सत्यमेव न्यूज़ (नेशनल डेस्क). सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि शिक्षा (Education) मुनाफा कमाने का धंधा (Business) नहीं है। ऐसे में ट्यूशन फीस (Tution Fees) को हमेशा सस्ता होगा चाहिए. ऐसा इसलिए, क्योंकि यह देखा गया है कि आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) सरकार का शुल्क (फीस) 24 लाख रुपए प्रति साल बढ़ाने का फैसला है, जो निर्धारित फीस से सात गुना ज्यादा है. यह बिल्कुल भी ठीक नहीं है.
सोमवार (सात नवंबर, 2022) को ये टिप्पणियां जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ने कीं. दरअसल, इस पीठ ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट (Andhra Pradesh High Court) के आदेश को बरकरार रखते हुए यह बात कही, जिसमें एमबीबीएस (MBBS) स्टूडेंट्स की ओर से दी जाने वाली ट्यूशन फीस (शिक्षण शुल्क) को बढ़ाने के राज्य सरकार के फैसले को खारिज कर दिया गया था.
राज्य सरकार ने छह सितंबर, 2017 को अपने आदेश में एमबीबीएस छात्र-छात्राओं की ओर से चुकाई जाने वाली फीस में इजाफा कर दिया था. कोर्ट ने इस बाबत कहा, “हमारी राय है कि हाईकोर्ट ने छह सितंबर, 2017 के सरकारी आदेश को रद्द करने और ब्लॉक वर्षों (Block Years) 2017-2020 के लिए फीस बढ़ाने में कोई गलती नहीं की है”.
कोर्ट के मुताबिक, फीस बढ़ाकर 24 लाख रुपए प्रति साल यानी पहले से तय शुल्क से सात गुना अधिक करना बिल्कुल भी सही नहीं था. एजुकेशन लाभ कमाने का कारोबार नहीं है। ट्यूशन फीस हमेशा सस्ती रहनी चाहिए.
कोर्ट ने देखा कि फीस का निर्धारण/ शुल्क की समीक्षा निर्धारण नियमों के मापदंडों के अंदर रहेगा और नियम, 2006 के रूल चार में उल्लिखित कारकों पर सीधा जुड़ाव होगा, जिसमें पेशेवर संस्थान का स्थान; पेशेवर पाठ्यक्रम की प्रकृति; उपलब्ध बुनियादी ढांचे की लागत; प्रशासन और रखरखाव पर खर्च; पेशेवर संस्थान की वृद्धि और विकास के लिए जरूरी उचित अधिशेष; आरक्षित वर्ग और समाज के बाकी आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों से संबंधित छात्रों के संबंध में शुल्क की छूट (अगर कोई हो) आदि है. कोर्ट ने कहा कि ट्यूशन फीस का निर्धारण/ समीक्षा करते समय इन कारकों पर प्रवेश और शुल्क नियामक समिति (AFRC) की ओर से विचार किया जाना जरूरी है.