चार सौ साल पुराना है खैरागढ़ की मां दंतेश्वरी मंदिर का इतिहास
राजा कमलनारायण को स्वप्न देकर पीपल के पेड़ के नीचे पिंड रूप में प्राप्त हुई थी माता की प्रतिमा
खैरागढ़ राजपरिवार की इष्टदेवी के रूप में स्थापित हैं माता
सत्यमेव न्यूज़ खैरागढ़. नवरात्रि का पावन पर्व प्रारंभ हो चुका है और सभी देवी मंदिरों में बड़ी संख्या में श्रद्धालु रोजाना दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं। संगीत नगरी खैरागढ़ का ऐसा ही एक रियासत कालीन माता दंतेश्वरी का मंदिर है जिसका इतिहास लगभग 400 वर्ष पुराना है। नवरात्रि में हजारों की संख्या में भक्त माता के दर्शन करने पहुंचते हैं खैरागढ़ व आस पास के जिलों के साथ-साथ छत्तीसगढ़ के हर राज्यों के अलावा अमेरिका, कनाडा के भक्त भी यहां नवरात्रि में मनोकामना ज्योत जलाते हैं। इस बार ज्योति कलश की संख्या 329 है।
राजा को पिंड रूप में प्राप्त हुई थी मां दंतेश्वरी की प्रतिमा
मंदिर के पुजारी डॉ.मंगलानंद झा ने मंदिर के इतिहास के बारे में चर्चा करते हुये बताया कि पहले यहां महाकाली की प्रतिमा स्थापित थी बाद में आज से करीब 400 वर्षों पूर्व खैरागढ़ रियासत के तत्कालीन राजा कमलनारायण सिंह को स्वप्न के माध्यम से माता दंतेश्वरी की प्रतिमा का पिण्ड के रूप में पीपल के वृक्ष के नीचे दर्शन हुआ जिसके बाद उस स्थान पर खुदाई करके माता की पिण्ड रूपी प्रतिमा को निकाला गया। जब उस प्रतिमा को मंदिर के गर्भगृह में लाने का प्रयास किया गया तब बड़ी कोशिशों के बाद भी प्रतिमा को कोई उठा नही पाया जिसके बाद राजा को पुनः स्वप्न आया की जब राजा पिण्ड रूपी प्रतिमा को उठाकर एक कदम चलेंगे तो हर कदम पर उन्हें दुर्गा सप्तशती के 13 अध्याय का पाठ कर आहुति देनी होगी जिसके बाद राजा ने ऐसा ही किया सुबह ब्रम्ह मुहूर्त में राजा ने प्रतिमा को उठाकर चलना प्रारंभ किया और हर कदम पर दुर्गा सप्तशती का पाठ कर आहुति दी तो शाम को राजा गर्भगृह तक पहुंचे और माता के पिंड रूपी प्रतिमा को स्थापित किया। ऐसा भी कहा जाता है की राजा कमलनारायण सिंह प्रतिदिन आरती के बाद मंदिर के बाहर जहां अभी बेल का वृक्ष है उसके नीचे आसन लगाकर आम लोगों की समस्याएं सुना करते थे और उनका निराकरण किया करते थे। समय-समय पर इस मंदिर का जीर्णोद्धार होता रहा है मंदिर में लगे टाइल्स राजा वीरेंद्र बहादुर सिंह के समय का है जिसे ब्राजील से मंगाया गया था।