया गया हलषष्ठी पर्व
माताओं ने नियमानुसार व्रत रख की विशेष पूजा अर्चना
न्यूज़ खैरागढ . नगर सहित जिले में परंपरा अनुसार हलषष्ठी का पावन पर्व श्रद्धापूर्वक मनाया गया। संतति की दीर्घायु, स्वास्थ्य व सुख-समृद्धि की कामना को लेकर अंचल की मातृशक्तियों ने कमरछठ का यथाशक्ति निर्जला उपवास रखा,
खैरागढ़ में विधायक यशोदा वर्मा ने भी उपवास रख विधिवत पूजा अर्चना की। ज्ञात हो कि इस त्यौहार के दिन माताएं व्रत रखकर अपने संतान की रक्षा व दीर्घायु की कामना करते हुये मां हलषष्ठी व भगवान बलराम की विधिवत पूजा अर्चना करती हैं।
माताओं ने व्रत रखने सुबह से स्नान कर अपनी संतति की लंबी आयु की कामना करते हुये निर्जला व्रत रखा व शाम को अपने घरों के सामने मिट्टी का तालाब (सगरी) बनाकर उसमें झरबेरी, पलाश की टहनी व कांस की डाल को एक साथ बांधते हुये तथा अपने-अपने घर से गेहूं, चना, धान, अरहर, मूंग तथा महुआ को टोकनी में भरकर हलषष्ठी माता को
समर्पित किया वहीं भैंस की दूध-दहीं व गंगाजल अर्पित करते हुये देवी षष्ठी की पूरी श्रद्धा भावना से पूजा-अर्चना की गई। जिले में यह पर्व लगभग सभी नगरीय व ग्रामीण क्षेत्र में मनाया गया। ज्ञात हो कि यह पर्व कृष्ण जन्माष्टमी के दो दिन पहले भगवान कृष्ण के बड़़े भाई बलराम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। कहा जाता है कि इस दिन बलराम का जन्म हुआ था और उनका प्रमुख शस्त्र हल था इसलिये इस दिन को हलषष्ठी पर्व के रूप में मनाया जाता है।
पसहर चांवल व भैंस के दूध का होता है उपयोग
ज्ञात हो कि इस त्यौहार में महिलाएं पूजा-अर्चना करने के लिये गाय के दूध का उपयोग नहीं करती बल्कि इसके स्थान पर भैंस के दूध सहित दही व घी उपयोग में लाया जाता है वहीं इस दिन बिना हल चलाये उपजे फसल या सब्जियों का उपयोग महिलाएं अपने भोजन के लिये करती हैं। इस दिन पसहर चांवल का उपयोग खाने के लिये किया जाता है जिसे छत्तीसगढ़ी में लाल भात के नाम से जाना जाता है तथा सब्जी के रूप में लगभग 6 प्रकार की हरी साग-भाजी को मिश्रित कर उसकी सब्जी बनाई जाती है।