धान से बनी राखियों से देशभर में छाए खैरागढ़ विश्वविद्यालय के चंद्रप्रकाश

छत्तीसगढ़ की परंपरागत धान कला को राष्ट्रीय मंच पर दिला रहे पहचान
सत्यमेव न्यूज खैरागढ़. इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय के छात्र चंद्रप्रकाश साहू ने अपनी अनोखी कलाकारी से पूरे देश में छत्तीसगढ़ की मिट्टी की खुशबू बिखेर दी है। ‘धान कलाकार’ के नाम से पहचाने जाने वाले चंद्रप्रकाश ने धान से बनी राखियों के जरिए न केवल रक्षाबंधन पर्व को खास बना दिया है बल्कि छत्तीसगढ़ की लोककला को भी नई पहचान दी है। इन दिनों वे अपने घर पर हाथों से बनी विशेष राखियों का निर्माण कर रहे हैं जिन्हें देशभर के प्रमुख शहरों दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद, गुवाहाटी, पुणे, नागपुर, जमशेदपुर, खड़गपुर आदि से ऑर्डर मिल रहे हैं।
छत्तीसगढ़ की खुशबू समेटे हुये है चंद्र की हर राखी
चंद्रप्रकाश द्वारा बनाई गई ये राखियाँ न सिर्फ सौंदर्य में अद्वितीय हैं बल्कि छत्तीसगढ़ की संस्कृति, परंपरा और लोकभावना की प्रतीक भी हैं। चंद्रप्रकाश का कहना हैं कि ये केवल राखियाँ नहीं बल्कि सांस्कृतिक पहचान और स्वाभिमान का प्रतीक हैं।
चंद्रप्रकाश लोककला के विद्यार्थी लेकिन लोकनृत्य के गुरु भी
चंद्रप्रकाश ने वर्ष 2024 में इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ से लोककला में स्नातक की पढ़ाई पूरी की है। वे एक कुशल लोकनृत्य प्रशिक्षक भी हैं और राष्ट्रीय मंचों पर प्रस्तुति दे चुके हैं। उनकी कला को उन्होंने अपने जीवन का मिशन बना लिया है। अब तक 500 से अधिक विद्यार्थियों को वे धान कला की बारीकियां सिखा चुके हैं।
संस्कृति मंत्रालय व आकाशवाणी से मिल चुका है सम्मान
उनकी प्रतिभा को संस्कृति मंत्रालय ने भी सराहा है। चंद्रप्रकाश को महाकुंभ में आयोजित विशेष प्रदर्शनी में आमंत्रित किया गया था। साथ ही आकाशवाणी के एक विशेष शॉर्ट स्टोरी कार्यक्रम में भी उन्हें आमंत्रित कर सम्मानित किया गया।चंद्रप्रकाश का कहना है धान मेरे लिए साधना है। मैं चाहता हूँ कि छत्तीसगढ़ की परंपरागत कला देश-दुनिया में अपनी जगह बनाए। धान हमारे जीवन का हिस्सा है उसी से कला बनाना मेरे लिए साधना जैसा है।
छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक पहचान को समर्पित चंद्रप्रकाश साहू की यह यात्रा कला, परंपरा और आत्मगौरव की मिसाल बन गई है। उनकी मेहनत, समर्पण और सृजनशीलता युवा पीढ़ी को प्रेरणा दे रही है और छत्तीसगढ़ की माटी को पूरे देश में गौरव दिला रही है।