
सत्यमेव न्यूज़/रायपुर। भारतीय बौद्ध महासभा के राष्ट्रीय ट्रस्टी एस.आर. कानडे ने प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में घटी घटना को भारतीय लोकतंत्र और न्यायपालिका पर सीधा हमला बताया है। उन्होंने कहा कि भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष गणराज्य है, जहां संविधान सभी धर्मों को समान अधिकार और सभी को अपने धर्म का पालन एवं प्रचार करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी पहचान इसकी विविधता में निहित एकता है लेकिन बीते कुछ वर्षों में देश में धार्मिक विद्वेष, जातीय उन्माद और कानून को ठेंगा दिखाने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। कभी सड़कों पर धार्मिक जुलूसों के नाम पर अव्यवस्था फैलाना, कभी पुलिस और प्रशासन पर दबाव बनाना, तो कभी खुली गुंडागर्दी ये सब स्थिति को अशुभ दिशा में ले जा रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट की घटना शर्मनाक, लोकतंत्र को झकझोरने वाला हमला
मामले को लेकर कानडे ने विशेष रूप से सुप्रीम कोर्ट में घटी उस घटना पर चिंता जताई जिसमें कोर्ट की कार्यवाही के दौरान 71 वर्षीय अधिवक्ता राकेश किशोर ने मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की ओर जूता फेंकने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि यह केवल न्यायालय की मर्यादा भंग करने की घटना नहीं बल्कि उस कट्टर और जहरीली विचारधारा का परिणाम है जो धर्म के नाम पर हिंसा और अनादर को सामान्य बना रही है।
धर्म रक्षा के नाम पर अराजकता-समाज के लिए खतरे की घंटी
प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि देश में कुछ समूह ऐसे हैं जो खुद को धर्मरक्षक बताते हैं लेकिन उनका वास्तविक उद्देश्य राजनीतिक वर्चस्व स्थापित करना है। ये समूह मुसलमानों से घृणा, ईसाइयों और सिखों से दूरी तथा दलितों व कमजोर तबकों के प्रति असहजता फैलाकर समाज में भय और विभाजन का माहौल बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि “जब कोई व्यक्ति गरीब मजदूर पर पेशाब करता है, जब दलितों पर अत्याचार होते हैं जब धार्मिक स्थलों में घुसकर उपद्रव किया जाता है और इसे धर्म की आड़ में जायज़ ठहराया जाता है, तब यह केवल अपराध नहीं बल्कि संविधान और सभ्यता के मूल्यों पर हमला है।”
न्यायपालिका पर हमला-भारतीय गणराज्य की आत्मा को चोट
भारतीय बौद्ध महासभा ने चेतावनी दी है कि सुप्रीम कोर्ट जैसी सर्वोच्च संस्था पर प्रतीकात्मक हमला भारतीय गणराज्य की आत्मा पर हमला है। यह सिर्फ एक व्यक्ति का कृत्य नहीं बल्कि उस मानसिकता का प्रतिफल है जो संविधान से ऊपर खुद को और अपनी विचारधारा को मानने लगी है। कानडे ने नागरिक समाज, बुद्धिजीवियों और लोकतंत्र में आस्था रखने वाले सभी वर्गों से अपील की है कि धर्म के नाम पर फैल रहे उन्माद का संगठित प्रतिरोध किया जाए, अन्यथा यही प्रवृत्ति आने वाले समय में संविधान, न्याय और स्वतंत्रता जैसे मूल्यों को निगल सकती है। यह चेतावनी का समय है। धर्म के नाम पर हिंसा और नफरत को यदि सामान्य बना दिया गया तो आने वाली पीढ़ियाँ लोकतंत्र और न्याय की अवधारणा को केवल किताबों में पढ़ेंगी।