छुईखदान से दनिया सडक़ निर्माण में किसानों के साथ छल कर रहा केसीजी प्रशासन
एडीबी प्रोजेक्ट व राजस्व विभाग की मिलीभगत से किसान परेशान
सत्यमेव न्यूज़/खैरागढ़. नवगठित जिला केसीजी के सबसे चर्चित मामला छुईखदान से दनिया सडक़ निर्माण में किसान मुआवजा के नाम पर छले जा रहे हैं, जहां एडीबी प्रोजेक्ट के अधिकारी मुआवजा में देरी के लिये राजस्व विभाग को दोषी ठहरा रहा है वहीं राजस्व विभाग का कहना है कि एडीबी प्रोजेक्ट के अधिकारियों की लापरवाही के चलते किसानों को मुआवजा मिलने पर संशय की स्थिति बन गई है. पूरे मामले में दो विभागों की ओर से किसानों को आपसी अनबन और आपसी तालमेल नहीं होने का कहानी बताकर दोनों विभाग के अधिकारी किसानों के पक्ष में कुछ करना नहीं चाहते हैं. एक नेता के संरक्षण के चलते अधिकारियों के इस रवैय्ये का खमियाजा प्रभावितों को भुगतना पड़ रहा है.
मात्र तीन किसानों को मिली है मुआवजा राशि
27 किलोमीटर लंबा निर्माणाधीन सडक़ में लगभग 258 किसानों की लगानी (खेत) जमीन में 24 किलोमीटर सडक़ का निर्माण कर दिया गया है जिसमें से ग्राम सीताडबरी गांव के मात्र 03 किसानों को ही जमीन का मुआवजा दिया गया है बाकी 9 गांव के 148 किसानों की मुआवजा फाईल जिला मुख्यालय में पदस्थ संयुक्त कलेक्टर सुनील शर्मा के कार्यालय में धूल खाते पड़ी हुई है. मुआवजे के संबंध में जानकारी लेने किसान गये तो अधिकारी के अनुपस्थित होने की वजह से कोई जानकारी नहीं मिल पायी.
सूचना के अधिकार के तहत जानकारी तक नहीं दी जा रही है
जब किसानों ने सूचना के अधिकार के तहत आवेदन प्रस्तुत कर नियमानुसार मुआवजा की जानकारी लेनी चाही तो जन सूचना अधिकारी सुनील शर्मा द्वारा न ही जानकारी दी जा रही है बल्कि सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की खुले आम धज्जियाँ उड़ाई जा रही है. इनके कार्यालय के सामने न ही सूचना के अधिकार अधिनियम की कोई जानकारी लिखी गई है और न ही इनके कार्यालय द्वारा अपीलीय अधिकारी के नाम पते की कोई जानकारी है. पूछने पर भी संबंधित बाबू दिनेश चंदेल द्वारा नहीं मालूम होना बताया जाता है जिससे किसान त्रस्त हो चुके हैं.
भू-स्वामी हक के पट्टाधारक ग्रामीणों की भूमि पर भी सडक़ निर्माण
सरकार द्वारा वर्षों पूर्व भूमि स्वामी हक में दी गई जमीन जिस पर भूमि स्वामी द्वारा मकान निर्माण कर जीवन यापन किया जा रहा है बावजूद इन मकानों के जमीन का बिना मुआवजा दिये या बिना समुचित व्यवथापन के मकानों को तोड़ कर सडक़ का निर्माण कर दिया गया है. इतना ही नहीं कई ऐसे मकानों को तोडक़र सडक़ बना दिया गया है जिन मकानों का निर्माण प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत शासकीय अनुदान से बना है जिसके लिए बकायदा पट्टा जारी किया जाता है और सक्षम शासकीय आधिकारी की निगरानी में नक्शा पास कर मकानों का निर्माण किया गया है.
कर्जा लेकर बनाये मकान भी तोड़े गये. प्रधानमंत्री आवास योजना में ग्रामीण क्षेत्रों में 1.30 लाख रूपये शासन की ओर से दी जाती है उस राशि में गरीब ग्रामीण अपनी जीवन भर की पूंजी को या किसी साहूकार, रिश्तेदार से कर्ज लेकर मकान को बेहतर बनाता है ताकि मकान निर्माण सही हो सके. ऐसे मकानों को तोडक़र बेघर कर दिया गया है. इन सारी बातों को नजऱ अंदाज़ कर, नियमों का पालन किये बिना सैंकड़ो मकानों को तोड़ दिया गया है. जनप्रतिनिधि मामले में मौन है, प्रभावितों की पीड़ा को कोई सुनने वाला नहीं है. हालांकि विपक्ष के नेता खम्हन ताम्रकार लगातार किसानों के पक्ष में खड़े नजर आ रहे हैं. इधर सत्ता पक्ष के नेताओं की बात करें तो पूर्व विधायक गिरवर जंघेल प्रभावितों की समस्या को लेकर प्रशासन से बात कर ग्रामीणों की समस्या को दूर करने के लिए कह रहे हैं. इसके अलावा सारे नेता ठेकेदार और अधिकारियों के सामने मौन साधे हुये है.
काम में तेजी और मुआवजा में उदासीनता से किसान परेशान
अपनी ज़मीन को सडक़ निर्माण में खो चूके किसान परेशान हैं. किसान अपनी ज़मीन का मुआवजा मिलने को लेकर शंका ग्रस्त है. किसानों के द्वारा मुआवजा के लिये धारा 80 का नोटिस देने के बाद भी एडीबी प्रोजेक्ट के और राजस्व अधिकारी के कानों में जूं तक नहीं रेंग रहा है. किसान अपनी ही जमीन के लिए वकील और न्यायालय के चक्कर लगाने के लिए मजबूर हो गये हैं.
समय सीमा बीत जाने के बाद भी जानकारी नहीं दे रहे आधिकारी
दो माह पूर्व 12 नवंबर 2022 को किसानों ने मुआवजा संबंधित जानकारी के लिए अनुविभाग अधिकारी राजस्व कार्यालय में सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत आवेदन प्रस्तुत कर जानकारी चाही गई थी, जानकारी देने के बजाए उक्त आवेदन को इस कार्यालय के जनसूचना अधिकारी रेणुका रात्रे द्वारा जन सूचना अधिकारी परियोजना प्रबंधक एडीबी प्रोजेक्ट कार्यालय दुर्ग को भेज दिया गया कि जानकारी आप आवेदक को उपल्ब्ध करवाई. इधर परियोजना प्रबंधक एडीबी प्रोजेक्ट कार्यालय के जनसूचना अधिकारी बीके पटौदिया ने आवेदन को यह कह कर एसडीएम कार्यालय छुईखदान को फिर लौटा दिया कि जानकारी आपके कार्यालय की ओर से दी जानी चाहिये.
मामला जमीन अधिग्रहण का है, इस तरह सूचना के अधिकार में प्रस्तुत आवेदन को दो माह बीतने को है लेकिन शासकीय आधिकारी जानकारी देने को गंभीर नहीं. ऐसे ही जिला कार्यालय में पदस्थ जनसूचना अधिकारी सुनील शर्मा के द्वारा भी एक आवेदक को राशि जमा करवाने के बाद भी महिनों से जानकारी नहीं दी जा रही है. पूरे मामले में समय पर जानकारी नहीं देना या किसानों को मुआवजा के नाम पर छला जाना किसी बड़ी गड़बड़ी की ओर इशारा करता है. मामले की उच्च स्तरीय शिकायत भी रायपुर से लेकर नई दिल्ली तक की जा चुकी है. बिना अधिग्रहण किये कुल 26.94 किलोमीटर लंबी बनने वाली सडक़ में से 24 किलोमीटर सडक़ का निर्माण किया जा चुका है जिसमें 258 किसानों के निजी खेत भूमि और 130 से अधिक भूमि स्वामी हक के पट्टा भूमि पर बने मकानों को तोड़ कर सडक़ निर्माण कर दिया गया है.