छत्तीसगढ़ प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने किया आयोजन
सत्यमेव न्यूज़/खैरागढ़. छत्तीसगढ़ प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन के तत्वाधान में दिनांक 27 से 30 दिसम्बर तक युवा रचना शिविर का राज्य स्तरीय आयोजन पाठक मंच खैरागढ़ के आतिथेय में बाफना भवन हुआ. शिविर में 27 युवा रचना शिविरार्थियों के साथ मुख्य अतिथि डॉ.सियाराम शर्मा और श्रोत व्यक्ति के रूप में रवि श्रीवास्तव, डॉ.जीवन यदु, डॉ.सियाराम शर्मा और डॉ.राकेश तिवारी, विनोद साव, पी.सी.रथ, संतोष झांझी, माझी अनंत, संकल्प पहटिया और देवमाइत मिंज ने अपनी गरिमामय उपस्थिति दी. रचना शिविर की शुरुआत में छत्तीसगढ़ हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष रवि श्रीवास्तव ने कहा कि मध्यप्रदेश में और अब छत्तीसगढ़ में भी हिन्दी साहित्य सम्मेलन के रचना शिविर की परम्परा रही है. आज खैरागढ़ उसका एक पड़ाव है. यहाॅं पहुॅंचे सभी शिविरार्थी चार दिन बात अपने रचनाकर्म को विकसित पाकर रचनाधर्म को पहचान सकेंगे. डॉ.राकेश तिवारी ने स्वागत भाषण में कहा कि एक उम्र में सभी रचनाकार होते हैं. उनके रचनाकर्म दिशा मिल सके यही प्रयास सदा हिन्दी साहित्य सम्मेलन का रहा है यहाॅं वरिष्ठ रचनाकारों का मार्गदर्शन मिलता रहेगा और भविष्य में उनके सान्निध्य का लाभ ले सकते हैं. डॉ.जीवन यदु ने कहा कि आज जो रचना शिविर में भाग ले रहे हैं अगर चार लोग भी रचनाकर्म-रचनाधर्म पहचान पाये तो यह रचना शिविर की उपलब्धि होगी. मुख्य अतिथि डॉ.सियाराम शर्मा ने कहा कि रचना शिविर का ध्येय आपके अन्दर के रचनाधर्मिता को सामने लाना है जो आपके अन्दर ही है.इस सत्र का संचालन डॉ.प्रशांत झा ने करते हुए कहा कि आज से ये चार दिन खैरागढ़ के इतिहास में अविस्मरणीय रहेगा और जो आतिथेय पाठक खैरागढ़ को मिला है वह हम सब के लिए सौभाग्य की बात है. दूसरे सत्र में प्रतिभागियों का स्रोत व्यक्तियों एवं वरिष्ठ साहित्यकारों के मार्गदर्शन में क्षेत्र भ्रमण हुआ. शिवरार्थियों का मार्गदर्शन डॉ.सियाराम शर्मा डॉ.जीवन यदु, डॉ.प्रशांत झा, डॉ.राकेश तिवारी, विनयशरण सिंह, संकल्प पहटिया, यशपाल जंघेल ने किया. भ्रमण के पश्चात शिवरार्थियों को अपने अवलोकन किए गए विषयों पर लिखने कहा गया है.
देश के प्रसिद्ध कवियों की रचनाओं का हुआ पाठ
दूसरे दिन सत्र की शुरुआत देश के प्रसिद्ध कवियों के कविता पाठ और उस पर टिप्पणी के साथ हुई. अज्ञेय की कविता ‘यह दीप अकेला’ का पाठ पीलेश्वरी साहू ने, राजेश जोशी की कविता ‘यह धर्म के विरुद्ध है’ का पाठ रवि झोंका ने, केदारनाथ सिंह की कविता ‘टमाटर बेचने वाली बुढ़िया’ का पाठ यशपाल जंघेल ने, ललित सुरजन की कविता ‘सेतुबंध’ का पाठ संकल्प पहटिया ने किया. इन कविताओं पर टिप्पणी करते हुए मुख्य स्रोत व्यक्ति डॉ.सियाराम शर्मा ने कहा कि अज्ञेय की यह कविता व्यक्तिवादी कविता है, जिस पर छायावाद की छाप है. कविता के उस दौर में व्यक्तिवादी कविता को महत्वपूर्ण माना जाता था लेकिन समाज से जुड़ने के लिए आपको समाज के बीच आना ही होगा. जैसा कि मुक्तिबोध ने किया. ठीक इसके आगे के दौर में राजेश जोशी की कविता है, जो समाज से जुड़ती है. धर्म किस तरह मनुष्य के विरुद्ध हो रहा है इस तरफ वह हमें सचेत करती है. केदारनाथ सिंह की कविता टमाटर बेचने वाली बुढ़िया भूमंडलीकरण के दौर में उत्पादन का उपभोक्ता और उत्पादक से संबंध को विस्तारित करती कविता है. उपभोक्ता केवल खरीदने बेचने की वस्तु समझता है और उत्पादक उसमें जिंदगी भी खोजता है. ‘पिता की घड़ी’ सेतुबंध कविता विश्व में चल रही युद्धों की ओर इंगित करती है कि युद्ध से किसी का भला नहीं होता और युद्ध में केवल नायकों का नाम रह जाता है. कार्यक्रम का संचालन और प्रारंभिक टिप्पणी विनयशरण सिंह ने की. उसने कहा कि यहां पढ़े जाने वाली कविता के बदलाव के इतिहास को हम यहां देख सकते हैं. इसी दिन की द्वितीय सत्र में राज्य के वरिष्ठ कवियों की कविताओं का पाठ किया गया. रजत रजत कृष्ण की कविता ‘अंबानी के सपनों में पल रहे इस देश में’ का पाठ देवचरण धुरी ने, जीवन यदु की कविता ‘दरवाजे पर खड़ा महाजन’ का पाठ संकल्प पहटिया ने, उर्मिला शुक्ला की कविता ‘देवारिन के घर’ का पाठ ज्ञान दास कुर्रे ने, समयलाल विवेक की कविता ‘शोकातुर लोग’ का पाठ भागवत साहू ने, विजय गुप्त की कविता ‘दीप जलाना’ का पाठ राहुल साहू ने, भगत सिंह सोनी की कविता ‘वृक्ष काटना’ का पाठ सागर इंडिया ने, संतोष झांझी की कविता ‘मैं सुकून से हूं’ का पाठ डिकेश्वर साहू ने किया. इन कविताओं पर प्रारंभिक टिप्पणी डॉ.संतोष झांझी ने कहा कि ये कविताएं अपनी समय और समाज का आईना है. इन कविताओं पर समग्र टिप्पणी करते हुए स्रोत व्यक्ति डॉ.जीवन यदु ने कहा कि कविताएं हमारे समय से जोड़ती है और कविताओं के पाठ से एक बात स्पष्ट है कि कविता में लय कितना महत्वपूर्ण है. कविताएं छंदों में नहीं है, इसका मतलब यह नहीं कि वह छंद विहीन है, वह मुक्त छंद में है. कोई कविता छंद के बिना लिखी ही नहीं जाती है.
प्रतिभागियों को कराया गया क्षेत्र भ्रमण
एफआईआर लिखवाई गई रचनाएं तृतीय सत्र में प्रतिभागियों द्वारा पहले दिन किए गये क्षेत्र भ्रमण के आधार पर लिखी रचनाओं पर चर्चा हुई. पीलेश्वरी साहू, पुष्पांजलि खरे, भागवत साहू, ज्ञान दास कुर्रे, देवचरण धुरी, सागर इंडिया, सात्विक श्रीवास्तव, राहुल साहू, डिकेश्वर साहू, युसूफ खान, महेश कुमार मेश्राम, हिरेंद्र साहू, समीर चंद्र साहू, गिरवर साहू ने काव्य पाठ किया. इन पर टिप्पणी करते हुए सियाराम शर्मा ने कहां कि रचना की भी एक दिन में लिखी नहीं जाती, भले शुरुआत हो सकती है. देखना और अवलोकन करते हुये के फर्क को जानने के लिए रचना शिविर में भ्रमण का एक सत्र होता है. देखना और अवलोकन करते हुए आप लोगों ने अपनी स्मृतियों को सहेजने का बढ़िया काम किया है. भ्रमण के दौरान छोट-छोटे दृश्यों को कविताओं का बिम्ब बनाया है. यह एक अच्छी शुरुआत है. कुछ शिविरार्थियों ने लगभग रचना लिख दी है.
डॉ.पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की कहानी झलमला हिंदी साहित्य की पहली मौलिक कहानी
द्वितीय दिवस का तृतीय सत्र कहानी पाठ पर केंद्रित रहा. कहानी पाठ के पूर्व प्रारंभिक टिप्पणी करते हुए डॉ. यदु ने कहा कि हिंदी की प्रथम कहानी को लेकर विवाद था कि माधवराव सप्रे की ‘एक टोकरी पर मिट्टी’ है या पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की कहानी झलमला को माने. बाद के शोध में यह पता चला कि बख्शी की कहानी झलमला ही हिंदी की पहली कहानी है. एक टोकरी भर मिट्टी एक लोक कहानी पर आधारित है जबकि झलमला मौलिक कहानी है. आज जो कहानी आप लोग पढ़ेंगे वह कहानी के विकास क्रम को बताती है और यह आपके लिए एक महत्वपूर्ण पड़ाव साबित होगा. कहानी पाठ में प्रेमचंद की कहानी ‘मृतक भोज’ का पाठ सागर इंडिया ने, जैनेंद्र की कहानी ‘अपना अपना भाग्य’ का पाठ साहू ने, राजेंद्र यादव की कहानी ‘जहाँ लक्ष्मी कैद है’ कहानी का पाठ भागवत साहू ने, रमाकांत श्रीवास्तव की कहानी ‘बेटे को क्या बतलाओगे’ का पाठ सात्विक श्रीवास्तव ने, शेखर जोशी की कहानी ‘कोसी का घटवार’ का पाठ पुष्पांजलि खरे ने किया. इन कहानियों पर आलोचनीय टिप्पणी करते हुए स्रोत वक्ता डॉ.संतोष झांझी ने कहा कि अलग-अलग कालखंड में लिखी यह कहानी जीवन और समाज से स्वतः उपज हुई है. समाज की सच्चाई को उघाड़ती हुई ये कहानियां जीवन को आलोकित करती हैं. इस सत्र का संचालन करते हुए संकल्प पहटिया ने कहा कि कहानी मनुष्य से आदि व्यवस्था से जुड़ी हुई है भले वह गाथा के रूप रूप थी. आज जो आप कहानी पढ़ और सुन रहे हैं, वह कहानी गद्य रूप में है. आज बख्शी जी की पुण्यतिथि है और हम उनको याद कर रहे हैं जिसे बख्शी जी को बख्शी जी बनाया यानी कि उसके साहित्य को याद कर रहे है. अगले सत्र की शुरुआत भ्रमण से हुई. तत्पश्चात रात्रि में वरिष्ठ कवियों का कविता पाठ रखा गया. इस कविता पाठ में डॉ.यदु, श्रीमती झांझी, श्री मांझी, श्री पहटिया, श्री जंघेल, डॉ.झा, रवि झोंका, बलराम यादव ने शिरकत की. बलराम यादव ने कवि नहीं हूॅं , रवि झोंका ने सपूत, यशपाल जंघेल ने बच जाता है, संकल्प पहटिया ने कविता रोटी है और जंगल में मोर नाचते से पहले, मांझी अनंत ने खंडहर और नाम कविताओं का पाठ किया और फिर श्रीमती झांझी ने ग़ज़ल का सस्वर पाठ किया और कविता पाठ का संचालन करते हुए डॉ.जीवन यदु ने दगा बाज रे का लोकधुन में का सस्वर पाठ किया.
समापन से पहले उपन्यासों पर हुई चर्चा
शिविर के तीसरे दिन का प्रथम सत्र उपन्यास पर केंद्रित रहा. इस सत्र का संचालन और प्रारंभिक टिप्पणी करते हुए जीवन यदु ने कहा कि पूरे जीवन को उपन्यास में चित्रित किया जाता है. उपन्यास में अनेक कहानियों का गुंफन होता है. नायक और अन्य पात्रों के लिए उपन्यास में आवश्यक वातावरण बनाना होता है. श्रीमती झाँझी ने अपनी उपन्यास ‘सरहदे आज भी’ के अंश का पाठ किया. मांझी अनंत ने कहा कि उपन्यास आधुनिक युग का महाकाव्य है. पहले पूरी जीवन की घटना को पद्य के रूप में महाकाव्य लिखा जाता था लेकिन इसे आजकल गद्य में लिखा जाता है जिसे उपन्यास कहा जाता है.@# यात्रा वृतांत संस्मरण लेखन की ही शाखाअगले सत्र में यात्रा वृतांत पर चर्चा हुई जिसमें स्रोत वक्ता के रूप में विनोद साव उपस्थित रहें. सत्र का संचालन डॉ.साधना अग्रवाल ने किया. विनोद साव ने कहा की हिंदी यात्रा वृतांत की शुरुआत राहुल सांकृत्यायन ने की और विपुल साहित्य लिखा. सबसे बड़ी बात यह है कि यात्रा वृतांत की चर्चा खैरागढ़ में पहली बार हो रही जो बड़ी बात है. यह संस्मरण से निकली हुई एक शाखा है. उसके बाद अज्ञेय संस्मरण लिखने वाले साहित्यकार थे. फिर उन्होंने अपने यात्रा वृतांत ‘थाईलैंड की यात्रा’ के कुछ अंश सुनाये. पर्यटक और सैलानी में जो अंतर होता है वही अंतर पर्यटक और यात्रा वृतांत रचनाकार में होता है. यात्रा वृतांत में वहां का जनजीवन, रहन-सहन और वहां की सामाजिक आर्थिक स्थिति भी शामिल होती है जबकि पर्यटन में होटल और रुकने की जगह की एक सूचना भर होती है. संचालन करते हुये डॉ.साधना ने कहा कि प्रारंभिक वक्ता के रूप में यात्राएं पहले भी कई जाती थी और उस लिखा भी जाता था. आधुनिक काल यात्रावृत्तांत की साहित्यिक भूमिका की नींव पड़ी. यात्रावृत्तांत पर इस तरह और ऐतिहासिक विमर्श के हम गवाह बने.
रंगमंच और व्यंग्य विधा पर हुई सार्थक चर्चा
अगले सत्र में रंगमंच पर चर्चा हुई जिसमें स्रोत वक्ता के रूप में श्रीमती झांझी उपस्थिति रहीं. अपनी एकांकी ‘रिहर्सल’ का पाठ करते हुए उन्होंने कहा कि रंगमंच में पात्रों और संवादों को पहले सीधे-सीधे कहा जाता था लेकिन आजकल कई सारे इलेक्ट्रॉनिक इफेक्ट हो गए हैं जिससे रंगमंच में किसी नाट्य रचना को प्रस्तुत करने में बहुत सहूलियत होती है. सत्र का संचालन करते डॉ.देवमाइत मिंज ने कहा कि रंगमंच का लोक और शास्त्र दोनों ही आधार हमारे सामने है. आधुनिक काल में खासकर भारतेंदु युग में एक फिर साहित्य के आकाश स्थान पाया. अगला सत्र व्यंग्य विधा पर केंद्रित रहा. स्रोत वक्ता विनोद साव थे. उन्होंने बताया हिंदी साहित्य में व्यंग्य की शुरुआत कबीर दास से हुई और आधुनिक काल में व्यंग्य की शुरुआत भारतेंदु से हुई. आज के समय में हरिशंकर परसाई सबसे महत्वपूर्ण व्यंग्यकार हैं जिन्होंने व्यंग्य को एक विधा के रूप में स्थापित किया किया. इसके बाद श्रीलाल शुक्ल, शरद जोशी और हमारे आसपास के लतीफ घोंघी, प्रभाकर चौबे जैसे व्यंग्यकार है जिनसे हमें लिखने की प्रेरणा मिलती रही. इस सत्र का संचालन नत्थू तोड़े ने किया
आज के दौर की पत्रकारिता पर हुआ विमर्श
अगले सत्र में पत्रकारिता पर विमर्श रखा गया, जिसमें स्रोत वक्ता के रूप में पी.सी. रथ और मांझी अनंत उपस्थित रहें. प्रारंभिक टिप्पणी करते हुए राजेंद्र चांडक ने मायाराम सुरजन से लेकर ललित सुरजन तक पत्रकारिता पर कहा कि मायाराम सुरजन ने बहुत ही विषम परिस्थितियों में पत्रकारिता की शुरुआत की. पहले वे नवभारत से जुड़े रहे, बाद में नई दुनिया से जुड़े. जिसकी शुरुआत उन्होंने रायपुर की तत्पश्चात देशबंधु पत्र का संपादन किया. देशबंधु का नाम चितरंजन दास के नाम पर रखा गया. ललित सुरजन के सामने विषम परिस्थितियों नहीं थी. पी.सी. रथ ने कहा कि पहले होता यह था कि पत्रकार सत्य को समाज के सामने लाते थे अब समाज पत्रकारों के सच को सामने ला रहा है. आज बहुत से पत्रकार अपने अधिकारों से अनभिज्ञ हैं. इसीलिए आज पत्रकारिता का स्वरूप कुछ विकृत हो गया है. देशबन्धु और खासकर ललित सुरजन ने पत्रकारिता में प्रतिबद्धता पाठ का सिखाया. आज कई ऐसे पत्रकार हैं जो उनकी देन है और देश-दुनिया में नाम रोशन कर रहे हैं. पहले सत्र में शिविरार्थियों द्वारा भ्रमण को आधार बनाकर लिखी गई का कविता पाठ किया गया. पीलेश्वरी ने ओ री नदी, हरेन्द्र साहू ने मछली की आंख, पुष्पेन्द्र भानु ने खैरागढ़, विकास वर्मा ने बाफना भवन से चले, गिरवर साहू ने पान ठेला, जितेन्द्र कुमार ने पिपरिया, केसरी साहू ने नदी की विवशता, समीर चन्द्र साहू ने गोदना वाली, युसुफ खान ने खैरागढ़ आना, दिलेश्वर साहू ने देहरी का दीया, सागर सोनी ने विकास और कवि, पुष्पांजली खरे ने कपास की खेती, भागवत साहू ने सम्पन्नता के बावजूद, स्वास्तिक श्रीवास्तव ने चलते बुलडोजर कविता का पाठ किया. तत्पश्चात श्री मांझी ने कहा कि ज्ञान के विस्तार के साथ अनुभव का विस्तार भी अब दिख रहा है. कुछ शिविरार्थियों की रचना में ऐसा लगता है कि शीर्षक के बाद रचना को लिखा है फिर भी शीर्षक को पकड़ने का बढ़िया प्रयास है. संकल्प पहटिया ने कहा कि आपकी मेहनत दिख रही है. कविता कभी भी एक दिन में लिखी नहीं जाती लेकिन कविता लय और शिल्प को पकड़ने की आप लोगों ने बेहतर कोशिश की है और आपको रीतिकालीन मानसिकता से उबरना होगा. भवानी प्रसाद मिश्र ने शब्द चयन को लेकर कहा है ‘ जिस तरह हम बोलते हैं, उस तरह तू लिख’. शीर्षक चयन और कविता के विस्तार पर कहा कि आप रचना के की प्वाइंट को खोजे और लगातार रचना को पढे-काम करें विस्तार खत्म तो होगा ही और रचना के क्राफ्ट की समझ बढ़ेगी.
अंतिम सत्र में प्रतिभागियों ने किया स्वरचित कविताओं का पाठ
अंतिम सत्र में शिविरार्थियों का पूर्व स्वरचित कविता पाठ का आयोजन किया गया. संकल्प के संचालन और मांझी की अध्यक्षता में कविता पाठ में ज्ञानदास कुर्रे, भागवत साहू, सात्विक श्रीवास्तव, पीलेश्वरी साहू, पुष्पांजली खरे, जितेन्द्र कुमार पुष्पेन्द्र भानु, राहुल साहू, देवचरण धुरी, विकास वर्मा, स्मिता मंडावी युसुफ खान, सागर इंडिया, संतोषी साहू, दिकेश्वर साहू ने मुक्तछंद और छंदबद्ध कविताओं का सस्वर पाठ किया.अंतिम दिन राजेन्द्र चांडक की अध्यक्षता खुली चर्चा में सभी प्रतिभागियों ने भाग लिया और अपने अनुभव को साझा किया और संचालन करते समापन व्यक्तव्य संकल्प पहटिया ने कहा कि जब रायपुर में रचना शिविर की बात हुई तब से लगातार यशपाल जंघेल के साथ रवि श्रीवास्तव जी, राजेन्द्र चांडक जी, राकेश तिवारी जी, उर्मिला शुक्ल जी से लगातार बातचीत होती रही और इधर डॉ.हमारे संयोजक डॉ.प्रशांत झा, डॉ.जीवन यदु, विनयशरण सिंह, टी.ए.खान, गिरधर सिंह राजपूत, अनुराग शाँति तुरे, याहिया निजाजी सहित पाठक मंच के सभी सदस्यों से लगातार बातचीत होती रही है और जो देख रहे हैं वह उसका परिणाम है कि हम सब एक छत के नीचे चार दिन तक एक साथ कंधे से कंधा जोड़कर रहे और दुष्यंत कुमार की ग़ज़ल की पंक्तियों “सिर्फ शायर देखता है कहकहों की असलियत हर किसी के पास तो ऐसी नजर होगी नहीं” से अपनी बात को खत्म करते हुए कहा कि जो कुछ कमी रह गयी हैं उसका हमें मालूम है शायर की तरह फिर मिलेंगे तो किसी रचना की तरह और बेहतर होते हुए. इस आयोजन को मूर्त रूप देने में सभी सदस्यों के छगनलाल सोनी, अजय चन्द्रवंशी, महेश आमदे, समयलाल विवेक, सुखदेव सिंह अहिलेश्वर, अश्विनी कोसरे, महेन्द्र बघेल, राजकुमार चौधरी का महत्वपूर्ण योगदान रहा.