Advertisement
IMG-20241028-WA0001
IMG-20241028-WA0002
previous arrow
next arrow
छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ बौद्ध समाज के आधार स्तंभ जीएस खोब्रागढ़े का निधन

सत्यमेव न्यूज दल्ली राजहरा. छत्तीसगढ़ में बौद्ध समाज के आधार स्तंभ जीएस खोब्रागढ़े का 9 दिसंबर की शाम 4ः30 बजे पं.जवाहरलाल नेहरू चिकित्सा एवं अनुसंधान केन्द्र सेक्टर 9 भिलाई में परिनिर्वाण (निधन) हो गया। उनके देह दर्शन को दल्ली राजहरा के इंदिरा नगर स्थित निज निवास में बड़ी संख्या में बौद्ध उपासक और उपासिकाओं सहित उनके अनुयायी मौजूद रहे जहां त्रिशरण और पंचशील का पाठ कर उनको राजहरा वासियों द्वारा अंतिम विदाई दी गई। 90 वर्षीय जीएस खोब्रागढ़े का समूचा जीवन जनसेवा या यूं कहें कि विशुद्ध रूप से डॉ.आंबेडकर के मिशन को पूरा करने समाजसेवा के लिये समर्पित रहा। वे भारतरत्न डॉ.भीमराव आंबेडकर के अंतिम जीवित छात्रों में एक थे। उनके निधन के बाद उनकी इच्छा के अनुरूप परिजनों ने उनके पार्थिव देह को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) रायपुर में 10 दिसंबर को सुपुर्द किया। इससे पहले पुराना बाजार स्थित बौद्ध विहार में उनकी पार्थिव काया को आमजनों के दर्शनार्थ रखा गया था जहां सामाजिकजनों सहित आमजनों ने उनके अंतिम दर्शन किए।

जीएस खोब्रागढ़े उन विरले लोगों में से एक थे जिन्होंने जीवन में अपार संघर्षों का सामना किया लेकिन संघर्षों के बीच शिक्षा को अपने जीवन का आधार बनाया और सक्षम हुये तो लोगों की मदद के लिये हमेशा तत्पर रहे। खासतौर पर उनके जीवन में डॉ.आंबेडकर के व्यक्तित्व व कृतित्व का बड़ा सकारात्मक प्रभाव रहा। निधन उपरांत उनके पुत्र व समाजसेवी अनिल खोब्रागढ़े ने बताया कि उनका जन्म 7 अप्रैल 1934 में ग्राम कोहका (डोंगरगांव) में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा डोंगरगांव की प्राथमिक विद्यालय में हुई। जीएस प्रारंभ से ही बेहद मेधावी व प्रतिभावान छात्र थे। उस जमाने में चौथी बोर्ड की परीक्षा होती थी और राजनांदगांव स्टेट में उन्होंने चौथी बोर्ड की परीक्षा में दूसरा स्थान प्राप्त किया था। बताते हैं कि कुछ एक नंबर से जीएस चूक गये नहीं तो पूरे राजनांदगांव स्टेट में वें प्रथम स्थान पर रहते। ज्ञात हो कि यह वह दौर था जब भारत अंग्रेजो के अधीन गुलाम था। बचपन में बोर्ड परीक्षा में यह कारनामा करने के बाद वें गांव के एक होनहार बच्चे के रूप में पहचाने जाने लगे। इस दौरान आर्थिक विषमताओं के बीच किसी तरह हाईस्कूल की पढ़ाई पूरी हुई और कुछ लोगों की मदद से उच्चतर शिक्षा के लिये उनका दाखिला डॉ.आंबेडकर द्वारा संचालित मिलिंद महाविद्यालय औरंगाबाद में हुआ। यहां उन्होंने बी.एस.सी. की पढ़ाई के लिये दाखिला लिया और यहीं बतौर छात्र उनकी मुलाकात डॉ.आंबेडकर से हुई। दरअसल बाबा साहेब डॉ.आंबेडकर ने उस वक्त समाज के वंचित वर्ग के लिये मिलिंद महाविद्यालय की स्थापना की थी और वे स्वयं महाविद्यालय में कई-कई दिन और कभी तो महीनों रूककर छात्रों को खुद पढ़ाते थे। इसी दौरान डॉ.आंबेडकर के विशाल व्यक्तित्व का जीएस खोब्रागढ़े पर बेहद सकारात्मक प्रभाव पड़ा। यहां अध्ययन के दौरान डॉ.आंबेडकर के आव्हान पर जीएस नागपुर पहुंचे थे और 14 अक्टूबर 1956 को धम्मचक्र परिवर्तन कार्यक्रम में शामिल होकर बौद्ध धम्म की बाबा साहेब के साथ दीक्षा ली थी। इसके लगभग डेढ़ माह बाद 6 दिसंबर 1956 को खबर आयी कि बाबा साहेब का महापरिनिर्वाण हो गया है। यह खबर सुनकर मिलिंद महाविद्यालय के छात्रों में शोक की लहर उठ गई और सैकड़ों की संख्या में छात्र बाबा साहेब को अंतिम विदाई देने मुंबई पहुंचे थे। उन छात्रों में जीएस खोब्रागढ़े भी अग्रणी थे। वे तीन दिनों तक मुंबई में रूके और दादर के उस इलाके में जहां बाबा साहेब का अंतिम संस्कार किया गया था। उनके अंतिम संस्कार व अस्थि संकलन की रस्म के बाद हजारों की संख्या में लोग बाबा साहेब के अन्त्येष्ठी स्थल में मुट्ठी भर राख लेने उमड़ पड़े थे। जीएस ने भी एक मुट्ठी जली हुई राख किसी तरह हासिल की थी। बताते हैं इस घटना के बाद बाबा साहेब के अन्त्येष्ठी स्थल में एक तालाबनुमा गड्ढा हो गया था। जीएस ने बाबा साहेब के पार्थिव काया की राख को बतौर प्रेरणा हमेशा अपने पास रखा और उनके पदचिन्हों पर आगे की शिक्षा तमाम विपरीत परिस्थितियों में भी जारी रखी। औरंगाबाद से आने के बाद जीएस ने रायपुर से राजनीति विज्ञान विषय में स्नातकोत्तर और फिर बाद में बी.एड की उपाधि प्राप्त की। उनके पुत्र अनिल खोब्रागढ़े बताते हैं कि दल्ली राजहरा के बीएसपी माइंस में इसके बाद उन्हें मैट की नौकरी मिली लेकिन उन्हें यह नौकरी रास नहीं आयी और शिक्षा के क्षेत्र में वह अपना योगदान देना चाहते थे इसलिए अर्जुंदा टिकरी के भारती हाईस्कूल में लगभग 10 वर्षों तक बतौर शिक्षक अपनी सेवाएं दी और संघर्ष के बीच आगे की पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राओं को प्रोत्साहित कर उनकी मदद करते रहे। 1967 में उन्हें दल्ली राजहरा के बीएसपी स्कूल में बतौर शिक्षक सेवा का अवसर मिला और वे जीवन पर्यन्त बतौर शिक्षक अपना योगदान देते रहे।

अपने सहयोगी व्यक्तित्व और बेहतर शिक्षकीय कार्य के कारण जीएस खोब्रागढ़े वैसे तो बहुत लोकप्रिय रहे लेकिन असल में भगवान बुद्ध की धम्म शिक्षा और आंबेडकरवाद के प्रति सक्रियता ने उन्हें एक अलग पहचान दिलाई। जीएस खोब्रागढ़े जीवन पर्यन्त धम्म शिक्षा के प्रचार-प्रसार और बाबा साहेब के मिशन को लेकर पूरी सक्रियता से कार्य करते रहे, इस बीच उन्होंने कई स्थानों में बुद्ध विहार और आंबेडकर भवन के निर्माण में अपनी सक्रिय भूमिका का निर्वहन किया साथ ही भगवान बुद्ध और बाबा साहेब आंबेडकर की मूर्ति स्थापना को लेकर भी जगह-जगह अपनी तन, मन, धन से सेवा देते रहे। खासतौर पर उन्होंने वंचित वर्ग के छात्रों को पढ़ाई के लिये हमेशा प्रेरित किया और प्रतिभावान छात्रों की सदैव मदद करते रहे। दल्ली राजहरा के पहले बौद्ध विहार का उद्घाटन उन्होंने महापंडित के नाम से प्रसिद्ध महान साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन के द्वारा करवाया था। वे योग साधना को जीवन का अभिन्न अंग मानते थे। उन्होंने विपश्यना साधना भी की थी और सफल तथा निरोगी जीवन के लिये ध्यान साधना को बेहद सार्थक विज्ञान मानते थे। विपश्यी होने के कारण वे जीवन पर्यंत स्वस्थ और ऊर्जा से पूरित रहे तथा पारिवारिक जिम्मेदारी के बीच प्रतिदिन जनसेवा के कार्य करते ही थे। यह भी उनके मनुष्यवादी महान सोच का उदाहरण है कि वे चाहते थे कि उनके निधन के बाद उनकी देह को दान किया जाये इसलिए उन्होंने 29 मार्च 2019 को ही एम्स रायपुर में देहदान करने की सहमति दी थी और उन्हें एम्स की ओर से सम्मान पत्र की प्राप्त हुआ था। मरणोपरांत परिजनों ने उनकी इस अभिलाष को पूरा करते हुए 10 दिसंबर 2024 को एम्स रायपुर में उनके देह का दान किया जो कि भावी पीढ़ी के लिए भी एक प्रेरणा का प्रसंग बना रहेगा। सत्यमेव न्यूज़ उनके महान और मनुष्यतावादी विचारों को सलाम कर उन्हें भवतु सब्ब मंगलम की भावना के साथ श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

Satyamev News

आम लोगों की खास आवाज

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

You cannot copy content of this page