जिला बनने के बाद भी सिविल अस्पताल में कर्मचारियों की कमी बरकरार
सत्यमेव न्यूज़ खैरागढ. जिले के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल का खैरागढ़ में हाल-बेहाल हैं। यहां लचर प्रशासनिक व्यवस्था के कारण आवारा पशुओं ने अपना ठिकाना बना रखा है। बता दे कि जिला मुख्यालय खैरागढ़ में सिविल अस्पताल एकमात्र सरकारी अस्पताल है लेकिन अव्यवस्था के कारण ये अस्पताल आज खुद बीमार है। यहां हालात ऐसे हैं कि अस्पताल परिसर के साथ ही मरीजों के उपचार वाले वार्डों में भी आवारा पशुओं का बेखौफ कब्जा है। पड़ताल के दौरान अस्पताल के अंदर महिला वॉर्ड से लेकर सर्जिकल वॉर्ड तक आवारा पशुओं का जमघट नजर आया यहीं नहीं आपको वार्ड के गेट के साथ ही नर्स और चिकित्सकों के कमरे और आसपास भी आवारा पशु विचरण करते या पूँछ हिलाते नजर आएंगे। अस्पताल की ऐसी हालत पर अब प्रशासनिक व्यवस्था पर ही सवाल उठ रहे हैं। ज्ञात हो कि जिला निर्माण तो हो गया लेकिन इसके बाद भी यहाँ सफाई कर्मियों की अदद कमी हैं। अस्पताल परिसर में एक वार्ड बॉय नहीं ना ही कोई सुरक्षा गार्ड की यहां ड्यूटी हैं। सुरक्षा के अभाव में कुछ दिनों पहले सिविल अस्पताल के नर्सिंग स्टॉफ ने भी अपनी सुरक्षा को लेकर जिलाधीश को ज्ञापन सौंपे था मगर वस्तु स्थिति आज भी जस की तस बनी हुई है। बता दे कि सुबह 8:00 से रात्रि 10:00 तक किसी भी समय कोई सिविल अस्पताल पहुंचे तो यहां डॉक्टर और नर्स से पहले आवारा पशु का झुंड नजर आता हैं। डॉक्टर के राउंड के समय भी वार्ड में आवारा पशु यहां विचरण करते रहते हैं जिनमें मुख्य रूप से कुत्तों का जमावड़ा दिखता हैं। अस्पताल में प्रशासनिक लचरता के बीच पशु प्रेम अपनी जगह है लेकिन यह भी खतरे की ही बात हैं कि आवारा पशु कब किस मरीज, उनके परिजन या डॉक्टर सहित नर्स आदि हॉस्पिटल स्टॉफ पर हमला कर दे, कुछ कहा नहीं जा सकता। बावजूद इसके सिविल अस्पताल प्रबंधन इसे लेकर गंभीर नहीं है। भर्ती मरीजों के साथ-साथ उनके परिजन भी आवारा पशुओं से डरे-डरे अपना इलाज करवा रहे हैं फिर भी विभाग बेसुध है।
जिला निर्माण तो हुआ पर पर मुख्यालय में ही स्वास्थ्य सुविधाओं का टोटा
काफी मिन्नतों और संघर्ष के बाद खैरागढ़ जिला तो बन गया मगर स्वास्थ सुविधाओं से अभी भी सिविल अस्पताल की वास्तविक व्यवस्था कोसों दूर है। भर्ती मरीजों के परिजनों का कहना है कि खैरागढ़ का सिविल अस्पताल भगवान भरोसे संचालित होता है। हमें इलाज कराने मजबूरी में यहां आना पड़ता है। सरकार बैनर-पोस्टर में स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर लाखों रुपए फूंक देती है मगर धरातल पर मंजर कुछ और ही नजर आता है।