
कृषि विभाग ने जारी की वैज्ञानिक सलाह
सत्यमेव न्यूज खैरागढ़। जिले में खरीफ वर्ष 2025 के दौरान लगभग 2200 हेक्टेयर क्षेत्र में अरहर फसल की बोनी की गई है। वर्तमान समय में अरहर की फसल में पॉडबोरर फलीबेधक कीट का प्रकोप बढ़ता हुआ देखा जा रहा है जिससे फसल उत्पादन को नुकसान पहुंचने की आशंका है। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए कृषि विभाग द्वारा किसानों के लिए समसामयिक तकनीकी परामर्श जारी किया गया है।
कृषि विभाग के अनुसार पॉडबोरर कीट की सूंडी अवस्था सबसे अधिक हानिकारक होती है। यह कीट हरे-भूरे रंग का होता है जो फलियों में छेद कर अंदर के दानों को खाता है। इसके मल के कारण फलियां संक्रमित होकर सड़ने लगती हैं जिससे उपज में उल्लेखनीय कमी आ सकती है।
कृषिगत उपाय अपनाने की गई अपील
कृषि विशेषज्ञों ने किसानों को सलाह दी है कि वे अरहर फसल में नाइट्रोजन उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग न करें। अरहर के साथ सूरजमुखी को अंतरवर्ती फसल के रूप में बोने से कीट प्रकोप में कमी आती है इसके साथ ही खेतों और मेड़ों पर उगी अनावश्यक खरपतवारों को समय-समय पर हटाना आवश्यक बताया गया है। यांत्रिक एवं जैविक नियंत्रण पर जोर कीटों की निगरानी और नियंत्रण के लिए प्रति हेक्टेयर 12 फेरोमोन ट्रैप लगाने की सलाह दी गई है। जैविक नियंत्रण के अंतर्गत नीम आधारित कीटनाशक एजाडिरेक्टिन का 3 से 4 मिली प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने की सिफारिश की गई है। रासायनिक दवाओं का संतुलित उपयोग यदि कीट प्रकोप अधिक हो तो कृषि विभाग द्वारा अनुशंसित रासायनिक कीटनाशकों में से किसी एक का प्रयोग करने को कहा गया है। इनमें डाइमेथोएट, इमामेक्टिन बेंजोएट, इंडोक्साकार्ब, क्लोरैन्ट्रानिलिप्रोल एवं स्पिनोसाड शामिल हैं। दवाओं का उपयोग निर्धारित मात्रा में ही करने की अपील की गई है।
फूल झड़ने की समस्या से निजात पाने दी गई सलाह
अरहर फसल में फूल झड़ने की समस्या को रोकने के लिए नेफ्थलीन एसीटिक एसिड एनएए- 40 मिलीग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर फूल आने से पहले तथा 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करने की सलाह दी गई है। इसके अलावा सैलिसिलिक एसिड 100 मिलीग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर समान अंतराल पर प्रयोग करने से भी लाभ मिलने की बात कही गई है। कृषि विभाग ने किसानों से अपील की है कि वे फसल की नियमित निगरानी करें वैज्ञानिक पद्धति से कीट प्रबंधन अपनाएं और अनुशंसित मात्रा में ही दवाओं का उपयोग करें ताकि अरहर फसल की उत्पादकता और गुणवत्ता को सुरक्षित रखा जा सके।