सत्यमेव न्यूज़/खैरागढ़. देश के चर्चित कथाकार डॉ.रमाकांत श्रीवास्तव के खैरागढ़ प्रवास पर बुधवार 12 अप्रैल को उनकी कहानी-वाचन और विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया. पाठक मंच खैरागढ़ व प्रगतिशील लेखक संघ की खैरागढ़ इकाई के संयुक्त तत्वाधान में साहित्यकार डॉ.जीवन यदु के निवास स्थान पर उक्त आयोजन किया गया. इस अवसर पर डॉ.रमाकांत श्रीवास्तव ने अपनी कहानी सद्दाम का सातवां महल का भावपूर्ण वाचन किया. कहानी पर अपने विचार रखते हुये डॉ.जीवन यदु ने कहा कि कहानी वही है जिसमें कहानीपन हो. डॉ.रमाकांत श्रीवास्तव की कहानी इस बात का सबूत है. सद्दाम का सातवां महल कहानी प्रजातंत्र के अर्थ को अमेरिका की गुलामी को चित्रित करती है और इस तरह प्रजातंत्र भी कई श्रेणियों में बंट गया है. कमलाकांत पांडेय ने कहा कि यह कहानी सद्दाम हुसैन के बहाने अमेरिकी पूंजीवादी व्यवस्था को तार-तार करती है. प्रगतिशील लेखक संघ खैरागढ़ के अध्यक्ष संकल्प यदु ने कहा कि इस कहानी को बहुत पहले पढ़ा था और आज स्वयं कथाकार रमाकांत श्रीवास्तव इसका वाचन कर रहे है तो कहानी का दृश्य फिर से खुल रहे हैं.
इस कहानी में बहुत से सूत्र वाक्य आये हैं जो कहानी के अर्थ के कैनवास को विस्तृत बनाते हैं. टीए खान ने कहा कि कहानी का परिवेश भले ही इराक का है लेकिन हम इसके बहाने अपने आसपास के परिवेश को देख सकते हैं. टीके चंदेल ने कहा कि सत्ता और पूंजीवादी वर्ग के गठजोड़ का पर्दाफाश करती हुई यह कहानी लिखी गई है. जीवेश ने कहा कि विदेशी परिवेश में लिखी गई यह कहानी दो पात्रों के द्वारा ही पूरे विश्व में चल रही व्यवस्था का शिनाख्त करती है. दुर्गेशचंद्र वर्मा ने कहा कि यह कहानी अपने बिम्बों के कारण फिल्मों की तरह दिमाग में चलती है. रवि यादव ने कहा कि आज मेरे लिये सौभाग्य की बात है कि स्वयं कथाकार से इस कहानी को सुनने का अवसर मिला. कहानी सुनने के दौरान पूरे विश्व का परिदृश्य मेरे सामने घूम रहा था. संचालन करते हुये प्रलेस खैरागढ़ के सचिव यशपाल जंघेल ने कहा कि इस कहानी को किसी एक परिस्थिति या देश काल में बांधा नहीं जा सकता. विश्व में जहां कहीं भी गलत होता है यह कहानी उस ओर इशारा करती है. कथाकार डॉ.रमाकांत श्रीवास्तव ने कहानी में आये प्रश्नों का जवाब देते हुये कहा कि यह कहानी नव-उपनिवेशवाद पर आधारित है जो प्रजातंत्र का चोला ओढ़े हुये हैं. गांधी जी का हिंद स्वराज लोकतंत्र को समझने के लिये एक महत्वपूर्ण किताब है. आज प्रजातंत्र की आड़ में तानाशाह संसद को मानवता के विरोध में प्रयोग कर रहे हैं.