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धर्म

खैरागढ़ में नौ दिनों तक होती है मां दुर्गा के आदिस्वरूप शाकम्भरी माता की पूजा

सत्यमेव न्यूज़ खैरागढ़. क्वांर नवरात्र में जगह-जगह मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। इसी तारतम्य में खैरागढ़ में पूरे नौ दिनों तक मां दुर्गा के सबसे प्राचीन व आदिस्वरूप मानी गई माता शाकम्भरी की विधि-विधान से प्रतिमा विराजित कर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। राजनांदगांव-कवर्धा स्टेट हाईवे के पटेल पारा में विगत कई वर्षों से मां शाकम्भरी की प्रतिमा विराजित की जाती है जहां पूरे विधि-विधान से मां शाकम्भरी की विशेष पूजा-अर्चना होती है। संभवतः प्रदेशभर में खैरागढ़ में ही मां शाकम्भरी की विधि-विधान से स्थापना कर पूजा-अर्चना की जाती है जिसे विशेषतौर पर यहां सब्जियों की खेती करने वाले पटेल मरार समुदाय के लोग परांपरानुसार निर्वहन करते आ रहे हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मां शाकम्भरी को अन्न-धन व सब्जियों की देवी माना गया है। इसलिये पूरे नौ दिनों तक यहां उन्हें सब्जियों का ही भोग लगाया जाता है। खासतौर पर 5 प्रकार की विशेष सब्जियों को आहार रूप में काटकर माता का हवन भी होता है। मां शाकम्भरी सेवा समिति के संयोजन में प्रतिदिन पूरी शुद्धता के साथ यहां मां शाकम्भरी का पूजन होता है। समति के महेश पटेल व मनीष बताते हैं कि हरी साग-सब्जियों से माता की प्रतिमा बनाकर उनका विशेष श्रृंगार भी किया जाता है। पौराणिक कथाओं व देवी पुराण तथा शिव पुराण के अनुसार हिरण्याक्ष के वंश में एक महादैत्य रूरू हुये जिनका एक पुत्र हुआ दुर्गम जो बाद में अपनी कालजयी शक्तियों के कारण दुर्गमासुर के नाम से विख्यात हुआ और ब्रह्मा की कठोर तपस्या कर उसने चारों वेदों को अपने अधीन कर लिया। वेदों के न रहने से समस्त क्रियाएं लुप्त हो गई और ब्राह्मणों ने अपना धर्म त्याग कर दिया। उस युग में चारों ओर हाहाकार मच गया तथा देवताओं की शक्ति भी क्षीण होने लगी। इसी दौरान भयानक अकाल पड़ा, प्राणियों की भूख-प्यास से मौत होने लगी। वेदों की प्राप्ति के लिये दुर्गमासुर के साथ देवताओं का युद्ध हुआ लेकिन देवगण विजयी नहीं हो पाये। विवश होकर सभी देव मां जगदम्बा की शरण में गये और तप करने लगे। देवों की स्तुति से मां पार्वती आयोनिजा स्वरूप जिसकी कोई माता-पिता न हो रूप मंें प्रकट हुई और सृष्टि की दुर्दशा देख उनका हृदय करूणा से भर गया और आखों से अश्रु धारा बहने लगी। इस दौरान माता के शरीर पर सौ नेत्र प्रकट हुये जिससे संसार में वर्षा हुई और सभी नदी, तालाब, जलाशय लबालब हो गये। इस दौरान देवताओं ने माता की शताक्षी देवी नाम से आराधना की। इसी दौरान माता ने एक दिव्य सौम्य स्वरूप धारण किया, इस स्वरूप में कमल आसन पर विराजित चतुर्भुज माता ने अपने हाथों में कमल, बाण, शाकफल और धनुष धारण किया तथा अपनी काया से अनेक शाक प्रकट किये जिसे खाकर संसार मंें प्रत्येक प्राणियों की भूख मिट पायी। इस घटना के बाद दुर्गमासुर से मां शाकम्भरी की भीषण लड़ाई हुई और अंततः दुर्गमासुर का वध हुआ। इस घटना के बाद संसार के समस्त जीवों की भूख-तृष्णा शांत करने और असुरों का संहार करने के कारण मां शाकम्भरी आदिशक्ति के रूप में पूजित हुई और तब से लेकर आज तक श्रद्धालु उनकी विशेष पूजा-अर्चना करते हैं।

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