देश-विदेश में प्रसिद्ध है खैरागढ़ के प्रिया होटल का रसगुल्ला

सत्यमेव न्यूज़ खैरागढ़. संगीत नगरी खैरागढ़ यूं तो संगीत, कला व ललित कला की तीर्थ स्थली के रूप में इन्दिरा कला संगीत विश्वविद्यालय की मौजूदगी के कारण समूचे विश्व में विख्यात है लेकिन हर स्थान की अपनी एक विशेषता भी होती है। आमतौर पर जब भी हम कहीं यात्रा में जाते हैं तो वहां के प्रसिद्ध मिष्ठान, मेवे या अन्य शिल्प सामग्रियां उस स्थान की गरिमा और मौजूदगी का प्रतीक बन जाती है। इसी तरह गोल बाजार में बीते 74 वर्ष से संचालित प्रिया होटल का रसगुल्ला भी संगीत नगरी की मिठास का एक प्रतीक बना हुआ है। खास बात यह है कि बीते 74 वर्ष से यह होटल पारंपरिक रूप से ही संचालित हो रहा है और आज भी मुनाफे की परवाह किये बगैर होटल के संचालकगण यहां बनने वाले नाश्ते व पकवान ग्राहकों को परोस रहे हैं। प्रिया होटल के संचालक परमानंद सिंह राजपूत बताते हैं कि उनके पिता स्व.मनबहल सिंह ने 1950 में दोस्तों की खातिर होटल की स्थापना की थी। स्व.मनबहल होम्योपैथिक के चिकित्सक थे और घर की जिम्मेदारियों व कृषि व्यवसाय के लिये डोंगरगढ़ पाथरी से वापस खैरागढ़ लौटे थे। यह वह दौर था जब राजपरिवार व क्षत्रपो की तूती बोलती थी। स्व.मनबहल के चार परम मित्र थे जिनमें स्व.इन्द्रदमन सिंह, स्व.बाबू नारायण सिंह, स्व.कृष्णकुमार सिंह व स्व.लाल चंद्रादित्य सिंह विक्टर की दोस्ती पूरे खैरागढ़ एहतराब में मशहूर थी। ये पांचो मित्र गोल बाजार में स्व.मनबहल के एक टपरी में बैठा करते थे और यहीं से उन्होंने होटल व्यवसाय की शुरूआत की। परमानंद बताते हैं कि होटल में पहले तो चाय, नाश्ता ही बना करता था लेकिन सन् 1975 के आसपास डोंगरगढ़ के एक मंजे हुये हलवाई मुरली महाराज उनके होटल में काम करने आये। घर में गाय, भैंस के कारण दूध की उपलब्धता अधिक थी। मुरली महाराज ने सुझाव दिया कि नाश्ते के साथ क्यों न दूध की खपत के लिये रसगुल्ला और चमचम बनाया जाये। फिर क्या था, मुरली महाराज के हाथों से बनने वाला रसगुल्ला देखते ही देखते पूरे खैरागढ़ में प्रसिद्ध हो गया। मुरली महाराज का हुनर होटल में काम करने वाले किल्लापारा निवासी उनके सहयोगी रामजी यादव ने सिखा और रामजी से पारंपरिक रसगुल्ले बनाने का काम अब बहुर सिंग संभाल रहे हैं। तीन पीढ़ियों से यहां रसगुल्ले का स्वाद न केवल खैरागढ़ बल्कि देश, प्रदेश के साथ ही विदेशों में भी प्रसिद्ध है। परमानंद बताते हैं कि विश्वविद्यालय में आने वाले प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर देश-विदेश के नामचीन कलाकार जब यहां पहुंचते थे तो उनके सत्कार के रूप में प्रिया होटल का रसगुल्ला ही परोसा जाता था। रसगुल्ले का स्वाद ऐसा कि जो भी खाता वह उसका मुरीद हो जाता। फिर क्या था, धीरे-धीरे प्रिया होटल के रसगुल्ले की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैलने लगी। आज भी लोग अपने घरों में होने वाले शुभ कार्य या किसी समारोह के आयोजन में प्रिया होटल का रसगुल्ला ही मेहमानों को परोसते हैं। वर्तमान में तीसरी पीढ़ी के संचालक के रूप में होटल की बागडोर मुकेश सिंह राजपूत (कर्रू) संभालते हैं और आज भी प्रतिदिन लगभग 30 किलो से अधिक का रसगुल्ला लोगों की खास फरमाईश पर यहां बनाया जाता है।

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