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राजनांदगांव

प्रशासनिक चेतावनी का कोई असर नहीं-डीजे की बुकिंग ने तय किया विसर्जन का समय

कायदे-कानून को ताक में रखकर संगीत नगरी में धर्म के नाम पर हो रहा अधर्म

डीजे बजाने को लेकर प्रशासन तय नहीं कर पाया कोई मापदंड

पितृ पक्ष लगने के बाद भी हो रहा है गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन

सत्यमेव न्यूज़/खैरागढ़. गणेश प्रतिमाओं के विसर्जन को लेकर केन्द्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दिशा-निर्देशों को लेकर प्रशासन की सख्ती और कड़ी चेतावनी इस बार भी काम नहीं आयी. कोविड काल के कारण दो साल बाद सार्वजनिक तौर पर 31 अगस्त से गणपति प्रतिमाओं की नगर में स्थापना की गई थी और प्रशासन ने पहले ही बैठक लेकर गणपति विसर्जन के लिये तिथि और समय तय किया था और यह तय हुआ था कि आमनेर नदी में ही पूरी सुरक्षा व अनुशासन के साथ सभी गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन होगा. आदेश के बाद नगर की अमूमन गणेश समितियों ने आमनेर नदी में प्रतिमाओं का विसर्जन नहीं किया. कुछ समितियों को छोडक़र प्रशासन द्वारा तय तिथि और समय के अनुरूप विसर्जन नहीं हो पाया. इसके पीछे एकमात्र वजह डीजे डिस्को की बुकिंग रही. हैरान करने वाली बात है कि समितियों ने विसर्जन को लेकर डीजे की बुकिंग व समय के हिसाब से विसर्जन के लिये तिथि व समय तय किये. रविवार को पितृपक्ष लगने के बाद भी विसर्जन की प्रक्रिया चलती रही और ऐसा सिर्फ इसलिये क्योंकि समितियों को विसर्जन के लिये डीजे उपलब्ध नहीं हो पा रहा था. ज्ञात हो कि नगर में लगभग 10 से अधिक डीजे वाले है और 14 से अधिक समितियों द्वारा सार्वजनिक रूप से बड़ी गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाना था लेकिन हर समितियों के हिसाब से डीजे की सहज सुलभता नहीं होने के कारण डीजे की बुकिंग के हिसाब से कई हजार से लेकर लाख रूपये तक खर्च कर प्रतिमाओं का विसर्जन किया गया. कुछ एक समितियों को छोड़ डीजे की धुन पर हाई साऊंड फ्रिक्वेंसी में लगभग बेहूदा फिल्मी गानों के साथ शराब के नशे में भौंड़ा नाच करते हुये विनायक को विसर्जन विदाई दी गई जो किसी भी धर्मप्रेमी के लिये विचलित कर देने वाली घटना है वहीं कुछ समितियों ने पूरी मर्यादा और अनुशासन के साथ गणपति विसर्जन किया और डीजे की जगह ढोल-तासे व धुमाल की धुन पर अपनी आस्था व भक्ति को प्रकट किया. डीजे की हाई फ्रिक्वेंसी पर अंकुश लगाने लाख कोशिशों के बाद भी प्रशासन इस पर लगाम लगा पाने अक्षम है वहीं राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी के कारण भी विसर्जन की धार्मिक परंपराएं विकृत व विखण्डित होती जा रही है.

128 साल पहले हुई थी गणेश उत्सव की शुरूआत

गणेश उत्सव की शुरूआत स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बाल गंगाधर तिलक ने सन 1894 में की थी जिसका मकसद भारतीयता की भावना को एकता के सूत्र में पिरोकर देश की अखंडता को सुनिश्चित करना था. ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ गणेश उत्सव की शुरूआत एक मील का पत्थर साबित हुई और लोगों में एकता की भावना संचारित होने लगी. गांव, खेड़े, कस्बे और शहरों में बाल गणेश उत्सव समितियां बनाकर गणनायक गणेश की पूजा अर्चना होने लगी और इसी दौरान लोग बड़ी संख्या में स्वतंत्रता संग्राम से जुडऩे लगे. गणेश उत्सव को लेकर लोकमान्य तिलक ने अपने अखबार केसरी में 8 सितंबर 1896 को इसे एक मिशन बताया और देशवासियों को गणेश उत्सव के अभियान से जुडऩे की अपील की. सन 1910 के आते-आते गणपति उत्सव ने पूरे देश में एक व्यापक रूप धारण कर लिया.

विसर्जन में धर्म पर हावी हो रहा मनोरंजन व पाश्चात्य संस्कृति

विसर्जन के दौरान अब धर्म से अधिक मनोरंजन व पाश्चात्य संस्कृति का खुलेआम अनुशरण किया जा रहा है. हिन्दू धर्मग्रंथों और शास्त्रों में ही नहीं बल्कि प्रत्येक धर्मग्रंथो में इस बात का अलग-अलग तरीके से स्पष्ट उल्लेख है कि धर्म मनोरंजन के लिये नहीं अपितु श्रद्धा साधना के जरिये जीवन उत्कर्ष के लिये निर्धारित हुई है लेकिन धर्म के नाम पर दैवीय प्रतिमा स्थापना और विसर्जन की आधुनिक परंपरा पूरी तरह से मनोरंजन और आत्मआनंद पर केन्द्रित हो चली है और यही कारण है कि सार्वजनिक समितियों में प्रतिमा स्थापना स्थल पर ज्यादातर लोग शराब का सेवन कर रहे है वहीं कई स्थानों पर जुआं खेलने की भी खबरें आती रही वहीं रविवार को तो एक गणेश समिति के कर्ता-धर्ता खुलेआम शराब का सेवन करते नजर आये जो विचलित कर देने वाला था. यह भी आश्चर्यजनक है कि पूर्व के वर्षो में एक गांव में एक ही स्थान पर गणेश स्थापना होती थी लेकिन अब एक गांव में दस स्थानों पर गणेश स्थापना की जा रही है और प्रतिमा स्थापना गुटबाजी व राजनीति का माध्यम बनता जा रहा है वहीं विसर्जन के लिये भी मनोरंजन सर्वोपरि हो चला है जिसके चलते ही डीजे परंपरा विसर्जन के लिये अनिवार्य हो चली है और लोग नशे में अश£ील गानों के साथ दैवीय परंपरा का अनादर कर रहे है. बताया जा रहा है कि सोमवार तक कुछ समितियों का विसर्जन अभी भी शेष रह गया है.

शहर के रिहायशी इलाकों में डीजे को लेकर हो रही अत्यधिक परेशानी

विसर्जन के दौरान कानफोड़ू डीजे की धुन के कारण शहर के रिहायशी इलाकों में बसे नागरिकों को बहुत अधिक परेशानी हो रही है. खासतौर पर नगर के सबसे सघन इलाके वाले गोल बाजार, मस्जिद मार्ग, बख्शी मार्ग, ठाकुरपारा, बरेठपारा, सोनारपारा सहित कई अन्य गली-मोहल् ले में निवास करने वाले लोग विसर्जन के दौरान डीजे की हृदयगति बढ़ा देने वाली ध्वनि के कारण परेशान हंै. बताया जा रहा है कि रविवार की रात तकरीबन 1 से 3 बजे के बीच रिहायशी इलाके में एक समिति के द्वारा बिना रोक-टोक डीजे बजाकर विसर्जन के नाम पर भारी उत्पात मचाया गया जिससे लोग इतने परेशान हो गये कि वे रात में सो नहीं पाये. डीजे की भारी-भरकम आवाज के कारण न केवल लोगों को बल्कि घर में रखे सामानों को भी नुकसान पहुंच रहा है.

गणपति पूजन में छिपा है सफलता का मूल मंत्र

शास्त्रों का अध्ययन बताता है कि गणेश पूजन में सीधे तौर पर सफलता का मूल मंत्र छिपा हुआ है. श्री गणेश पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि गणनायक के रूप में भगवान गणेश की पूजा अर्चना भक्तों को सफलता के लिये प्रेरित करती है. भगवान गणेश का गजमुख मनोवांछित सफलता का द्योतक माना गया है. गणनायक की लम्बी सूंड सफलता की लम्बाई, उनकी सूक्ष्म आँखे जीवन में सूक्ष्मता के अवलोकन और उनके सूपाकार कर्ण सफलता व यश के लिये सावधानी के साथ श्रवण-मनन को परिभाषित करते है साथ ही भगवान गणेश को रिद्धी सिद्धी का स्वामी होने के कारण श्रेयस्कर धनार्जन व यश प्राप्ति के लिये पूजा जाता रहा है वहीं यह भी मान्यता है कि श्री गणेश की श्रद्धापूर्वक आराधना से उनके पुत्रद्वय शुभ और लाभ की भी प्राप्ति होती है.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

दैवीय पूजन एवं विसर्जन को लेकर मां दन्तेश्वरी आध्यात्मिक साधना केन्द्र के पुरोहित पं.रक्षानंद झा कहते है कि दैवीय शक्तियां श्रद्धा और समर्पण का अनुसरण करती है जिस आदर सत्कार के साथ दैवीय प्रतिमाओं की स्थापना की जाती है उसी भावना के साथ विसर्जन दिवस तक उनकी पूजार्चना और विदाई होनी चाहिये. पुराने जमाने में भी गाजे-बाजे के साथ विसर्जन किया जाता था लेकिन तब अश£ीलता नहीं होती थी और श्रद्धा भावना का विच्छेदन नहीं किया जाता था. पं.झा का मानना है कि दैवीय आस्था के साथ खिलवाड़ के कारण ही लोगों की बुद्धि भ्रष्ट हो रही है और अपराधों में निरन्तर बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है. श्रीगणेश के साथ ही अब लोग मां शारदा और दुर्गा के विसर्जन को भी मजाक बना रहे हैं, इस पर रोक लगनी चाहिये. विसर्जन के दौरान ध्वनि प्रदूषण व तेजी से बढ़ रही नशे की प्रवृत्ति को लेकर चिकित्सकों का कहना है कि डीजे के तेज साऊंड से चिड़चिड़ापन एवं आक्रामकता के साथ उच्च रक्तचाप, तनाव, कर्णक्ष्वेद के साथ ही हृदय एवं मस्तिष्क संबंधी रोग वेसोकन्सट्रिक्शन, कोरोनरी आर्टरी अथवा हार्ट अटैक या ब्रेन हैमरेज भी हो सकता है. सन 1970 के दशक तक विभिन्न प्रगतिशील देशों में ध्वनि प्रदूषण को तुलनात्मक दृष्टिकोण से एक उपद्रव के रूप में देखा गया, अमेरिका में शोर शराबा पूर्णत: प्रतिबंधित है वहीं कनाडा एवं यूरोपीय संघ के कुछ ऐसे देश है जो कड़े कानून के जरिये ध्वनि प्रदूषण के विरूद्ध नागरिकों की रक्षा करते है. 140 डीबी एसपीएल पर मानव कर्ण एवं हृदय अथवा मस्तिष्क को गंभीर नुकसान हो सकता है जबकि डीजे की कुल साऊंड फिंकवेंसी इससे कहीं ज्यादा होती है. एक स्वस्थ मानव 40 डीबी एसपीएल की ध्वनि को आसानी से ग्रहण कर सकता है.

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