डोंगरगढ़ में आस्था और राजनीति का टकराव: राजकुमार भवानी बहादुर ने मंदिर ट्रस्ट पर साधा निशाना

संस्थापक परिवार को ही दरकिनार करने का भवानी ने लगाया आरोप
डोंगरगढ़ का वैभवशाली इतिहास और वर्तमान विवाद आमने-सामने

मूलनिवासी गोंड समाज की चेतावनी हक नहीं मिला तो अधिकार खुद लेंगे
सत्यमेव न्यूज के लिए आकाश तिवारी डोंगरगढ़। नवरात्र महोत्सव के बीच मां बम्लेश्वरी मंदिर में परंपरागत दाई बमलई पंचमी भेंट का आयोजन शुक्रवार देर रात सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर यहाँ के मूलनिवासी माने जाने वाले गोंडवाना गोंड समाज के साथ पहली बार मंदिर के संस्थापक परिवार और राजपरिवार के वरिष्ठ सदस्य राजकुमार भवानी बहादुर सिंह भी शामिल हुए। श्रद्धालुओं की भीड़ के बीच भवानी बहादुर ने मां के दरबार से ही मंदिर प्रबंधन और ट्रस्ट व्यवस्था पर तीखे प्रहार किया। उन्होंने कहा कि बम्लेश्वरी धाम में सदियों से बैगा पूजा को प्राथमिकता दी जाती रही है जो उनके पूर्वज स्व.राजा कमल नारायण सिंह जी के समय से चली आ रही परंपरा है लेकिन अब न केवल इस परंपरा को दरकिनार किया जा रहा है बल्कि संस्थापक परिवार और आदिवासी समाज की आस्था की भी अनदेखी की जा रही है।

ट्रस्ट पर भवानी ने लगाये गंभीर आरोप
राजकुमार ने आरोप लगाया कि ट्रस्ट का संचालन अब मूल भावना से भटक गया है और संस्थापक परिवार तक को महत्व नहीं दिया जा रहा। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि हमारे दादा ने सेवा भाव से ट्रस्ट की नींव रखी थी सभी वर्गों को उसमें जगह मिली थी मगर आज हम ही बाहर कर दिए गए हैं। यह न केवल परंपरा का अपमान है बल्कि आदिवासी समाज की आस्था को ठेस पहुँचाना भी है।उन्होंने शासन-प्रशासन से चुनाव प्रणाली में सुधार की मांग की और फाउंडर मेंबर की राय को अनिवार्य करने पर जोर दिया। साथ ही चेतावनी दी कि अगर समाज को उसका हक नहीं मिला तो गोंड समाज खुद अधिकार लेने को मजबूर होगा।

नेताओं का दोष नहीं, ट्रस्ट करता है कंट्रोल
एक सवाल के जवाब में भवानी बहादुर ने कहा कि इसमें नेताओं का कोई दोष नहीं है। वे तो केवल दर्शन करने आते हैं, मगर ट्रस्ट उनका इस्तेमाल करता है और उन्हें नियंत्रित करने की कोशिश करता है।
उन्होंने कहा कि
ईमानदारी से कह रहा हूं बदलाव होना चाहिए। मंदिर सबका है यहां स्वार्थ की राजनीति नहीं होनी चाहिए। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि अब समाज के साथ ही बैठकर आगे की रणनीति तय करेंगे।
उनकी इस तल्ख़ बयानबाज़ी ने नवरात्र मेले के बीच मंदिर प्रबंधन को एक बार फिर विवादों के केंद्र में ला दिया है।
जानिए क्या है डोंगरगढ़ का रियासतकालीन इतिहास
डोंगरगढ़ रियासत ब्रिटिश काल में खैरागढ़ और राजनांदगांव के साथ छत्तीसगढ़ की प्रमुख रियासतों में से एक रही। इसके शासक राजा घासीदास अपनी बहादुरी और निर्भीकता के लिए प्रसिद्ध थे। 1816 में उन्होंने नागपुर दरबार को भेजी जा रही कर की राशि लूट ली थी। इस घटना से ब्रिटिश हुकूमत हिल गई और नागपुर के रेजिडेंट सर रिचर्ड जेडिंक्स ने खैरागढ़ के राजा टिकैत राय और नांदगांव के राजा महंत मौजीराम को डोंगरगढ़ पर चढ़ाई का आदेश दिया। युद्ध में डोंगरगढ़ हार गया और अंग्रेजों ने इसका आधा हिस्सा खैरागढ़ तथा आधा नांदगांव को सौंप दिया। राजा टिकैत राय की वीरता से प्रभावित होकर उन्हें ‘सिंह’ उपाधि और डोंगरगढ़ की गद्दी भी दी गई। स्वतंत्रता के बाद रियासतों के शासकों को सम्मान और पेंशन मिली तथा इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर हस्ताक्षर के साथ खैरागढ़ रियासत भारत का हिस्सा बन गई। बाद में राजा बीरेन्द्र बहादुर सिंह ने अपने पुत्रों रविन्द्र बहादुर और शिवेंद्र बहादुर को क्रमशः खैरागढ़ और डोंगरगढ़ का प्रभार सौंपा। 1976 में मां बम्लेश्वरी मंदिर ट्रस्ट की स्थापना हुई जो आज तक मंदिर संचालन कर रहा है। किंतु हाल ही में राजपरिवार की ओर से उठे सवालों ने इस व्यवस्था को कटघरे में खड़ा कर दिया है।