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खैरागढ़ विश्वविद्यालय में जनजातीय चेतना और प्रतिरोध पर आधारित राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ समापन

सत्यमेव न्यूज खैरागढ़. इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय में स्वदेशी प्रतिरोध की आवाज़ें, स्वतंत्रता आंदोलन में छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश की जनजातियों का योगदान विषय पर केंद्रित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन शनिवार 2 अगस्त को हुआ। विश्वविद्यालय के अंग्रेज़ी विभाग द्वारा आयोजित इस संगोष्ठी का उद्देश्य जनजातीय समुदायों की ऐतिहासिक भूमिका को सामने लाना और उन्हें साहित्यिक तथा सामाजिक विमर्श के केंद्र में लाना था। समापन सत्र की अध्यक्षता कुलपति प्रो.डॉ. लवली शर्मा ने की। प्रो.डॉ.मनीष श्रीवास्तव गुरु घासीदास विश्वविद्यालय बिलासपुर मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। डॉ.सत्यप्रकाश प्रसाद जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय नई दिल्ली, प्रो.डॉ.सी.आर.कर रायपुर तथा प्रो.मृदुला शुक्ल विशिष्ट व विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित रहीं। कार्यक्रम का संचालन शोधार्थी सुष्मिता चौधरी ने किया। सभी अतिथियों का स्वागत पारंपरिक तरीके से पौधा, अंगवस्त्र, स्मृति चिन्ह और धन के बैज भेंट कर किया गया। एमिटी विश्वविद्यालय लखनऊ से आए रोहित यादव ने संगोष्ठी के अनुभव साझा करते हुए इसे अत्यंत ज्ञानवर्धक और प्रेरक बताया। संयोजक डॉ.कौस्तुभ रंजन ने संगोष्ठी की गतिविधियों का संक्षिप्त विवरण देते हुए कहा कि यह केवल शैक्षणिक आयोजन नहीं बल्कि जनजातीय समुदायों को इतिहास और साहित्य में उनका उचित स्थान दिलाने की दिशा में एक प्रयास था। यह संगोष्ठी बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती वर्ष पर भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के सहयोग से आयोजित की गई थी। समापन सत्र में सभी अतिथियों ने विषय की प्रासंगिकता पर अपने विचार रखे। कुलपति प्रो.लवली शर्मा ने छत्तीसगढ़ की जनजातीय संस्कृति को रेखांकित करते हुए ठुमरी के माध्यम से अपनी भावनाओं को प्रस्तुत किया और आयोजन समिति की सराहना की। प्रो.मृदुला शुक्ल ने खैरागढ़ की सांस्कृतिक विरासत और आयोजन की रचनात्मकता को विशेष बताया। प्रो.कर ने जनजातीय संस्कृति की परंपराओं को साहित्यिक दृष्टिकोण से जोड़ते हुए स्वदेशी आवाज़ों को मुख्यधारा में लाने की आवश्यकता पर बल दिया। डॉ.सत्य प्रकाश प्रसाद ने विषय की समसामयिकता और समाज में इसकी ज़रूरत को उजागर किया। प्रो.मनीष श्रीवास्तव ने बिरसा मुंडा, टंट्या भील और रानी दुर्गावती जैसे जननायकों की भूमिका को स्मरण करते हुए जनजातीय चेतना को मानवीय दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता बताई। अंत में डॉ.कौस्तुभ रंजन ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए बताया कि देशभर से 100 से अधिक प्रतिभागियों ने पंजीकरण कराया और सभी सत्र उद्देश्यपूर्ण एवं प्रभावी रहे। इससे पहले छात्राओं द्वारा छत्तीसगढ़ के मनमोहक आदिवासी नृत्यों की प्रस्तुति दी गई। समारोह का समापन प्रमाण पत्र वितरण एवं चाय पर चर्चा के साथ हुआ।

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