श्रद्धांजलि जयंती पर ललित सुरजन व डॉ.चंदेल को उनकी रचनाओं के माध्यम से किया याद

पाठक मंच खैरागढ़ और प्रलेस इकाई खैरागढ़ का संयुक्त आयोजन

सत्यमेव न्यूज़/खैरागढ़. नगर के पेंशनर भवन में प्रसिद्ध साहित्यकार ललित सुरजन की पुण्यतिथि और डॉ.गोरेलाल चंदेल की जयंती अवसर पर विचार गोष्ठी का आयोजन शुक्रवार 2 दिसंबर को किया गया. विचार गोष्ठी के लिए सुरजन जी की प्रसिद्ध कविता सेतुबंध और चंदेल जी के लेख लोक समूहवादी चेतना और राउत नाच का चयन किया गया था. इस विचार गोष्ठी में वरिष्ठ साहित्यकार विनयशरण सिंह ने कहा कि किसी भी कविता के कुछ बीज शब्द होते हैं, उन बीज शब्दों की पहचान कर लेने पर नई कविता को समझना आसान हो जाता है. सेतुबंध कविता के बीज शब्दों को उन्होंने रखा और कहा कि सुरजन जी की यह कविता मूलत: युद्ध-विरोधी कविता है.

युद्ध का सबसे बड़ा दुष्परिणाम यह होता है कि वह मनुष्य के चरित्र को पूरी तरह बदल देता है, जो युद्ध में शामिल नहीं रहते वे भी युद्ध की विभीषिका को झेलते हैं. युद्ध में जो विजयी होते हैं उनकी स्थिति ऐसी रहती है जो समुद्र की लहरों में मर्यादा खोजते हैं और शब्दों के पुल बांधते हैं. डॉ.गोरेलाल चंदेल जी के आलेख पर टिप्पणी करते हुए लोक के अर्थ को स्पष्ट कर कहा कि जब इंद्र के कोप से बच जाते हैं तब सभी यदुवंशी समूह एक साथ नाचते गाते हैं तब से राउत नाचा का उत्सव लोक में चला आ रहा है. संकल्प यदु ने कहा कि रचना तब तक रचना नहीं होती जब वह हमें चमत्कृत नहीं करती. इस कविता को जितनी बार पढ़ते हैं उतनी बार शिल्प और कथ्य के स्तर पर हमें चमत्कृत करती है. कविता में मुख्य रूप से दो फ्रेम है- एक महाभारत की और दूसरी रामायण की. इसके अलावा जितने पात्र हैं उनके अलग-अलग फ्रेम हैं.

सुरजन जी ने इसे इस तरह पिरोया है कि लगता है यह एक कोलाज है या किसी के विस्तृत कैनवास पर बनी अमूर्त रंग संयोजन. हम आखिरी लाइन पढऩे है तो हमें पहली लाइन शतरंज की बिसात पर याद जाती है. सेतुबंध और लोक की समूहवादी चेतना और राउत नाचा जैसे रचनाओं को तभी लिखा जा सकता है जब धर्म, अध्यात्म और दर्शन के अंतर्संबंध और अंतद्र्वंद को जानें. सुरजन जी और डॉ.चंदेल जी में यह समझ जबरदस्त थी. कार्यक्रम की शुरुआत में प्रलेस खैरागढ़ इकाई के सचिव यशपाल जंघेल ने संचालन करते हुए कहा कि हमारे दिवंगत साहित्यकारों को याद करने का सबसे अच्छा तरीका है- उनकी की रचनाओं का पाठ करना और उस पर चर्चा करना, इसीलिए उनकी रचनाओं पर केंद्रित यह विचार गोष्ठी का आयोजन किया जाये. यशपाल जंघेल ने अपनी बात रखते हुए कहा कि यह कविता मिथ के माध्यम से युद्ध समर्थित माहौल के खिलाफ युद्ध के विरोध में आवाज उठाती हुई विश्व शांति की कामना करती है. डॉ. गोरेलाल चंदेल जी ने उसे बखूबी रेखांकित किया है. प्रलेस के सदस्य रवि यादव ने कविता पर अपनी बात रखते हुए कहा कि पूरी कविता एक बार पढऩे के बाद सीधे सीधे अंतर्मन में पहुंचकर झकझोर देती है. सुरजन जी की कविता का सस्वर पाठ प्रलेस के अध्यक्ष संकल्प यदु ने किया और चंदेल जी के आलेख का भावपूर्ण पाठ प्रलेस के सदस्य डॉ.उमेंद चंदेल ने किया.

डॉ उमेंद चंदेल ने सेतुबंध कविता पर कहा कि युद्ध जीतने की लालसा मनुष्य की विवेक शक्ति पर हावी हो जाता है और वह धर्मराज युधिष्ठिर की तरह असत्य संभाषण के लिए प्रस्तुत हो जाता है. इसके पश्चात इस विचार गोष्ठी में सुविमल श्रीवास्तव, बसंत यदु के अलावा रानी रश्मि देवी सिंह महाविद्यालय के छात्र महेंद्र वर्मा एमए हिंदी, प्रतिमा डहरिया एमएससी रसायन शास्त्र, प्रीति वर्मा बीए अंतिम वर्ष, गिरवर साहू बीए प्रथम वर्ष ने अपने विचार व्यक्त किये. विचार गोष्ठी के अंत में आभार प्रदर्शन करते हुए पाठक मंच खैरागढ़ के संयोजक डॉ प्रशांत झा ने साहित्यकार ललित सुरजन और डॉ.गोरेलाल चंदेल से अपने आत्मीय संबंधों को याद करते हुए कहा कि सुरजन जी एक ऐसे व्यक्ति थे वे जिससे भी मिलते थे और वह उसका हो जाता था. चंदेल जी के बारे में उन्होंने कहा कि उनके जैसा लोक को समझने वाला हमारे आस-पास कोई नहीं है. वे अक्सर लोक कीचर्चा करते थे और इस तरह उम्र में बड़े होने के बावजूद कभी छोटे होने का अहसास ही नहीं होने दिया.

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