घरेलू गैस सिलेंडर पर पक रहे मोमोज! खैरागढ़ में यूपी-बिहार के स्टॉलों से नियमों की उड़ रही धज्जियाँ

सत्यमेव न्यूज के लिये मनोहर सेन . जिला मुख्यालय खैरागढ़ के बाजारों में हर मोड़ पर मोमोज और पकोड़े की दुकानें दिखाई देना अब आम बात हो गई है लेकिन चिंता की बात यह है कि इन दुकानों में घरेलू रसोई गैस सिलेंडरों का धड़ल्ले से व्यावसायिक उपयोग किया जा रहा है वह भी पूरी भीड़-भाड़ के बीच सार्वजनिक स्थानों पर और प्रशासन की नज़रों के सामने। इन दुकानों का संचालन अधिकतर यूपी और बिहार से आए अंतर्राज्यीय व्यापारी कर रहे हैं। गोल बाजार, इतवारी बाजार, दाऊचौरा, जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय व बख्शी स्कूल के सामने ऐसे तमाम भीड़भाड़ वाले रिहायशी इलाके हैं जहां ये दुकानें लगाई जा रही हैं और नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।

सरकार की स्पष्ट गाइडलाइन है कि घरेलू रसोई गैस सिलेंडर सिर्फ घरेलू उपयोग के लिए होते हैं। व्यावसायिक उपयोग के लिए अलग से कमर्शियल सिलेंडर अनिवार्य है लेकिन खैरागढ़ के लगभग हर मोमोज सेंटर पर घरेलू सिलेंडर का ही इस्तेमाल हो रहा है जो कि न सिर्फ गैरकानूनी है बल्कि जनता की सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा भी है। इसके बावजूद अब तक किसी भी प्रशासनिक कार्रवाई की कोई खबर नहीं है जिससे यह सवाल उठता है क्या प्रशासन जानबूझकर आंखें मूंदे हुए है?

इन स्टॉलों पर आग और गैस दोनों का खुले में इस्तेमाल हो रहा है जबकि कोई भी सुरक्षा उपकरण, अग्निशमन व्यवस्था या प्रशिक्षित स्टाफ मौजूद नहीं है। भीड़-भाड़ वाले इलाकों में एक छोटी सी चूक किसी बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकती है। स्कूल, दफ्तर, बस स्टैंड व टेंपो स्टैंड जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में खुलेआम सिलेंडर जलते देखे जा सकते हैं।

स्थानीय व्यापारियों का आरोप है कि ये बाहरी दुकानदार स्थानीय रोजगार पर भी कब्जा कर रहे हैं और अवैध रूप से दुकानें लगाकर न सिर्फ नियम तोड़ रहे हैं बल्कि स्थानीय दुकानदारों के धंधे को भी नुकसान पहुँचा रहे हैं।

नागरिकों की मांग है कि इन अवैध मोमोज स्टॉल्स की जांच की जाए। घरेलू सिलेंडरों के व्यावसायिक उपयोग पर तुरंत रोक लगे। उपयुक्त लाइसेंस और अग्निसुरक्षा प्रमाणपत्र के बिना स्टॉल संचालन पर पाबंदी लगे। स्थानीय लोगों को प्राथमिकता दी जाए बाहरी कब्जाधारियों पर सख्ती हो।

जब हर गली और बाजार में नियमों का ऐसा खुला उल्लंघन हो रहा हो तो प्रशासन की चुप्पी अपने आप में एक सवाल बन जाती है। क्या वाकई कोई बड़ी दुर्घटना होने के बाद ही प्रशासन जागेगा?

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