खैरागढ़ के जंगलों में बाघ की दस्तक, अलर्ट मोड में वन विभाग

सत्यमेव न्यूज खैरागढ़. जिले में बाघ के पंजे का निशान देखे गये है। बाघ के दस्तक से वन विभाग सतर्क हो गया है। विभाग ने 17 गांवों में मुनादी करा दी है और ग्रामीणों को सतर्क रहने कहा गया है साथ ही विभाग ने वनांचल क्षेत्रों में पेट्रोलिंग भी बढ़ा दी है।

ज्ञात हो कि हाल ही में खैरागढ़ और डोंगरगढ़ के जंगलों में बाघों के मूवमेंट ने वन विभाग और पर्यावरण विशेषज्ञों का ध्यान आकर्षित किया है। यह क्षेत्र बाघों के लिये एक महत्वपूर्ण कॉरिडोर के रूप में काम करता है और यह इनका प्राकृतिक आवाज भी है जिससे बाघ हर साल यहां से गुजरते हैं। हाल ही में डोंगरगढ़ के तड़ोगा फिर घोटिया और अब गंडई इलाके में बाकी मूवमेंट देखी गई है। इन इलाकों में कान्हा, पेंच राष्ट्रीय उद्यान, भोरमदेव अभ्यारण एवं मैं कल पर्वत श्रेणी के दूसरी ओर मध्य प्रदेश के इलाके में नर्मदा नदी तटीय क्षेत्र से बाघों का लगातार यहां आवागमन होता रहा है। वर्तमान में खैरागढ़ और डोंगरगढ़ का फॉरेस्ट इलाका टाइगर के लिए एक बेहतर फॉरेस्ट कॉरिडोर के रूप में काम करता है। पहले इस क्षेत्र में बाघों की स्थायी उपस्थिति थी अभी भी हर साल यहाँ बाघों की दस्तक ने सभी को रोमांचित कर रखा है।

यह सवाल इन दिनों वन्यजीव प्रेमियों और पर्यावरण विशेषज्ञों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। खैरागढ़ और डोंगरगढ़ का यह इलाका बाघों के लिये एक महत्वपूर्ण कॉरिडोर है जहां से बाघ हर साल गुजरते हैं। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ के जंगलों से होते हुये ये बाघ इस रास्ते से यात्रा करते हैं। पहले इस क्षेत्र में बाघ स्थायी रूप से रहते थे लेकिन आजकल यह सिर्फ उनके यात्रा मार्ग के रूप में ही जाना जाता है। हाल ही में बाघ के पंजे का निशान देखे गये है जिससे यह सवाल उठता है कि क्या यहां फिर से बाघों की स्थायी उपस्थिति हो सकती है। यह इलाका न केवल बाघों के लिये है बल्कि अन्य वन्यजीवों के लिये भी उपयुक्त है। खैरागढ़ और डोंगरगढ़ के घने जंगल, खुले मैदान और पर्याप्त शिकार की मौजूदगी इसे बाघों के लिये आदर्श और प्राकृतिक स्थान बनाती है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इस क्षेत्र का ठीक से अध्ययन किया जाये और जंगलों के पारिस्थितिकी तंत्र को ध्यान में रखते हुए पुनर्वास प्रयास किये जाएं, तो यह जगह फिर से बाघों का घर बन सकती है। यदि वन विभाग और पर्यावरण विशेषज्ञ इस क्षेत्र का अध्ययन करते हैं और यहां बाघों के रहने के लिये उचित वातावरण सुनिश्चित करते हैं तो यह क्षेत्र बाघों के पुनर्वास के लिये आदर्श स्थान बन सकता है। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ के बाघों के लिये यह क्षेत्र एक सुरक्षित आवास बन सकता है, जहां वे न केवल अपने शिकार का आनंद ले सकेंगे, बल्कि एक स्थायी निवास भी बना सकेंगे। वन विभाग ने इस क्षेत्र में बाघों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिये रात्रि गश्त तेज कर दी है। इसके साथ ही, स्थानीय ग्रामीणों को जागरूक किया जा रहा है ताकि किसी भी अप्रिय घटना से बचा जा सके लेकिन अगर यहां बाघों के पुनर्वास की योजना बनती है तो यह एक रोमांचक पहल हो सकती है जो न केवल वन्यजीवों के संरक्षण में मदद करेगी बल्कि पर्यावरणीय संतुलन को भी बनाये रखेगी। खैरागढ़ और डोंगरगढ़ के जंगलों में बाघों की वापसी का सपना फिर से साकार हो सकता है। इसके लिये वैज्ञानिक अध्ययन और पर्यावरणीय संरक्षण की दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। यदि यह योजना सफल होती है, तो यह क्षेत्र वन्यजीवों और पर्यावरण संरक्षण के लिये एक आदर्श उदाहरण बन सकता है।

बाघ की उपस्थिति को लेकर पूरे मामले में फील्ड ऑर्निथोलॉजिस्ट प्रतीक ठाकुर ने बताया कि मैं कल पर्वत श्रेणी का इलाका जो खैरागढ़ डोंगरगढ़ फॉरेस्ट कॉरिडोर में पड़ता है यहां टाइगर का पगमार्क मिला है जो एक व्यस्क मादा बाघिन का हो सकता है। वन विभाग की टीम के साथ उसका निरीक्षण किया गया है। यह इलाका प्राकृतिक रूप से बाग कॉरिडोर है यहां पहले भी उनकी उपस्थिति दर्ज की गई है। बहरहाल टाइगर की मौजूदगी को लेकर ग्रामीणों को अलर्ट किया जा रहा है।

पूरे घटनाक्रम को लेकर एसडीओ फॉरेस्ट मोना महेश्वरी ने बताया कि टाइगर के पग मार्क्स मिले है। बेमेतरा क्षेत्र से होते हुए सहसपुर लोहारा व खैरागढ़-गंडई इलाके में टाइगर की उपस्थिति देखी गई है। वन विभाग के द्वारा इस क्षेत्र के प्रभावित 17 गांव में मुनादी करवाई गई है। दिन के साथ रात में भी पेट्रोलिंग बढ़ा दी गई है वहीं दिन में खासतौर पर रात में अकेले नहीं रहने की सलाह दी गई है। कोई अपनी स्थिति ना हो इसके लिए विभाग मुस्तैद है। उम्मीद है बाघ विचरण करते हुए प्राकृतिक आवास में चले जाएंगे।

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