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निजी दुकानदारों की बल्ले-बल्ले और किसानों की जेब पर खुलेआम डाका

सत्यमेव न्यूज के लिए आकाश तिवारी बाजार अतरिया। प्रदेशभर में खाद की किल्लत से किसान हलकान हैं वहीं निजी दुकानदार इस संकट को मालामाल होने का जरिया बना बैठे हैं। स्थिति यह है कि सरकारी सोसाइटियों में खाद का टोटा है और किसान लाइन में खड़े रहकर भी खाली हाथ लौट रहे हैं लेकिन निजी दुकानों में खाद की भरमार है। 300–350 रुपए वाली यूरिया 900 से 1500 रुपए में खुलेआम बिक रही है।

जिले के अंतिम छोर पर बसे बाजार अतरिया और आसपास के ग्रामीण अंचल में किसानों को मजबूरी में निजी दुकानों का रुख करना पड़ रहा है यहां दुकानदार किसानों से जमकर मुनाफा कूट रहे हैं। कई जगह तो बिना लाइसेंस भी खाद की बिक्री हो रही है। आरोप है कि सरकारी सोसाइटियों से बड़े किसान खाद निकालकर सीधे निजी दुकानदारों को बेच रहे हैं। नतीजा सहकारी समिति खाली निजी दुकानदार मालामाल।

प्रदेश सरकार खाद की पर्याप्त उपलब्धता का दावा कर रही है लेकिन जमीनी हकीकत उलट है। किसान यूरिया और डीएपी जैसे जरूरी खाद के लिए तरस रहे हैं। विपक्ष लगातार सोसाइटियों के बाहर प्रदर्शन कर रहा है फिर भी हालात जस के तस हैं। सवाल बड़ा है कि जब सरकार के पास खाद की कमी है तो निजी दुकानदारों के पास यह भारी-भरकम स्टॉक कहां से आ रहा है

खाद की कालाबाजारी और महंगे दामों में बिक्री की शिकायतें लगातार मिल रही हैं। किराना दुकान गल्ला केंद्र से लेकर कृषि केंद्र तक खाद धड़ल्ले से बिक रही है। लेकिन जिला बने तीन साल बीत जाने के बावजूद प्रशासनिक कार्यवाही नहीं हुई। जानकार कहते हैं बिना संरक्षण के ऐसी खुलेआम कालाबाजारी मुमकिन नहीं। गांव के जिन किसानों का सहकारी समिति में पंजीयन नहीं है उन्हें सबसे ज्यादा दिक्कत झेलनी पड़ रही है। उदाहरण के तौर पर किसी गांव में 500 किसान हैं तो उनमें से लगभग 200 किसान सहकारी समिति से बाहर रह जाते हैं। यही किसान निजी दुकानों से ऊंचे दामों पर खाद खरीदने को मजबूर हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि अधिक से अधिक किसानों को समिति से जोड़ना ही इस समस्या का हल है। किसानों की मजबूरी दुकानदारों की मौज और प्रशासन की चुप्पी ने खाद संकट को और गहरा कर दिया है। सवाल साफ है आखिर कब तक अन्नदाता महंगे दामों में खाद खरीदने को मजबूर रहेंगे।

Satyamev News

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