नदियों से होती रही है खैरागढ़ की पहचान, आज अस्तित्व के संकट से जूझ रही हैं आमनेर, पिपरिया और मुस्का नदी

सत्यमेव न्यूज खैरागढ़. खैरागढ़ की पहचान और जीवन का आधार रही आमनेर, पिपरिया और मुस्का नदियां आज अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष कर रही हैं। सैकड़ों वर्षों से खैरागढ़ अंचल की प्यास बुझाने वाली इन जीवनदायिनी नदियों की त्रिवेणी जलधारा अब गंदगी, सूखे और प्रशासनिक उपेक्षा की शिकार हो चुकी है।

नगर की इन नदियों के किनारे अतिक्रमणकारियों ने भारी कब्जा जमा लिया है। कहीं आलीशान आवासीय भवन बन गए हैं, कहीं व्यावसायिक परिसरों का संचालन हो रहा है तो कहीं ईंट भट्टों की अवैध कमाई धुआं उगल रही हैं। हैरानी की बात यह है कि शिकायतों के बावजूद प्रशासनिक जांच और कार्यवाही का नामोनिशान नहीं दिखता, कारण नदियों के किनारे रसूखदारों का कब्जा है।

खैरागढ़ की जिन नदियों को कभी लोग माता तुल्य मानकर पूजा करते थे, आज वही नदियां गंदगी और कचरे का केंद्र बनती जा रही हैं। श्रद्धा और आस्था की प्रतीक रही नदियों में अब लोग खुलेआम प्लास्टिक, कचरा और गंदे पानी का प्रवाह कर रहे हैं। पर्यावरणविदों का कहना है कि यदि यही स्थिति रही तो नदियों का अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा। जागरूकता और सख्त नियमों की जरूरत है, ताकि फिर से नदियों की पवित्रता और जीवनदायिनी भूमिका को बचाया जा सके।

खैरागढ़ में आषाढ़ माह के 19 दिन बीत चुके हैं, जून समाप्ति की ओर है लेकिन नदियों में प्राकृतिक जल प्रवाह नहीं दिखाई देता। आमनेर और मुस्का जैसी नदियों में केवल नालियों का गंदा पानी बह रहा है जिससे बदबू और सड़ांध फैली हुई है यही पानी अब लोगों के निस्तार के लिए उपयोग में लाया जा रहा है जिससे स्वास्थ्य संकट भी मंडराने लगा है। दाऊचौरा, पिपरिया, गंजीपारा, लालपुर, मोगरा, बरेठपारा, ठाकुर पारा, धरमपुरा और किल्लापारा जैसे वार्डों में निस्तार को लेकर स्थिति और भी गंभीर है।

नदियों में पानी नहीं होने के कारण मवेशी प्यासे भटक रहे हैं। खासकर दूध देने वाले पशुओं के लिए पानी की कमी चुनौती बन गई है। पशुपालकों को उम्मीद है कि उनका वोट लेने वाले जनप्रतिनिधि कभी तो व्यस्तता से समय निकालकर नदियों के संरक्षण के लिए कोई कार्य योजना बनाएंगे। बहरहाल पक्ष हो या विपक्ष राजनीतिक दलों के नेता नदियों को राजनीति का मुद्दा तो बनाते आए हैं लेकिन नदियों की प्रवाह रेखा को नहीं बना पाए हैं।

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