मुंशी प्रेमचंद केवल कथाकार ही नहीं सतत् वैश्विक दृष्टि वाले पत्रकार भी थे- शुक्ल

प्रेमचंद के अवसान के 86 वर्ष बाद भी प्रासंगिक हैं उनका साहित्य

पाठक मंच खैरागढ़ से जुड़े साहित्यिक सदस्यों ने रखे अपने विचार

सत्यमेव न्यूज़/खैरागढ़. छत्तीसगढ़ प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन की पाठक मंच खैरागढ़ के तत्वावधान में रविवार 31 जुलाई को प्रेमचंद जयंती मनाई गई. इस अवसर पर प्रेमचंद को याद करते हुए विषय पर परिचर्चा संपन्न हुई. परिचर्चा में मुख्य वक्ता के रूप में डॉ.वीरेन्द्र मोहन ने कहा कि मूलत: उर्दू के लेखक थे, 1905 के आसपास डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी का हिन्दी आन्दोलन चल रहा था उनसे प्रेमचंद जी का पत्र व्यवहार था, पत्र व्यवहार और सम्पर्क के कारण हिन्दी में आये. वे केवल कथाकार ही नहीं सतत् वैश्विक दृष्टि वाले पत्रकार थे. उनकी रचनाओं की धुरी राष्ट्र और हासिए का समाज है जो नवजागरण का विस्तार करता है. स्वाधीनता आंदोलन में उनका योगदान रचना के स्तर पर था, उस समय उपनिवेशवाद तो था ही फासीवाद भी उभार पर था. चर्चिल को पत्र-पत्रिका के माध्यम से प्रतिकार करते हैं. संसार में जो कुछ हो रहा है उससे प्रभावित हुए बिना भारत नहीं रह सकता.

इस तरह स्वाधीनता आंदोलन में उनका योगदान रचना के स्तर पर था. विखंडन-विस्थापन की बुनियाद उसी समय की है, अंग्रेजों के द्वारा भी मजदूर को मजदूर से लड़वाया जाता था. यह जड़ों को खोखला कर रहा है. भविष्य के इन खतरों को प्रेमचंद की रचनाओं में पाते हैं. आज भी यही हो रहा है क्योंकि सत्ता का चरित्र यही है और यह पूंजी कमाने और उसकी सनक से पैदा होती है और जब यह सनक बढ़ जाती है तो पूंजीपति सत्ता को नियंत्रित करते हैं. इसे हम आज के परिवेश में भी देख सकते हैं. इस तरह की तमाम असमानता की चिंता को प्रेमचंद जी की रचनाओं में व्यक्त हुआ देखते हैं. वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.जीवन यदु ने कहा कि कोई भी रचनाकार इतिहासकार नहीं है तो वह सफल रचनाकार नहीं हो सकता. प्रेमचंद जी की रचनाएं उस कालखंड की शिलालेख है, उस काल को जानने-समझने के लिए प्रेमचंद जी को पढ़ते हैं. उन्होंने आगे कहा कि गाँधीवादी दर्शन की सरल भाष्य प्रेमचंद की रचनाएं है.

वरिष्ठ सदस्य टीके चंदेल ने कहा कि प्रेमचंद जी को याद करते हैं तो ग्रामीण परिवेश को पाते हैं और अपने आसपास को पाते हैं. संयोजक डॉ.प्रशांत झा ने कहा कि उन्हें याद करते हुए तब का और अब का, पूरे मानव समाज को देखना होता है. उनके समय अंग्रेज बहादुर कम्पनी ही थी, आज तो कम्पनी-कम्पनी है. इसे देखते हुए लगता है कि व्यवस्था चाहे जो भी हो प्रेमचंद जी याद आते रहेंगे. साहित्यकार व शिक्षक विनयशरण सिंह ने कहा कि प्रेमचंद जी को याद करते हैं तो सही मायने में साहित्य की आवश्यकता महसूस होती है. ग्रामीण समाज, किसान-समस्या, राष्ट्रीय के स्वर और मनुष्यता का पुजारी आदि हम प्रेमचंद की रचनाओं में पाते हैं. रचनाकार संकल्प यदु ने कहा कि प्रेमचंद जी को याद करते हैं तो भारत का स्वरूप याद आता है. हम अपने बारे सोचते हैं क्योंकि उनके पात्र में हमारा आसपास जीवित हो उठता है. उनको पढ़ते हुये हम अपने आप को अकेला नहीं पाते बल्कि अपना विस्तार पाते हैं. पत्रकार अनुराग शांति तुरे ने कहा कि श्रेष्ठ व श्रेयस्कर जीवन विचारों से चलता हैं, प्रेमचंद जी के विचार आज भी सामयिक परिस्थितियों में प्रासंगिक बने हुये हैं, जो हमें बेहतर करने के लिये प्रेरित करते हैं.

जिला पंचायत सभापति विप्लव साहू ने कहा कि वे आधुनिक काल के युगपुरुष की तरह याद आते हैं. भारतीय जनमानस की बातों को उनकी रचनाओं में पाते हैं. जितना उनको पढ़ते हैं उतनी ही समाज की परतें खुलती है. सहा.प्राध्यापक व युवा रचनाकार यशपाल जंघेल ने कहा कि प्रेमचंद जी को याद करने पर लगता है कि उन्हें पढऩा कितना जरूरी है, आज इसलिए वे प्रासंगिक हैं क्योंकि यंत्र बदल गये हैं पर तंत्र वही है. मंच के सक्रिय सदस्य बलराम यादव ने कहा कि प्रेमचंद जी शोषित वर्ग के पक्षधर के रूप में याद आते हैं वहीं रवि यादव ने कहा कि उनको याद करते हैं तो लगता है कि वे तीसरे नेत्र वाले व्यक्ति थे जिनका तीसरा नेत्र खुल चुका था. कार्यक्रम में सुविमल श्रीवास्तव, दूजराम साहू सहित साहित्यसुधि उपस्थित थे. अंत में कार्यक्रम का संचालन डॉ.प्रशांत झा व आभार संकल्प यदु ने जताया.

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