जिले में सैकड़ो परिवार का छत्तीसगढ़ से बाहर अनवरत हो रहा पलायन

00 अफसोस: जिला निर्माण के 1 साल बाद भी प्रशासन के पास कोई आंकड़ा नहीं
00 चुनाव व दीवाली खत्म होने के बाद केसीजी में फिर शुरू हुआ पलायन
00 कारण: दूसरे राज्यों में मनरेगा से अधिक दर पर होती है कमाई
00 शासन की रीपा योजना से बढ़ी उम्मीदें पर अब तक जिले में योजना क्रियान्वयन संतोषजनक नहीं
अनुराग शाँति तुरे/उमेश्वर वर्मा
सत्यमेव न्यूज़ /खैरागढ़. जिले में वोटिंग के बाद पलायन बढ़ गया हैं, यह खबर थोड़ी अलग है पर सच हैं. खैरागढ़ जिले से अब तक हजारों की संख्या में निर्धनता में रहना बसर करने वाले परिवार कमाने खाने के लिए निकल चुके हैं. पलायन करने वालों में सबसे ज्यादा संख्या साल्हेवारा और जंगल गातापार इलाके की हैं. एक अनुमानित आंकड़े के मुताबिक केसीजी जिले से लगभग 10 हजार से अधिक लोग पलायन कर चुके हैं. इन सब के बीच अफसोसनाक बात यह भी है कि पलायन को लेकर जनपद पंचायतों के साथ ही जिला पंचायत और जिला प्रशासन के पास कोई रिकार्ड दर्ज नहीं हैं.
बहुतायत में रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे निर्धन ग्रामीण व बेरोजगार युवा
पलायन करने में सबसे बड़ी संख्या निर्धनता की मार झेल रहे दिहाड़ी मजदूर और बेरोजगार युवाओं की हैं जो रोजगार की तालाश में दूसरे राज्यों की ओर पलायन करते हैं. फसल कटने और बिकने के बाद इनकी संख्या और बढ़ जायेगी, ऐसा पलायन को लेकर परंपरागत परिस्तिथियां दिख रही हैं. गौर करने वाली बात यह भी है कि इस साल बारिश देर से होने की वजह से खैरागढ़ अंचल में खेती पिछड़ गई यही वजह हैं कि कमाने खाने जाने वाले परिवार भी देर से रवाना हो रहे हैं. ज्यादातर परिवार खेतीहर मजदूर हैं, जिनके पास खेत नहीं (भूमिहीन) हैं वे दूसरे के खेत में मजदूरी करते हैं और खेती का सीजन खत्म होने पर दूसरे राज्य कमाने खाने चले जाते हैं. इसके पीछे बड़ी वजह यह भी है कि महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना की तहत मिलने वाली मजदूरी दर अन्य राज्यों के बडे़ शहरों में मिलने वाले मजदूरी की तुलना में काफी कम हैं. यही वजह है कि खेती किसानी के बाद बड़ी संख्या में ग्रामीण पलायन करते हैं. सरकार की योजनाएं और प्रशासन की कवायद भी इन्हें रोक नहीं पाती, कुछ उम्मीद छत्तीसगढ़ शासन की रीपा योजना से बढ़ी थी पर नया जिला होने के कारण इस योजना का क्रियान्वयन अब तक संतोषप्रद नहीं रहा है. वहीं ताज्जुब की बात यह भी हैं कि जनपद व जिला पंचायतो के पास भी पलायन की सही जानकारी नहीं होती.
वर्तमान में मनरेगा में भी नहीं मिल रहा काम
मनरेगा में 73515 एक्टिव कार्ड हैं जिसमें 154140 मजदूर काम कर रहे हैं केसीजी जिलें के 221 पंचायतों में अभी मनरेगा के काम पूरी तरह ठप पड़ा हुआ हैं वहीं शासन से मनरेगा के तहत मिलने वाला काम मजदूरों की तुलना में बहुत कम हैं और ऐसे लोगों की संख्या बहुत अधिक हैं जिन्हें काम नहीं मिल रहा हैं.
जानिए क्या कहते हैं निर्धन मजदूर
बस स्टैड पर हैदराबाद के बस का इंतजार कर रहें ग्राम टेमरी निवासी गुलापचंद के मुतबिक मनरेगा में 221 रूपयें रोजी मिलती हैं जबकि हैदराबाद में उन्हें 600 रूपयें रोजी मिलती हैं. राज मिस्त्री की रोजी 900 रूपयें तक मिलती हैं. इतनी राशि ग्रामीण क्षेत्र में नहीं मिल सकती हैं. इनमें ज्यादातर साल्हेवारा और गातापार जंगल इलाके के लोग पलायन कर रहे हैं.
गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना और उड़ीसा की ओर होता है पलायन
पलायन को लेकर जो वास्तविक जानकारी मिल रही है उसके मुताबिक खैरागढ़ जिले के ज्यादातर ग्रामीण गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना और उड़ीसा की ओर पलायन करते हैं. इनमें अधिकांश ग्रामीण सुरत, मुंबई, हैदराबाद, पुणे, नागपुर, अहमदाबाद, पुरी, जैसे बड़े शहर की ओर काम की तलाश में पलायन कर रहे हैं.
पंचायत द्वारा पलायन पंजी संधारित की जाती है, सटीक जानकारी पंचायत से ही मिल पाएगी, नवीन जिला होने के कारण हमारे पास अभी इस संबंध में पृथक से कोई रिकार्ड नहीं है.
जितेंद्र साहू, परियोजना निर्देशक जिला पंचायत केसीजी
पलायन नहीं हो रहा हैं, हमारे पास पलायन की कोई रिकार्ड दर्ज नहीं हैं. हमें पंचायत के सरपंच-सचिव से इस संबंध में कोई जानकारी नहीं मिली हैं.
शिशिर शर्मा, सीईओ जनपद पंचायत खैरागढ़
इस संबंध में हमारे पास कोई रिकॉर्ड नहीं है पंचायत के पास रिकॉर्ड होंगे
जेएस राजपूत, सीईओ जनपद पंचायत छुईखदान