Advertisement
IMG-20241028-WA0001
IMG-20241028-WA0002
previous arrow
next arrow
IMG-20241028-WA0001
IMG-20241028-WA0002
previous arrow
next arrow
KCG

लोक कलाकारों के प्रति समाज का भाव अहसान करने जैसा न हो : विनोद वर्मा

विश्वविद्यालय के लोक संगीत व कला संकाय द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ

मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुये मुख्यमंत्री के सलाहकार व वरिष्ठ पत्रकार विनोद वर्मा

सत्यमेव न्यूज़/खैरागढ़. लोक कला और लोक कलाकारों के प्रति समाज का भाव उपकार करने जैसा हो गया है. हमें लोक कलाकारों का सम्मान करना चाहिये, क्योंकि कलाकार पृथ्वी का विनाश रोकते हुये दुनिया को प्रकृति से जोडऩे का काम करते हैं. उक्त बातें मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के प्रमुख सलाहकार व वरिष्ठ पत्रकार विनोद वर्मा ने कही. इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी सुरता (राष्ट्रीय सांस्कृतिक अस्मिता में छत्तीसगढ़ी लोक कलाकारों की भूमिका) के शुभारंभ सत्र में बतौर मुख्य अतिथि पत्रकार विनोद वर्मा शामिल हुये. श्री वर्मा ने कहा कि लोक कला और लोक कलाकारों के संरक्षण तथा संवर्धन के लिए सबसे बड़ा संकट आजीविका का रहा है. सरकारें और समाज लोक कलाकारों का वह ऋण नहीं चुका पा रहे हैं जो चुकाने चाहिये. उन्होंने कहा कि यात्राएं जरूरी है, यात्राएं सिखाती है. चाहे वस्तु हो या विचार, यात्राएं उन्हें विस्तार देती है और परिपक्व बनाती हैं. कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही कुलपति पद्मश्री डॉ.ममता चंद्राकर ने दिवंगत छत्तीसगढ़ी लोक कलाकारों को स्मरण करते हुये उस दौर के बारे में बताया जब उनके पिता मूर्धन्य छत्तीसगढ़ी लोक कलाकार दाऊ महासिंह चंद्राकर जीवित थे और उन दिनों उनके घर में लोक कलाकारों का अनवरत आना-जाना लगा रहता था. उन्होंने कहा कि लोक कलाकार सिर्फ कलाकार नहीं होते बल्कि लोक संस्कृति के ध्वज वाहक होते हैं. लोक कलाकारों के कारण स्थानीय परंपराएं और संस्कृति देश-दुनिया में प्रचारित-प्रसारित होती है.

मोनोग्राफ पर सहमति

संगोष्ठी के शुभारंभ समारोह का संचालन कर रहे अधिष्ठाता डॉ.योगेंद्र चौबे ने मंच से प्रस्ताव रखा कि क्यों न राष्ट्रीय अस्मिता के लिये उल्लेखनीय योगदान देने वाले छत्तीसगढ़ी लोक कलाकारों पर मोनोग्राफ तैयार किया जाये. डॉ.चौबे के इस प्रस्ताव पर मुख्य अतिथि श्री वर्मा ने अपने संबोधन के दौरान सहमति व्यक्त करते हुये कुलपति को सुझाव दिया कि इसके लिये योजना बनाकर चर्चा की जानी चाहिये. उन्होंने कहा कि मोनोग्राफ से विद्यार्थी, शोधार्थी के साथ नई पीढ़ी लाभान्वित हो सकेगी. दो दिनों के इस वृहद कार्यक्रम में पहले दिन की शाम 6:30 बजे रंग-सरोवर सांस्कृतिक संस्था के द्वारा प्रसिद्ध संस्कृतिकर्मी भूपेंद्र साहू के निर्देशन में लोक नाट्य भरथरी की प्रस्तुति दी गई.

चार प्रश्नों से हुई संवाद की शुरुआत

साहित्यकार एवं समीक्षक प्रो.डॉ.रमाकांत श्रीवास्तव ने इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में आधार वक्तव्य देते हुये कहा कि छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति और परंपरा का वृतांत और कैनवास बहुत बड़ा है. उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति को समृद्ध बनाने में लोक संस्कृतियों का बड़ा योगदान है. उन्होंने प्रसिद्ध समाजशास्त्री पीसी जोशी की किताब बदलते संदर्भ, उजड़ते लोग का उल्लेख करते हुये कहा कि भारतीय संस्कृति में बहुलता की अपनी विशेषता है. इसे खत्म नहीं किया जाना चाहिये. उन्होंने स्वामी विवेकानंद की शिष्या रहीं सिस्टर निवेदिता की एक किताब का जिक्र करते हुये कहा कि भारतीय संस्कृति में मौजूद विभिन्नताएं और उन विभिन्नताओं के बावजूद सभी का एक-दूसरे से अंतर्संबंध स्थापित करने वाला अदृश्य सूत्र भारतीय संस्कृति का विशेष आकर्षण है. उन्होंने प्रसिद्ध समाजशास्त्री डॉ.पीसी जोशी लिखित किताब में उठाये गये प्रश्नों- पहला, क्या लोक समुदाय पारंपरिक रूप में जीवित रह सकता है? दूसरा, क्या उन्हें नए स्वरूप में ढाया जा सकता है? तीसरा, आज के बदलते संदर्भ में उनका क्या भविष्य है? चौथा, उन्हें सुरक्षित ही नहीं, जीवित रखने के क्या विकल्प हो सकते हैं? का वाचन करते हुये अपेक्षा व्यक्त की कि इस संगोष्ठी में इन प्रश्नों पर सार्थक चर्चा होगी. विषय विशेषज्ञ और वक्ता के रूप में साहित्यकार एवं लोककला मर्मज्ञ डॉ.पीसी लाल यादव, सुप्रसिद्ध लोक कलाकार दीपक चंद्राकर, साहित्यकार एवं लोककला मर्मज्ञ डॉ.जीवन यदु, समीक्षक एवं साहित्यकार प्रो.डॉ.विनय कुमार पाठक, छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के सचिव डॉ.अनिल कुमार भतपहरी, समीक्षक एवं साहित्यकार प्रो.रमाकांत श्रीवास्तव, डॉ. योगेंद्र चौबे, अधिष्ठाता, डॉ.राजन यादव मौजूद रहे.

Satyamev News

आम लोगों की खास आवाज

Related Articles

Back to top button

You cannot copy content of this page