नहीं रही नगर की आधी आबादी का पेट भरने वाली भागा दाई

खैरागढ़. गरीबों के बीच “भागा दाई” के नाम से मशहूर रही अंबेडकर वार्ड निवासी भागा बाई राजपूत का सोमवार की देर रात निधन हो गया, लगभग 90 वर्ष की दीर्घायु में उन्होंने सिविल अस्पताल खैरागढ़ में अंतिम सांस ली. उनके निधन से खैरागढ़ में खास तौर पर गरीबों के बीच शोक की लहर है, मंगलवार की दोपहर दाऊचौरा स्थित जैन मुक्तिधाम में उनका अंतिम संस्कार किया गया जहां उनके बड़े नवांशे रंजीत सिंह ने भाई मंजीत सिंह और संदीप सिंह की मौजूदगी में मुख़ाग्नि दी और बड़ी संख्या में मौजूद लोगों ने उन्हें नम आँखों से अंतिम विदाई दी.

जनसेवा के लिए चुना था भोजनालय का व्यवसाय

आज से लगभग 60 साल पहले जनसेवा के उद्देश्य से ही भागा बाई राजपूत ने भोजनालय का व्यवसाय शुरू किया था, उनके पति स्व.जय करण सिंह वन विभाग में बतौर सिपाही शासकीय सेवा में कार्यरत थे, जीवन बड़े आराम से गुजर रहा था लेकिन भागा बाई को बड़ी आत्मीयता से लोगों को भोजन कराना और असहाय लोगों की मदद करना, खासतौर पर भूखे को भर पेट भोजन कराना अच्छा लगता था. पति शासकीय सेवा में अमूमन समय घर से बाहर रहते थे, अलबत्ता उनका भरा पूरा परिवार था लेकिन भूखों को भोजन कराने कि उनकी आदत ने उन्हें भोजनालय खोलने पर विवश किया, पति और परिवार ने पूरा साथ दिया और खैरागढ़ के बस स्टैंड में एक झोपड़ी बनाकर उन्होंने भोजनालय की शुरूआत की. यहीं से भागा बाई के जीवन में एक बड़ा बदलाव आया और वह सबके लिये “भागा दाई” बन गई. विश्वविद्यालय में अध्ययनरत आज के कई नामचीन कलाकारों सहित प्रशासनिक अधिकारियों ने भी भागा दाई के हाथ का खाना खाया हैं और उसकी लज्जत आज भी लोग याद करते हैं. बिल्कुल घर जैसे खाने का स्वाद वह भी बिल्कुल कम दाम में यही भागा दाई के भोजनालय की पहचान रही हैं. महंगाई किस दौर में भी भागा दाई लोगों को मात्र 40 रूपये में भरपेट भोजन कराती थी. जनसेवा के रूप में व्यवसाय करने वाले लोग इस दुनियाँ में बहुत कम है, उनमें से एक नाम भागा दाई का था जो उम्र भर विपन्न परिवेश में लोगों के पेट की भूख मिटाती रही.

Exit mobile version