विवाद की जड़ गलत शासकीय भूमि उपलब्धता प्रमाण पत्र और एडीबी प्रोजेक्ट के अधिकारियों की तानाशाही रवैया
खैरागढ़। छुईखदान- दनिया सड़क निर्माण के लिए 16 जुलाई 2018 को छुईखदान के तत्कालीन तहसीलदार नमिता मारकोले, तत्कालीन राजस्व निरीक्षक एवं 16 गांव के तत्कालीन हल्का पटवारी अनिल वर्मा, नारद, योगेश्वरी कोलिहारे व रवि नेताम के हस्ताक्षर से जारी सड़क निर्माण के लिए भूमि उपलब्धता प्रमाण पत्र की वजह से विवाद चालू हुआ है. उक्त प्रमाण पत्र में छुईखदान से दनिया तक शासकीय भूमि उपल्ब्ध होने का जिक्र किया गया है , कहीं-कहीं पर 40 मीटर तक चौड़ाई में शासकीय जमीन होने का प्रमाण पत्र दिया गया है जबकि वास्तिवकता में मौके पर आधा भी नहीं है. ऐसे लगभग पूरे सड़क में आने वाले सभी 16 गांवों में है. राजस्व विभाग द्वारा जारी भूमि उपलब्धता संबंधित प्रमाण पत्र के अनुसार सड़क निर्माण के लिए ठेकेदार के द्वारा मटेरियल डालना शुरू किया गया, तब किसानों को पता चला कि उनकी ज़मीन (खेत) और मकान की जमीन (भूमि स्वामी हक में धारित पट्टा भूमि) सड़क निर्माण के जद में आ रहा है. किसानों ने शुरु से विरोध किया, किसानों ने और ग्रामीणों ने पहले ठेकेदार के सुपर वाइसर और एडीबी प्रोजेक्ट के अधिकारियों को और सड़क निर्माण के लिए ले आउट देने वाले इंजीनियर फारूक को बताया गया कि हमारी भूमि पर सड़क निर्माण किया जा रहा है पर किसी ने सुना तक नहीं और सड़क निर्माण ज़ारी रहा.
राजस्व विभाग लगातार शिकायत की करती रही अनदेखी
जब एडीबी प्रोजेक्ट के परियोजना प्रबंधक, एसडीओ एडी बंजारे, इंजीनियर फारूक और ठेकेदार ने किसानों और प्रभावितों की एक न सुनी तो किसानों ने प्रशासन से गुहार लगाई. कभी मौखिक निवेदन तो कभी लिखित आवेदन करते रहें पर हर किसी ने एक नहीं सुनी. हर उस आवेदन को अनदेखी कर दिए जिसमें किसानों ने प्रशासन से गुहार लगाई कि हमारी लगानी और भूमि स्वामी हक में धारित पट्टा भूमि सड़क निर्माण में जा रही है, हमे उचित मुआवजा दिया जाये.
पहले भी किसान बिना मुआवजा के गंवा चुके हैं जमीन
1982 में भी सड़क निर्माण के लिए लोक निर्माण विभाग द्वारा अधिग्रहित निजी भूमि में 300 किसानों को आज भी मुआवजा राशि नहीं मिल पाया है. इस संबंध में पेंडरवानी के राजस्व निरीक्षक ने बताया कि दनिया, उदान, तेंदुभाठा, जोम सहित अन्य गांवों के किसानों की जमीन का अधिग्रहण हुआ था, रिकार्ड दुरस्त भी हो चुका है पर कुछ किसानों को मुआवजा नहीं मिला है. इस संबंध में जोम, बुंदेली, पद्मावतीपुर, सिलपट्टी सहित अन्य और भी गांवों के किसानों का भी दावा है कि पुराने अधिग्रहण का मुआवजा नहीं मिला है.
लगातार अनदेखी से किसान हुए उग्र
पहले एडीबी प्रोजेक्ट के अधिकारियों की मनमानी, फिर ठेकेदार की दादागिरी और राजस्व विभाग की चुप्पी ने किसानों के आक्रोश को बढ़ाने का ही काम किया है. किसान अपनी खेत की जमीन और मकान की जमीन गवां कर शंकित है कि कहीं पुराने अधिग्रहण 1982 की तरह न हो जाए कि मुआवजा ही न मिले और सड़क बनाकर एडीबी प्रोजेक्ट के अधिकारी गायब न हो जाए. इसलिए किसानों ने अपने हक की लड़ाई स्वयं लड़ने का मन बनाया. किसानों ने इसके लिए 4 माह पूर्व 18 अक्टूबर को किसान नेता खम्हन ताम्रकार के नेतृत्व में अधिकार पद यात्रा कर दनिया से छुईखदान 27 किलोमीटर पैदल पहुंचकर एसडीएम रेणुका रात्रे के कार्यालय में 07 बिंदुओ का ज्ञापन सौंप कर न्याय दिलाने की बात कहकर उग्र प्रदर्शन करने का अल्टीमेटम दिया था.
त्रिपक्षीय बैठक के निर्णय पर राजस्व विभाग नही रहा कायम
बढ़ते जनआक्रोश और पद यात्रा कर मुआवजा के लिए अल्टीमेटम मिलने के बाद प्रशासन में हड़कंप मच गया. आनन फानन में मामले की गंभीरता को देखते हुए एसडीएम रेणुका रात्रे की अगुवाई में राजस्व अमला, एडीबी प्रोजेक्ट के अधिकारियों और किसानों के मध्य त्रिपक्षीय बैठक आयोजित किया गया, बैठक में पुनः सर्वे कराने का निर्णय हुआ, सर्वे के लिए टीम भी गठित कर दिया गया किन्तु महीनों बीतने के बाद चढ़ावा की चाह में सर्वे टीम ने आज तक 5-6 गांव के सर्वे रिपोर्ट तक नहीं बनाए हैं. किसान हाथ-पैर जोड़ते रह गए पर राजस्व और एडीबी प्रोजेक्ट के अधिकारियों की संयुक्त टीम ने आज तक रिपोर्ट नहीं सौंपे हैं, सर्वे रिपोर्ट और सर्वे के आदेश देने वाली एसडीएम भी पूरे मामले में चुप्पी साध कर बैठी हुई है.
148 किसानों के मुआवजा फाईल धूल खाते पड़ा है सयुंक्त कलेक्टर के टेबल पर
प्रथम चरण के सर्वे में जिन 9 गांव के 148 किसानों की लगानी भूमि का सड़क निर्माण के लिए भू अर्जन होना है उसकी फाइल खैरागढ जिला मुख्यालय में पदस्थ संयुक्त कलेक्टर सुनील शर्मा के टेबल में धूल खाते महीनों से पड़ा है. प्रायः कार्यालय से अनुपस्थित रहने वाले श्री शर्मा कभी कार्यालय में मिल भी जाते हैं तो इस फाइल के बारे में चर्चा ही नहीं करते हैं. अगर कोई किसान उनसे कुछ पूछना भी चाहते हैं तो वो इस फाइल के सम्बन्ध में कुछ भी बताने को तैयार तक नहीं है और तो और सूचना के अधिकार में लगे दर्जनों आवेदन का समय सीमा निकल जाने के बाद भी जानकारी नहीं दे रहे हैं.
भूमि स्वामी हक में धारित पट्टा भूमि के लिए सर्वे टीम का गठन तक नहीं
इधर 6 गांव का सर्वे रिपोर्ट तक तैयार नहीं हुआ है जिसके सर्वे के लिए टीम गठित किए महीनों बीत गया है और इधर प्रशासन को यह भी नहीं पता की इस मार्ग निर्माण में कितने भूमि स्वामी हक में धारित पट्टाधारी ग्रामीणों की भूमि आ रही है. इसके लिए अब तक सर्वे टीम का गठन भी नहीं किया गया है. इस संबंध में एसडीएम रेणुका रात्रे सहित राजस्व विभाग से संबद्ध अधिकारियों से जानने की कई बार कोशिश की गई किन्तु जिम्मेदार अधिकारी कुछ भी कहने से बच रहे हैं.
किसान बड़े आंदोलन की तैयारी में
मुआवजा देने में की जा रही देरी से किसान और ग्रामीणों में अन्दर खाने भारी आक्रोश देखने को मिल रहा है. किसान अपने हक की लड़ाई के लिए कमर कस कर तैयार हो चुके है. न्याय के लिए सीधा रायपुर राजधानी पैदल यात्रा कर मुख्यमंत्री से मिलकर अपनी पीडा बताएंगे. किसानों ने अपने संघर्ष को मजबूती देने के लिए एक संघर्ष समिति का गठन किया हैं जिसके संरक्षक पूर्व विधायक गिरवर जंघेल, भवानी बहादुर सिंह और किसान नेता खम्हन ताम्रकार हैं.
नेताओं का प्रवेश प्रतिबंधित, लगे गांव गांव में पोस्टर
मुआवजा के नाम पर किसानों को साथ नहीं देने वाले नेताओं के लिए किसानों ने अपने-अपने गांव में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाते हुए एलान कर दिए हैं कि उन नेताओं का बहिष्कार किया जाएगा जिन्हें किसानों की पीड़ा नहीं दिख रही है. छुईखदान – दनिया मार्ग में अपनी लगानी और भूमि स्वामी हक में धारित पट्टा भूमि गवां चुके किसान खैरागढ़ प्रवास पर आ रहे प्रदेश सरकार के मुखिया भूपेश बघेल से मिलने के लिए कलेक्टर को पत्र लिखकर समय दिलाने की मांग किए थे पर किसानों को समय नहीं मिला. इस सम्बन्ध में सड़क संघर्ष समिति के सचिव पूनम देवांगन ने बताया कि समिति कि ओर से उन्होंने खैरागढ़ जिला कार्यालय जाकर लिखित में पत्र सौंप कर कलेक्टर से खैरागढ़ प्रवास में आ रहे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मुलाकात करवाने का निवेदन किया गया था पर किसानों का दुर्भाग्य कि किसानों के हित में कार्य करने वाले प्रदेश के मुखिया से मुलाकत के लिए कलेक्टर खैरागढ़ डॉ.सोनकर ने समय नहीं दिला पाया. हमे बहुत अफसोस है कि हमें अपने मुखिया से मिलने के लिए लिखित आवेदन देने के बाद भी समय नहीं मिल पाया.
किसानों के विरोध के बीच रात में चल रहा है सड़क निर्माण कार्य
इधर किसान का विरोध जैसा-जैसा बढ़ते जा रहा है उधर एडीबी प्रोजेक्ट के अधिकारी ठेकेदार के माध्यम से उतने ही तेजी से सड़क का निर्माण करवाने लगे हैं. इस सम्बन्ध में सड़क संघर्ष समिति के उपाध्यक्ष मनहरण जंघेल ने बताया कि पहले दिन में ही सड़क निर्माण कार्य हो रहा था किन्तु जब से किसानों ने अपने जमीन के मुआवजे की मांग तेज किए हैं तब से सड़क निर्माण कार्य में अप्रत्याशित रूप से तेजी देखने को मिल रही है. अब रात भर डामरीकरण सहित अन्य कार्य किया जाने लगा है.