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गीत संगीत और नृत्य की शानदार प्रस्तुतियों के साथ संपन्न हुआ खैरागढ़ महोत्सव का तीन दिवसीय भव्य आयोजन

सत्यमेव न्यूज खैरागढ़। खैरागढ़ महोत्सव के समापन दिवस पर कला, संगीत और नृत्य का अद्वितीय संगम देखने को मिला। तीन दिवसीय इस भव्य आयोजन ने न केवल दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया बल्कि भारतीय शास्त्रीय एवं लोक कला की बहुरंगी परंपराओं का यादगार उत्सव भी प्रस्तुत किया।

समापन समारोह का शुभारंभ सायं 5 बजे नृत्य संकाय के विद्यार्थियों की मोहक प्रस्तुतियों से हुआ। कथक में तराना, भरतनाट्यम में शिवोहम एवं राग हिंडोलम, तथा ओडिसी की कोमल लयात्मक प्रस्तुतियों ने दर्शक दीर्घा को भाव-विभोर कर दिया। विश्वविद्यालय की छात्र नृत्यांगनाओं की अनुशासित गतियां, मुख-भंगिमाओं की सजीव अभिव्यक्तियां और संगीत-लय का अनुरूप सामंजस्य। इन सबने वातावरण को एक अप्रतिम सौंदर्य से भर दिया। उनकी प्रस्तुतियों पर बरसी लंबी तालियों ने उनके श्रम और प्रतिभा को सार्थकता प्रदान की।

कार्यक्रम का अगला चरण संगीत-प्रेमियों के लिए अनुपम सौगात साबित हुआ। कोलकाता से पधारे प्रसिद्ध सरोद वादक उस्ताद सिराज अली खान की जादुई उंगलियों से निकली सुर-लहरियों ने सभागार को अलौकिक भाव में डुबो दिया। तबले की लयकारी के साथ सरोद का अद्भुत मेल ऐसा अनुभव दे गया, जिसे दर्शकों ने देर तक तालियों में व्यक्त किया। दर्शकों की आग्रहपूर्ण प्रशंसा से अभिभूत उस्ताद ने पुनः प्रस्तुति देकर उपस्थितों को संगीत-रस में सराबोर कर दिया।

सरोद वादन के पश्चात मंच पर पहुंचे पंडित संजू सहाय जिन्होंने बनारस घराने की समृद्ध परंपरा को अपने तबले के बोलों में सजीव कर दिया। 3,‘उठान’, ‘बनारसी ठेका’ और ‘झाला’ की दमदार प्रस्तुति ने समूचे महोत्सव के वातावरण को संगीतमय कर दिया। उनके प्रत्येक बोल पर उठती तालियां इस बात की साक्षी रहीं कि श्रोतागण संगीत के इस स्वर-समुद्र में पूरी तरह डूब चुके थे। उनकी अद्वितीय प्रस्तुति से प्रभावित होकर कुलपति महोदया ने उन्हें प्रत्येक वर्ष आमंत्रित करने की इच्छा व्यक्त की।

समारोह का प्रमुख आकर्षण रही पुणे की सुप्रसिद्ध कथक नृत्यांगना विदुषी शमा भाटे और उनका दल।
उन्होंने कथक की अभिव्यक्ति-प्रधान शैली के माध्यम से सीता स्वयंवर, केवट प्रसंग, सीता हरण, अशोक वाटिका, लंका दहन और राम-रावण युद्ध जैसे रामायण के प्रमुख प्रसंगों को मनोहारी नृत्य-रूप में प्रस्तुत किया। भाव, गति, ताल और नृत्य-शास्त्र की अद्भुत संगति से सजी उनकी प्रस्तुति पर दर्शक कई बार खड़े होकर तालियों से स्वागत करते रहे।

समारोह के अंतिम चरण में राजनांदगांव की प्रसिद्ध लोक गायिका श्रीमती कविता वासनिक एवं उनके दल ने ‘लोकसंगीत अनुराग धारा’ की शानदार प्रस्तुति दी। पता लेजा रे, तोला देखे रहो गा, आबे की नहीं बता दे मोला जैसे सुमधुर गीतों ने पूरे पंडाल को छत्तीसगढ़ी संस्कृति की सुगंध से सराबोर कर दिया। ढोलक-मांदर की धुनों पर जहां कलाकार झूम कर नाच उठे वहीं दर्शक भी महोत्सव के रागमयी उत्साह में थिरकने लगे। कार्यक्रम का उत्सवी उल्लास इतना बढ़ा कि प्रस्तुति को निर्धारित समय से आगे बढ़ाना पड़ा। लोकमाटी की महक, अपनत्व की ऊष्मा और लोक-संस्कृति की सादगी-सब कुछ इस प्रस्तुति में बखूबी झलका। तीन दिनों तक चला खैरागढ़ महोत्सव कला, संस्कृति और संगीत की ऐसी जीवंत परंपरा का प्रतीक बनकर उभरा, जिसने दर्शकों की स्मृतियों में एक अविस्मरणीय छाप छोड़ दी है जो बरसों तक कला प्रेमियों एवं कला साधक छात्र-छात्राओं के बीच मनोरमित होती रहेगी।

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